प्रभु की भक्ति तथा समर्पण का प्रतीक है शबरी जयंती

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शबरी जयंती के दिन ही शबरी को उसके भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह पर्व मोक्ष तथा भक्ति का प्रतीक माना जाता है। शबरी जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। इस साल यह जयंती 15 फरवरी को पड़ रही है।

हिन्दू धर्म में शबरी जयंती का खास महत्व है, इसी दिन श्रीराम की कृपा से शबरी को मोक्ष मिला था, तो आइए हम आपको शबरी जयंती के बारे में कुछ विशेष बाते बताते हैं। 

शबरी जयंती है खास 

शबरी जयंती के दिन ही शबरी को उसके भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह पर्व मोक्ष तथा भक्ति का प्रतीक माना जाता है। शबरी जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। इस साल यह जयंती 15 फरवरी को पड़ रही है। 

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जानें शबरी के बारे में 

मां शबरी का नाम शबरी न होकर श्रमणा था। उन्होंने भील समुदाय की थी और उनके पिता भीलों के राजा थे। शबरी का पालन उनके पिता ने बहुत प्यार से किया था। जब शबरी विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता ने उनके लिए सुयोग्य वर खोजा। विवाह के दौरान जानवरों की बलि देने की प्रथा। इसी प्रथा के अनुसार शबरी के पिता विवाह से एक दिन पूर्व सौ भेड़-बकरियां लेकर आए और उनकी बलि की तैयारी करने लगी। शबरी को जब यह पता चला तो वह उन भेड़ बकरियों को बचाने की कोशिश करने लगीं। उन्हें बचाने के लिए शबरी ने सुबह ही सभी जानवरों को छोड़ दिया तथा खुद भी वन में चली गयीं। उसके बाद वह खुद भी घर वापस नहीं आयीं। शबरी भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। उनकी एकनिष्ठ भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीराम ने न केवल उनके जूठे बेर खाएं बल्कि उन्हें मोक्ष भी प्रदान किया।

मतंग ऋषि ने दिया था आर्शीवाद

जानवरों को घर से भगाने के बाद शबरी खुद भी घर नहीं लौटीं। वह जंगलों में भटकती रहीं कोई भी उन्हें आश्रम में शिक्षा देने हेतु तैयार नहीं। सब जगह से उन्हें दुत्कार ही मिली। उसके बाद मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी को जगह मिली तथा वहीं उन्हें शिक्षा प्राप्त हुई। मतंग ऋषि शबरी के सेवा भाव तथा गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे। मतंग ऋषि अपना शरीर छोड़ने से पहले शबरी को आर्शीवाद दिए भगवान श्रीराम उनसे मिलने स्वयं आएंगे और तभी उनको मोक्ष प्राप्त होगा।

शबरी से जुड़ी पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन शबरी मतंग ऋषि के पास ही एक तालाब में जल लेने गयीं। वहां एक ऋषि साधना कर रहे थे वह उस समय ध्यान में मग्न थे। इसलिए शबरी तालाब से जल लेने को कहा जाता है कि तालाब का जल बहुत पवित्र था उसमें गंगा तथा यमुना का जल मिला हुआ था। शबरी वहां से जल लेने लगीं तभी ऋषि का ध्यान टूटा तथा शबरी के अछूत होने के कारण ऋषि ने पत्थर उठाकर मारा जिससे शबरी को चोट लगी और खून तालाब में गिरने लगा। बहुत दिनों बाद भी शबरी का खून तालाब के पानी में नहीं मिल सका। बहुत दिनों बाद जब श्रीराम तालाब के पास आए तो लोगों ने कहा कि राम जी शबरी के खून को जल में मिला दें। श्रीराम को जब यह पता चला तो उन्होंने कहा कि यह शबरी का रक्त नहीं बल्कि मेरे हृदय का रक्त है कृपया शबरी को बुलाएं। कहा जाता है कि जैसे ही शबरी तालाब के पास आयीं उनके पैरों की धूल से तालाब का खून जल में बदल गया। 

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शबरी जयंती पर निकलाते हैं जुलूस, होती है पूजा 

शबरी जयंती के दिन शबरीमाला मंदिर में मां शबरी की पूजा-अर्चना होती है तथा श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रकार का मेला लगता है। शबरी जयंती के दिन मां शबरी की याद में जुलूस निकाले जाते हैं तथा चित्रों के माध्यम से भगवान शबरी द्वारा राम को जूठे बेर खिलाए जाने की कथा का चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। साथ ही शबरी जयंती को शबरी मां की देवी के रूप में पूजा की जाती है। इस दिन शबरी की याद में भगवान राम तथा उनके परिवार को बेर चढ़ाएं तथा सफेद चंदन से तिलक लगाया जाता है।

- प्रज्ञा पांडेय

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