कर्ज में फंसी बड़ी कंपनियों को देना पड़ता है सहारा: सुब्रमण्यम

[email protected] । Mar 14 2017 5:37PM

केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने वसूल नहीं हो रहे ऋणों की समस्या के समाधान के लिए तथाकथित बैड-बैंक जैसे एक राष्ट्रीय बैंक के विचार कर समर्थन किया है।

कोच्चि। केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने वसूल नहीं हो रहे ऋणों की समस्या के समाधान के लिए तथाकथित ‘बैड-बैंक’ जैसे एक राष्ट्रीय बैंक के विचार कर समर्थन करते हुए कहा है कि पूंजीवादी व्यवस्था में सरकारों को कभी कभी बड़ी कंपनियों को कर्ज संकट से उबरने के लिए मदद देनी पड़ती है, हालांकि, ऐसे मामलों में अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप भी लगाए जा सकते हैं।

भारत में खास कर सरकारी बैंकों के अवरुद्ध ऋणों (एनपीए) की समस्या से निपटने के लिए एक सुझाव ‘बैड बैंक’ बनाने का है। सुब्रमण्यम ने कहा कि यह सरकार के स्वामित्व वाला बैंक हो सकता है। ऐसा बैंक दबाव वाले ऋणों (परिसंपत्तियों) की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर उनके समाधान का प्रयास करेगा। दबाव वाले ऋणों में वसूल नहीं हो रहे ऋणों (एनपीए) के अलावा पुनगर्ठित ऋण और बट्टे खाते में डाले गए ऋण शामिल होते हैं। सुब्रमण्यम ने माना कि बड़े कर्जदारों को राहत देने से भ्रष्टाचार और अपनों को फायदा पहुंचाने वाली पूंजीवादी व्यवस्था चलाने के आरोप लग सकते है। पर उन्होंने कहा कि ‘कई बार इस समस्या के समाधान के लिए ऋणों के ढ़ेर को बट्टे खाते में डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।’

मुख्य आर्थिक सलाहकार सोमवार शाम यहां हार्मिस स्मारक व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि दबाव ग्रस्त ऋण की समस्या, ‘बहुत टेढ़ी समस्या है और यह केवल भारत में है, ऐसा नहीं है। निजी क्षेत्र को दिए गए ऋण को माफ करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता, खास कर तब जब कि ऐसी कंपनियां बड़ी हों।’ कार्यक्रम का आयोजन फेडरल बैंक ने किया था। उन्होंने कहा कि ‘सरकारों में ऋण माफ करने का माद्दा होना चाहिए और इसके लिए प्रयास करने का एक तरीका बैड बैंक भी है।’

गौरतलब है कि देश की बैंकिंग प्रणाली में एनपीए, खास कर सरकारी बैंकों का एनपीए 2012-13 के 2.97 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 2015-16 में दो गुने से भी अधिक बढ़ कर 6.95 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। दिसंबर, 2016 के अंत में बैंकों के दबाव ग्रस्त ऋण उनके द्वारा दिए गए कुल ऋणों के 15 प्रतिशत तक पहुंच गए थे। एनपीए के कारण बैंकों और कंपनियों की बैलेंसशीट की कमजोरी की दोहरी समस्या खड़ी हो गयी है। इसके कारण ऋण लेने देने का काम प्रभावित हो रहा है। लेकिन दबाव ग्रस्त ऋणों का बोझ उठाने के लिए बैड बैंक की स्थापना का विचार नीति निर्माताओं के लिए आसान नहीं है।

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