Gyan Ganga: भगवान श्रीराम की अनंत लीलाएँ एवं शिव-पार्वती संवाद

माता पार्वती अब तक यह जान चुकी थीं कि निर्गुण और सगुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। निर्गुण ब्रह्म वह है जो निराकार, निर्विकार और सर्वव्यापक है, जबकि सगुण ब्रह्म वही परम तत्व है जो अपने भक्तों की कृपा के लिए सगुण रूप धारण करता है।
भगवान श्रीराम की अनंत दिव्य लीलाओं का वर्णन जितना किया जाए, उतना ही कम है। उन्हीं लीलाओं का पावन रसपान माता पार्वती को स्वयं महादेव करा रहे हैं। कैलास पर, गहन समाधि के बाद जब पार्वती जी ने भगवान श्रीराम के स्वरूप के विषय में प्रश्न किया, तब भोलेनाथ अत्यंत करुणा और प्रेम से समझाने लगे। वे माता के संदेहों का इस प्रकार निवारण कर रहे थे, जैसे सूर्य की स्वर्णिम किरणें अंधकार का क्षणभर में नाश कर देती हैं।
निर्गुण और सगुण का रहस्य
माता पार्वती अब तक यह जान चुकी थीं कि निर्गुण और सगुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। निर्गुण ब्रह्म वह है जो निराकार, निर्विकार और सर्वव्यापक है, जबकि सगुण ब्रह्म वही परम तत्व है जो अपने भक्तों की कृपा के लिए सगुण रूप धारण करता है। सामान्य मनुष्य के लिए इन दोनों में अंतर करना कठिन है, क्योंकि हमारी चर्मचक्षु सीमित हैं। जब तक जीव अज्ञान और माया के बंधन में जकड़ा है, तब तक वह सत्य को जान नहीं पाता और संसार में दुःख भोगता रहता है।
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यह स्थिति वैसी ही है जैसे स्वप्न में किसी व्यक्ति का सिर कट जाए और वह तब तक पीड़ा भोगे जब तक उसकी नींद न टूटे। वास्तव में सिर नहीं कटा, किंतु अज्ञानजनित भ्रांति ने उसे पीड़ा दी। उसी प्रकार जब तक जीव को ब्रह्म का सच्चा स्वरूप ज्ञात नहीं होता, वह माया-जाल में पीड़ित होता रहता है।
श्रीराम ही परब्रह्म
पार्वती जी का प्रश्न था कि यदि श्रीराम वही परब्रह्म हैं, जो कण-कण में व्याप्त हैं, तो फिर वे मानव की भाँति बोलते, चलते और भोजन करते कैसे हैं? इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर भोलेनाथ ने रामचरितमानस की इन दिव्य चौपाइयों द्वारा दिया—
‘बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।’
अर्थात—हे गिरिजा! वह परमात्मा बिना पैरों के चलता है, बिना कानों के सब सुनता है, बिना हाथों के अनगिनत कर्म करता है, बिना मुख के सब रसों का भोग करता है और बिना वाणी के ही महान वक्ता है।
ब्रह्म की सर्वव्यापकता
इसका आशय यह है कि परमब्रह्म को कहीं जाने के लिए पैरों की आवश्यकता नहीं। वह तो सर्वव्यापी है, अतः जहाँ चाहे वहीं प्रकट हो जाता है। इसी प्रकार उसे सुनने के लिए कानों की आवश्यकता नहीं। भक्त के अधरों पर उच्चरित शब्द ही नहीं, हृदय में उठने वाली मौन प्रार्थनाएँ भी उसकी श्रवण-शक्ति में आती हैं।
यदि भक्त की झोली में प्रसाद डालना हो, तो हाथविहीन ब्रह्म यह कैसे करेगा? इसका उत्तर यही है कि प्रभु की शक्ति अनंत है—‘कर बिनु करम करइ बिधि नाना’—वह बिना हाथों के भी असीम कार्य कर सकते हैं।
भक्त का अर्पण और प्रभु की प्रसन्नता
प्रभु को भोग-विलास की कोई आवश्यकता नहीं। यदि वे भी जीव की तरह इंद्रिय-सुखों में आसक्त होते, तो उन्हें अनेक पदार्थों की चाह रहती। परंतु ऐसा नहीं है। वास्तव में प्रभु को अपने भक्त का प्रेम ही सबसे अधिक प्रिय है। जब भक्त प्रसाद चढ़ाता है, तो भगवान उसे ऐसे स्वीकार करते हैं मानो उसमें संपूर्ण सृष्टि का रस समाया हो। यही कारण है कि संत-महात्मा कहते हैं—
“भक्ति बिना न मिले हरि राया, तजि विधि व्रत करि देखी भाया।”
वाणी रहित वक्ता
अब प्रश्न उठता है कि जब ब्रह्म निराकार हैं और उनके पास वाणी ही नहीं, तो वे बोलेंगे कैसे? इस पर महादेव उत्तर देते हैं कि परमात्मा बिना वाणी के भी प्रखर वक्ता हैं। उनकी दिव्य ध्वनि श्रुति, वेद और उपनिषदों में गूँजती है। ऋग्वेद में कहा गया है—
“न तस्य प्रतिमा अस्ति, यस्य नाम महद् यशः।”
अर्थात उस परमात्मा की कोई प्रतिमा नहीं, किंतु उसका यश महान है, और वही वाणी के बिना भी सबको दिशा देता है।
इंद्रियों से परे ब्रह्म
प्रभु बिना आँखों के सब कुछ देखते हैं, बिना कानों के सब सुनते हैं, बिना नाक के सब गंध ग्रहण करते हैं और बिना शरीर के ही सब स्पर्श का अनुभव करते हैं। उपनिषदों में वर्णन है—
“श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद्, वाचो ह वाचं स उ प्राणस्य प्राणः।”
अर्थात वही परमात्मा कानों का भी कान है, मन का भी मन है, वाणी का भी वचन है और प्राणों का भी प्राण है।
अज्ञेय ब्रह्म
उस ब्रह्म की महिमा इतनी अद्भुत और अनंत है कि उसका पूर्ण वर्णन संभव ही नहीं। भक्त उसे जितना समझता है, उतना ही उसमें नया रहस्य प्रकट होता जाता है। यही कारण है कि संत कवि कहते हैं—
“राम की महिमा अपार, को कहि सके विचार।”
निष्कर्ष
अतः यह स्पष्ट है कि श्रीराम कोई साधारण मानव रूप नहीं, बल्कि वही अनंत ब्रह्म हैं, जो भक्तों की कृपा के लिए अवतरित हुए। वे बिना इंद्रियों के सब इंद्रियों का कार्य करते हैं। वे बिना वाणी के बोलते हैं, बिना शरीर के सब कार्य करते हैं और बिना भोग के ही सब रसों का आनंद देते हैं। उनकी लीला इतनी अद्भुत है कि समस्त शास्त्र भी उसका अंत नहीं पा सकते।
क्रमशः…
- सुखी भारती
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