Gyan Ganga: भक्त प्रेम से प्रकट होते हैं भगवान, महादेव ने समझाया सगुण-निर्गुण का रहस्य

तो क्या यह मान लिया जाए कि भगवान की लीला का रहस्य कभी उद्घाटित ही नहीं हो सकता? नहीं, ऐसा नहीं है। प्रभु की प्राप्ति अथवा उनकी अनुभूति असंभव नहीं; आवश्यकता केवल एक ऐसे संत की होती है, जो स्वयं भगवान शंकर की भाँति परमयोगी, त्यागमूर्ति और तत्त्वदर्शी हो।
भगवान शंकर द्वारा प्रवाहित श्रीरामकथा का श्रवण देवी पार्वती अत्यंत एकाग्रता और श्रद्धा सहित कर रही हैं। ईश्वर सगुण है अथवा निर्गुण—यह प्रश्न महान से महान मुनियों और तपस्वियों को भी मोहजाल में डाल देता है। इस जगत में ऐसा कोई नहीं, जो मात्र सांसारिक बुद्धि और ज्ञान के आधार पर इस गहन सत्य को भली-भाँति समझ सके; क्योंकि ईश्वर की विराटता इतनी असीम है कि वह मानव की क्षुद्र बुद्धि से उतनी ही दूर है, जितनी आकाश के नक्षत्र पृथ्वी से।
तो क्या यह मान लिया जाए कि भगवान की लीला का रहस्य कभी उद्घाटित ही नहीं हो सकता? नहीं, ऐसा नहीं है। प्रभु की प्राप्ति अथवा उनकी अनुभूति असंभव नहीं; आवश्यकता केवल एक ऐसे संत की होती है, जो स्वयं भगवान शंकर की भाँति परमयोगी, त्यागमूर्ति और तत्त्वदर्शी हो। वस्तुतः ऐसा संत साक्षात महादेव का ही स्वरूप होता है, जो उस निराकार ब्रह्म का साकार प्रतिरूप बनकर अवतरित होता है।
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हमने विगत अंक में भी सगुण और निर्गुण स्वरूप पर चर्चा की थी, जैसा कि भगवान शंकर ने स्वयं कहा है—
“सगुनिह अगुनिह नहिं कछु भेदा।
गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।
अगुन अरूप अलख अज जोई।
भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।’’
अर्थात् परमात्मा भले ही कण-कण में व्याप्त, अजन्मा और निराकार है; किन्तु भक्त के प्रेम और अनुराग के वश होकर वही ईश्वर सगुण रूप में प्रकट होते हैं।
यद्यपि वह ईश्वर सम्पूर्ण जगत का कर्ता है, फिर भी सगुण रूप में अवतरित होकर मनुष्य की भाँति सुख-दुःख, मान-अपमान का अनुभव करता हुआ भक्तजनों के मध्य विहार करता है। किंतु यह संभव तभी है, जब भक्त अपार श्रद्धा और अगाध प्रेम से उन्हें पुकारे। यही कारण है कि दुर्योधन के विलासपूर्ण आमंत्रण को त्यागकर भगवान श्रीकृष्ण विदुरानी के घर सादर पहुँचे और केले के छिलकों में प्रेमरस का स्वाद ग्रहण किया।
प्रह्लाद का उदाहरण भी इसी सत्य का प्रतिपादन करता है। न तो नरसिंहावतार की पूर्व-कल्पना थी, न किसी ने उसकी याचना की थी। किन्तु भक्त प्रह्लाद के अटूट प्रेम ने प्रभु को बाध्य कर दिया और वे निर्गुण से सगुण, निराकार से साकार होकर खंभे से प्रकट हुए। इसी तथ्य को भगवान शंकर पुनः स्पष्ट करते हैं—
“अगुन अरूप अलख अज जोई।
भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।’’
प्रेम ही वह अदृश्य सूत्र है, जो ईश्वर को भी बांध लेता है।
जैसे सुगंध का स्वरूप निर्गुण है—उसका न कोई आकार है, न रूप। यदि आप सुगंध का आनंद लेना चाहते हैं तो वह सुगंध पुष्प का रूप धारण करके ही उपलब्ध हो सकती है। उसी प्रकार ईश्वर भी भक्त-हृदय की पुकार सुनकर अपने निर्गुण रूप को त्यागकर सगुण रूप में अवतरित होते हैं।
धन्ना जाट की कथा इसी सत्य की साक्षी है। जब धन्ना ने निष्कलुष प्रेम और अटूट विश्वास से प्रभु को बुलाया, तो परमात्मा स्वयं खेत जोतने चले आए। कारण यह कि प्रेम की शक्ति ही ऐसी है, जो सर्वशक्तिमान प्रभु को भी अपने पाश में बाँध लेती है।
(---क्रमशः)
- सुखी भारती
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