राष्ट्र सेवा का संकल्प सिद्ध कर दिखाने वाले कर्मयोगी थे मनोहर पर्रिकर

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गोवा भले छोटा-सा राज्य हो लेकिन यहाँ से एक ऐसा जननेता निकला जो राष्ट्रीय स्तर का कद रखता था। असाधारण व्यक्तित्व वाले परन्तु साधारण से दिखने वाले इस राजनीतिज्ञ का मन अंतिम समय तक सिर्फ गोवा के विकास में ही लगा रहा।

आधुनिक गोवा के शिल्पकार और राजनीति में 'मिस्टर क्लीन' की छवि रखने वाले मनोहर पर्रिकर का निधन मात्र एक राजनेता का निधन नहीं है। यह निधन है अपनी माटी के साथ गहरा लगाव रखने वाले एक काबिल बेटे का, यह निधन है अंतिम सांस तक राज्य और राष्ट्र की सेवा का संकल्प सिद्ध करके दिखाने वाले कर्मयोगी का। जरा खोज कर देखिये देश में कितने ऐसे नेता हैं जो बड़े पद पर रहते हुए भी आम आदमी जैसा दिखता हो, जो बड़े पद पर रहते हुए भी आम आदमी की तरह बस, स्कूटर, बाइक, ट्रेन की सामान्य बोगी या इकॉनामी क्लास से हवाई यात्रा करता हो।

गोवा के लाड़ले थे पर्रिकर

किसी भी राजनीतिज्ञ के निधन पर हालांकि सभी दलों की ओर से दुःख भरी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जाती हैं लेकिन उन प्रतिक्रियाओं की शब्दावली पर जरा गौर कीजियेगा वह सारी एक जैसी या सामान्य-सी होती हैं। लेकिन मनोहर पर्रिकर जैसे माटीपुत्र के निधन पर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर गौर कीजिये- राज्य में पर्रिकर की अस्वस्थता का हवाला देते हुए कांग्रेस भले अपनी सरकार बनाने की कोशिशें करती रही लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पर्रिकर के निधन पर शोक जताते हुए उन्हें ‘‘गोवा का चहेता बताया’’ है। राहुल गांधी ने कहा है, ''दलगत राजनीति से इतर सभी उनका मान-सम्मान करते थे और वह गोवा के सबसे लोकप्रिय बेटों में से एक थे।'' ऐसे ही अनेक दलों के नेताओं ने सिर्फ रस्मी प्रतिक्रियाएं देने की बजाय पर्रिकर की तारीफों के पुल बांधे हैं। वाकई बिरले ही ऐसे नेता होते हैं जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस तरह का मान-सम्मान हासिल कर पाते हैं।

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राज्य छोटा पर नेता बड़ा

गोवा भले छोटा-सा राज्य हो लेकिन यहाँ से एक ऐसा जननेता निकला जो राष्ट्रीय स्तर का कद रखता था। असाधारण व्यक्तित्व वाले परन्तु साधारण से दिखने वाले इस राजनीतिज्ञ का मन अंतिम समय तक सिर्फ गोवा के विकास में ही लगा रहा। भारतीय राजनीति शायद ही इस बात की कभी गवाह रही हो कि कोई मुख्यमंत्री नाक में नली लगाकर विकास कार्यों का जायजा ले रहा हो, राज्य विधानसभा में बजट प्रस्तुत कर रहा हो या फिर जीवन के अंतिम दिनों में भी राज्य के अधिकारियों से लगातार विचार-विमर्श करता रहा हो। मनोहर पर्रिकर सिर्फ भाजपा के शीर्ष नेता नहीं थे वह तो सभी वर्गों के नेता थे। मनोहर पर्रिकर भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने क्रिश्चियन समुदाय से बड़ी संख्या में विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारे थे। जरा गोवा चर्च का बयान देखिये- गोवा और दमन के प्रधान पादरी फिलिप नेरी फेर्राओ ने शोक संदेश में कहा, ‘‘इस राज्य में चर्च के पदाधिकारियों के लिए उनके (पर्रिकर) मन में जो सम्मान था, हम उसके लिए उनके आभारी हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह (पर्रिकर) राज्य के कल्याण के लिए दूरगामी निर्णय करते समय कई बार चर्च की राय लेते थे।’’ फेर्राओ ने कहा कि गोवा के कैथोलिक शिक्षण संस्थानों में पर्रिकर का योगदान सराहनीय था।


आरएसएस का प्रतिबद्ध स्वयंसेवक

मनोहर पर्रिकर आरएसएस के प्रतिबद्ध स्वयंसेवक थे और राजनीति में उन्होंने पूर्ण रूप से शुचिता का पालन किया। यह सही है कि उन्होंने कई बार जोड़तोड़ की सरकार का नेतृत्व किया लेकिन इसके लिए उन्हें अन्य लोगों की तरह भ्रष्टाचार का सहारा लेना नहीं पड़ा बल्कि गोवा में स्थिति यह थी कि छोटे दलों के या निर्दलीय विधायकों की शर्त यह होती थी कि यदि भाजपा मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाये तो वह उसे समर्थन देने के लिए तैयार हैं। यह उनकी ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता की अनोखी मिसालों और संगठन के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता का ही कमाल था कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पर्रिकर का नाम भाजपा अध्यक्ष पद के लिए भी चला था। लेकिन वह दिल्ली आने को राजी नहीं थे और गोवा के ही लोगों की सेवा करते रहना चाहते थे। उन्हें 2014 में दिल्ली में केंद्रीय मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेकिन रक्षा मंत्रालय में मनोहर पर्रिकर को ही लाना चाहते थे क्योंकि रक्षा मंत्रालय की होने वाली बड़ी खरीदों को पारदर्शी बनाने के लिए उनके जैसे ईमानदार व्यक्ति की ही जरूरत थी। आखिर पर्रिकर मान गये और रक्षा मंत्री बनकर दिल्ली आ गये।

रक्षा मंत्री के रूप में भी छाप छोड़ी

बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और वह भारत के पहले ऐसे रक्षा मंत्री बने जिनके कार्यकाल में पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकवादियों को कड़ा सबक सिखाया गया। यही नहीं उन्होंने रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए कई कार्य किये। लेकिन पर्रिकर का दिल्ली की राजनीति में मन नहीं लगता था और वह अपने राज्य में वापसी चाहते थे। वह हालात तब बन गये जब गोवा विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और भाजपा को समर्थन देने वालों ने मांग कर दी कि पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाने पर ही वह साथ आएंगे।

भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों को नयी ऊँचाई पर ले जाने में भी मनोहर पर्रिकर का बड़ा योगदान रहा। वर्ष 2016 में जब बतौर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अमेरिका की यात्रा की थी तो पेंटागन में उनका भव्य स्वागत हुआ था और तत्कालीन अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर के एक बयान से साफ हो गया था कि पर्रिकर के साथ उनके कैसे संबंध हैं। तब एश्टन कार्टर ने कहा था कि एक साल से थोड़े अधिक समय में ही उन्होंने अपने अन्य विदेशी समकक्षों की तुलना में पर्रिकर के साथ ज्‍यादा वक्‍त बिताया है। अगस्त 2016 में मनोहर पर्रिकर के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि अमेरिका का रक्षा मंत्री बनने के बाद से पर्रिकर के साथ यह उनकी छठी मुलाकात है। कार्टर ने कहा था कि मैंने दुनिया में कहीं भी अपने समकक्ष किसी अन्य रक्षा मंत्री की तुलना में पर्रिकर के साथ अधिक समय बिताया है। पर्रिकर को पेंटागन के उन क्षेत्रों का दौरा भी कराया गया था जहां अमेरिकी रक्षा अधिकारी किसी विदेशी नेता को नहीं ले जाते।

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संकल्प से सिद्धि तक

भाजपा नेतृत्व की भी तारीफ करनी होगी कि उसने मनोहर पर्रिकर के उस संकल्प का साथ दिया जिसमें वह अंतिम सांस तक गोवा की सेवा करना चाहते थे। वरना तो अकसर देखने में आता है कि किसी का स्वास्थ्य बिगड़ते ही कैसे उसकी जगह लेने के लिए लोगों की लाइन लग जाती है। पर्रिकर पूरे एक साल तक कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझते रहे लेकिन उन्होंने कभी अपनी बीमारी को अपने संकल्प पर हावी नहीं होने दिया।

अनोखा संयोग

मनोहर पर्रिकर चार बार गोवा के मुख्यमंत्री जरूर रहे लेकिन संयोग देखिये कि वह एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। दो बार उनकी सरकार अल्पमत में आने के कारण चली गयी तो तीसरी बार वह अपना कार्यकाल इसलिए पूरा नहीं कर पाये क्योंकि उन्हें राज्य से बुलाकर केंद्र में मंत्री बना दिया गया और चौथे कार्यकाल में उनका निधन हो गया।

राजनीतिक कॅरियर

गोवा लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन मनोहर पर्रिकर की छवि और उनके कामों ने इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया था। एक मध्यमवर्गीय परिवार में 13 दिसंबर 1955 को जन्मे पर्रिकर ने संघ के प्रचारक के रूप में अपना राजनीतिक कॅरियर आरंभ किया था। उन्होंने आईआईटी-बंबई से इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद भी संघ के लिए काम जारी रखा। पर्रिकर ने बहुत छोटी उम्र से आरएसएस से रिश्ता जोड़ लिया था। वह स्कूल के अंतिम दिनों में आरएसएस के ‘मुख्य शिक्षक’ बन गए थे। पर्रिकर ने संघ के साथ अपने जुड़ाव को लेकर कभी भी किसी तरह की परेशानी महसूस नहीं की। उनका संघ द्वारा आयोजित ‘‘संचालन’’ में लिया गया एक फोटोग्राफ इसकी पुष्टि करता है, जिसमें वह संघ के गणवेश और हाथ में लाठी लिए नजर आते हैं। आईआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 26 साल की उम्र में मापुसा में संघचालक बन गए। उन्होंने रक्षा मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय सेना के सर्जिकल हमले का श्रेय भी संघ की शिक्षा को दिया था।

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बहरहाल, मनोहर पर्रिकर के चले जाने से जो राजनीतिक शून्यता पैदा हुई है उसे पूरा कर पाना भाजपा ही नहीं किसी भी दल के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि पूरी ईमानदारी से राज्य के विकास की बात सोचने वाला नेता इतनी आसानी से नहीं मिलता। अब देखना होगा कि गोवा में जो जोड़तोड़ वाली सरकार मनोहर पर्रिकर जैसे बड़े कद वाले नेता के नेतृत्व में आसानी से चल रही थी उसका आगे का भविष्य क्या होता है। गोवा अगर दोबारा से आयाराम गयाराम की राजनीति में फंसा और राज्य राजनीतिक अस्थिरता के दौर में लौटा तो इससे विकास पर बड़ा विपरीत असर पड़ेगा।

-नीरज कुमार दुबे

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