देश आज मीडिया तंत्र और राजनीतिक सेकुलरवाद का शिकार

तरुण विजय । Jan 28 2017 11:23AM

स्वतंत्रता के बाद से ही हिन्दुओं को बेघर होने, बर्बाद होने के अनेक पड़ाव लगातार देखने पड़े। यह देश आज ऐसे मीडिया तंत्र और राजनीतिक सेकुलरवाद का वीभत्स शिकार हो रहा है जो मूलतः हिंदू विद्वेषी मानसिकता वाला है।

पश्चिम बंगाल से केरल तक मुस्लिम जिहादी तत्वों द्वारा हिन्दुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं। इनमें साधारण, गरीब, मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग हैं। केवल आस्था और विचारधारा की भिन्नता के आधार पर होने वाले इन हिंसक हमलों में बंगाल के धुलागढ़ में सौ से ज्यादा हिन्दू बेघर हो गए, उनका सारा सामान लूट लिया। केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं पर लगातार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हमलों पर दिल्ली के सेकुलर नेता एवं मीडिया की चुप्पी भी हैरत अंगेज है।

अब इन नामों की सूची देखिये।

सुमन्ता बनर्जी। रामपद मन्ना। दीपक मंडल। असिल खानरा। दिलीप रोंग। आनंदो देबनाथ। गोपाल माछी। परेश दास। स्वप्ना पौलके... यह सूची बहुत लम्बी है। सौ के लगभग। 13 दिसम्बर को पं. बंगाल के धुलागढ़ी गांव के पश्चिम पाड़ा में जिहादी मुसलमानों की भीड़ ने हिन्दू घरों पर हमला बोला- सैंकड़ों घर जलाए, लोगों को उध्वस्त किया। और क्यों? क्योंकि वे हिन्दू थे, इसलिए, उन्हें मरना, उध्वस्त होना ही था।

13 और 14 दिसम्बर 2016 को पश्चिम बंगाल में जो हुआ वह 1946 के जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन का ही प्रतिरूप था। लेकिन हिन्दूजाति का दुर्भाग्य देखिए। हिन्दू बहुल पश्चिम बंगाल, हिंदू नेतृत्व में प्रदेश सरकार, महान हिन्दू धार्मिक संगठनों का केंद्र है यह बंकिम और आनंदमठ का बंग प्रदेश। फिर भी हिन्दुओं को बेघर होना पड़ा और हिंदू मालिकों द्वारा चलाए जा रहे समाचार पत्रों और चैनलों ने इस दर्दनाक घटना को इस तरह सन्नाटे में लिपटा दिया मानो कुछ हुआ ही नहीं।

स्वतंत्रता के बाद से ही हिन्दुओं को बेघर होने, बर्बाद होने के अनेक पड़ाव लगातार देखने पड़े। 1947, सितम्बर के पाकिस्तानी हमले में मीरपुर, नरसंहार। फिर पांच लाख कश्मीरी हिन्दुओं को भीषण त्रासदी, अपमान और हिंसा के बीच अपना सदियों पुराना बसेरा छोड़ना पड़ा। उत्तर प्रदेश के कैराना से प्रताड़ित हिन्दुओं को शहर ही छोड़ना पड़ा। यह स्थिति दिल्ली, मुजफ्फरनगर, जम्मू, कोलकाता जैसे शहरों में आज भी विद्यमान है। जम्मू और श्रीनगर से कोलकाता-धुलागढ़ी और कैराना से कर्नाटक केरल तक आज हिन्दू आक्रान्त है। और हिन्दुओं के विरुद्ध प्रत्येक मुस्लिम जिहादी एवं कम्युनिस्ट आतंकवादी हमलों को देश के राजनेता तथा मीडिया नकारते हैं। उनके लिए कश्मीर की 16 वर्षीय बहादुर बेवी जायरा वसीम या रोहित वेमुला हिन्दू घरों के जलने, उजड़ने और हिन्दू कार्यकर्ताओं की जघन्य हत्या से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। जायरा की बहादुरी को शाबासी देनी ही चाहिए लेकिन क्या हिन्दू इस देश के नागरिक नहीं?

पाठकों को याद होगा कि जब गोधरा में साबरमस्ती एक्सप्रेस के 59 हिन्दुओं को जलाया गया था, उस समय भी कांग्रेस-कम्युनिस्ट नेताओं ने स्वयं हिन्दुओं पर अपनी जान लेने का आरोप लगाया था ताकि वे मुसलमानों पर हमला करने का बहाना ढूंढ सकें। लालू यादव द्वारा बिठाए बनर्जी आयोग की रपट हास्यापद भी नहीं कही जा सकती- वह विकृत यवन मानसिकता का हिंदुओं पर शासकीय हमला ही था। वह गोधरा के बाद हिंदुओं पर शाब्दिक हिंसा थी। लेकिन कुछ नहीं हुआ।

यह देश आज ऐसे मीडिया तंत्र और राजनीतिक सेकुलरवाद का वीभत्स शिकार हो रहा है जो मूलतः हिंदू विद्वेषी मानसिकता वाला है। वे सब हिंदू हैं- यज्ञ, पाठ, पूजा, गंगा-स्नान, तंत्र-मंत्र, ज्योतिष में विश्वास रखने वाले। लेकिन वह सब कर्मकांड उनकी अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति तक सीमित रहता है। उनके धर्म का अर्थ है अपना निजी स्वार्थ। कुछ चढ़ा दो, कुछ प्राप्त कर लो। मंदिर के स्वर्ण शिखर बना दो, व्यापार में, नौकरी में तरक्की हासिल कर लो। हिंदू के नाते इस देश, समाज ओर स्वधर्मी बंधुओं के साथ उनका कोई रिश्ता होता ही नहीं बल्कि जो ऐसी संवेदनाएं दिखाते हैं उनके विरुद्ध वे लिखते-बोलते हैं।

अभी जयपुर में साहित्य उत्सव- 'जी-जयपुर लिट-फेस्ट' हुआ। वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दो वरिष्ठ अधिकारी श्री दत्तात्रेय होसबले और श्री मनमोहन वैद्ध आमंत्रित किए गए। इसके विरोध में अंग्रेजी मीडिया के कम्युनिस्ट मानसिकता वाले रिपोर्टरों की खबरें छपीं- मानो ऐसा बड़ा- सेकुलर-द्रोह कैसे होने दिया। केरल से माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य एमए बेबी ने संघ की इस्लामिक स्टेट से तुलना करते हुए उत्सव का बहिष्कार किया ओर कहा- वे संघ के साथ मंच साझा नहीं करेंगे। बेबी का यह विकृत बयान 'द हिन्दू' ने चार कालम की बड़ी खबर बना कर एक प्रवचन की तरह छापा लेकिन उसने बेबी से यह प्रश्न नहीं किया कि संघ कार्यकर्ताओं की माकपा के हाथों लगातार हो रही हत्याओं के आरोप पर वे क्या कहेंगे?

पूर्वाग्रही, बेईमान मीडिया, असहिष्णुता एवं हिंदू विरोध का प्रतीक बन गयी है। एमए बेबी तो पूरे देश द्वारा नकारी गयी, खंडहर बनी पार्टी की ऐसी पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं जिसका राष्ट्रीय राजनीति में कोई दखल नहीं। फिर भी उनको बुलाया जाना इस सेकुलर मीडिया के लिए आश्चर्य नहीं, बल्कि ठीक स्वाभाविक बात थी। लेकिन जो राष्ट्रीय सेवक संघ अपने तप-पूत कार्यकर्ताओं द्वारा पूरे देश के नवोत्थान का पाथेय दे रहा है और जो अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रहा है, उसके दो मूर्धन्य विद्वान अधिकारियों को बुलाया जाना इस मीडिया को नागवार गुजरा। यह है इस मीडिया का असली 'वस्तुपरक, स्वतंत्र और सत्यशोधक चेहरा।'

इन पंक्तियों के लिखे जाते समय केरल के कन्नूर जिले में 30 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता संतोष की छुरा घोंप कर हत्या का समाचार, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तलिपरम्बा स्थित कार्यालय में माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा पालक्काड में भाजपा नेता कण्णन की धर्मपत्नी विमला (46) पर तेजाब फेंका गया और फलतः तीन दिन बाद उनकी दुखद मृत्यु हो गयी। केरल, कर्नाटक, बंगाल में हिंदुत्व निष्ठ कार्यकर्ताओं पर मरणान्तक हमले लगातार जारी हैं।

कौन उठेगा और कहेगा अब यह नहीं चलेगा? क्या समाज अपने बेघर होते, मरते, अपमानित होते हिंदुओं की कथाएं पुस्तकों में पिरोकर उनको श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए ही स्वतंत्र हुआ है? क्या हिंदुओं को हिंदू के नाते जीवन का निर्बाध अधिकार देना आज भी कठिन है? इसका उत्तर तो पाना ही होगा!

- तरुण विजय

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़