Pakistan के Image Makeover के लिए Asim Munir ने बदल डाली विदेश नीति

मुनीर के अमेरिका दौरे के राजनयिक संदेश और भू-राजनीतिक संकेत की बात करें तो आपको बता दें कि इस दौरे को ऐसे समय पर देखा जा रहा है जब पाकिस्तान बड़ी वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तान का फील्ड मार्शल बनने के बाद कट्टरपंथी सेनाध्यक्ष असीम मुनीर का पहला अमेरिकी दौरा पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना रहा क्योंकि इससे पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी देश के सेनाध्यक्ष को व्हाइट हाउस में लंच पर नहीं बुलाया था। वह भी ऐसे देश के सेनाध्यक्ष को जिसके तार अमेरिका और भारत समेत दुनिया के विभिन्न देशों में हुए तमाम आतंकवादी हमलों से सीधे जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान के करीब आने के अमेरिका के कारण जो भी हों मगर यह तो साफ दिख ही रहा है कि दोनों देशों के संबंध इस समय वैश्विक सुर्खियों में हैं। यह भी देखने को मिल रहा है कि अमेरिका के बदले हुए मन से उपजे अवसरों का पूरा लाभ लेने के लिए पाकिस्तान की सरकार और सेना इस समय काफी सक्रिय नजर आ रही है। असीम मुनीर और शहबाज शरीफ को दिन-रात अरबों डॉलर के सपने ही दिख रहे हैं इसलिए वह अमेरिका की जी-हुजूरी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
हम आपको बता दें कि पाकिस्तान की वैश्विक छवि को नया आकार देने और वॉशिंगटन के साथ संबंधों को मज़बूत करने के प्रयासों के तहत, पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल सैयद आसिम मुनीर ने अमेरिका की अपनी एक सप्ताह लंबी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई महत्वपूर्ण अमेरिकी अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठकें कीं। मुनीर ने अमेरिकी रणनीतिक विशेषज्ञों, थिंक टैंकों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की। पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा ISPR के अनुसार, यह दौरा एक "सुनियोजित कूटनीतिक प्रयास" था, जिसमें जनरल मुनीर ने वैश्विक और क्षेत्रीय हालात पर पाकिस्तान के "सिद्धांत आधारित दृष्टिकोण" को साझा किया। मुनीर के अमेरिका दौरे के दौरान यह बात भी उभर कर आई कि सेनाध्यक्ष ने अपने देश की विदेश नीति को ही पूरी तरह बदल कर रख दिया है। पाकिस्तान को हालांकि एक डर सता रहा है कि अमेरिका के ज्यादा करीब जाने से कहीं चीन ना नाराज हो जाये जोकि उसका मुश्किल समय का पुराना साथी है। इसीलिए पाकिस्तान ने तुरंत अपने एक वरिष्ठ अधिकारी को बीजिंग भी भेज दिया था ताकि चीन-पाक-बांग्लादेश गठजोड़ बना कर पुराने दोस्त को दोस्ती बरकरार रहने का विश्वास दिलाया जा सके।
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मुनीर के अमेरिका दौरे पर और विस्तार से नजर डालें तो एक बात यह भी उभर कर आती है कि उन्होंने हाल के भारत-पाक सैन्य टकराव के दौरान पाकिस्तानी सेना के शौर्य को खूब बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। जनरल मुनीर ने पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी रणनीति को रेखांकित करते हुए "मारका-ए-हक़" और "ऑपरेशन बुंयानुम मर्सूस" जैसे सैन्य अभियानों का हवाला दिया। पाकिस्तान की इमेज का मेकओवर करने के प्रयास में उन्होंने अपने देश की भूमिका को "आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्ध में अग्रणी राष्ट्र" बताया और इस संघर्ष में जान गंवाने वाले सैनिकों व नागरिकों की कुर्बानियों को याद किया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बिना भारत का नाम लिए, उन्होंने "कुछ क्षेत्रीय शक्तियों द्वारा आतंकवाद को हाइब्रिड युद्ध के औजार के रूप में इस्तेमाल करने" के खिलाफ चेतावनी दी। हम आपको बता दें कि यह एक ऐसा बयान है जिसके जरिये पाकिस्तान अक्सर कूटनीतिक भाषा में भारत की ओर इशारा करता है।
इसके अलावा, आर्थिक अवसरों पर जोर देते हुए मुनीर ने पाकिस्तान की आईटी, कृषि और खनिज संपदा में मौजूद निवेश के अवसरों को उजागर करते हुए इन्हें "संयुक्त समृद्धि के इंजन" बताया और वैश्विक निवेशकों को आमंत्रित किया। मुनीर ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सुरक्षा-आधारित पारंपरिक रिश्तों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने की वकालत भी की, जिसमें आपसी सम्मान और हितों की संगति हो। साथ ही, आतंकवाद विरोधी सहयोग और आर्थिक विकास के पुराने रिश्तों को विस्तार देने की बात की।
मुनीर के अमेरिका दौरे के राजनयिक संदेश और भू-राजनीतिक संकेत की बात करें तो आपको बता दें कि इस दौरे को ऐसे समय पर देखा जा रहा है जब पाकिस्तान बड़ी वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। भारत के अमेरिका के साथ बढ़ते सामरिक संबंध, अफगानिस्तान की अस्थिरता और आर्थिक संकट की पृष्ठभूमि में, इस दौरे को पाकिस्तान की ओर से "विश्वसनीय और ज़िम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति" के रूप में अपनी स्थिति पुनः स्थापित करने का प्रयास माना जा रहा है। ISPR के अनुसार, अमेरिका में विभिन्न थिंक टैंकों और विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की खुली बातचीत और क्षेत्रीय स्थिरता में उसकी भूमिका की सराहना की। पाकिस्तान का कहना है कि मुनीर का यह दौरा आपसी विश्वास बहाली की दिशा में एक कदम माना जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका की प्राथमिकताएं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की ओर केंद्रित हो रही हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि एक ओर जहां मुनीर अमेरिका में मौजूद रह कर अपने देश के कूटनीतिक मिशन को आगे बढ़ा रहे थे वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अमेरिकी विदेश मंत्री से बातचीत कर अपनी सरकार का पक्ष रखा। सरकारी पाकिस्तान टीवी द्वारा ‘एक्स’ पर पोस्ट किए गए एक बयान के अनुसार, शहबाज शरीफ ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ टेलीफोन पर बातचीत की। बयान में कहा गया है कि गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपनी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने राष्ट्रपति की उनके साहसिक नेतृत्व के लिए प्रशंसा की और विदेश मंत्री रुबियो की सक्रिय कूटनीति की सराहना की, जिसने ‘‘पाकिस्तान और भारत को संघर्षविराम समझौते पर पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।’’ शहबाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान के बारे में राष्ट्रपति ट्रंप के सकारात्मक बयान दक्षिण एशिया में स्थायी शांति के लिए सबसे उत्साहजनक हैं, जिसे पाकिस्तान और भारत के बीच सार्थक बातचीत शुरू करके ही संभव बनाया जा सकता है। सरकारी पाकिस्तान टीवी ने कहा, ‘‘इस संदर्भ में शहबाज शरीफ ने जम्मू-कश्मीर, सिंधु जल संधि, व्यापार और आतंकवाद से निपटने सहित सभी लंबित मुद्दों पर भारत के साथ बातचीत करने की पाकिस्तान की इच्छा दोहराई।’’ बहरहाल, हम आपको बता दें कि भारत ने स्पष्ट किया है कि वह पाकिस्तान के साथ केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की वापसी और आतंकवाद के मुद्दे पर ही बातचीत करेगा।
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