केजरीवाल की जीत के मायने क्या हैं ? क्या वाकई मोदी-शाह की जोड़ी हार गयी है ?

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संतोष पाठक । Feb 13 2020 11:03AM

सही मायनों में कहा जाए तो भारतीय जनता पार्टी के उग्र राष्ट्रवाद का जवाब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने संयमित राष्ट्रवाद से दिया, हार्डकोर हिन्दुत्व का जवाब सॉफ्ट हिन्दुत्व से दिया और नतीजा हम सबके सामने है।

दिल्ली की जनता ने एक बार फिर से बोल ही दिया लगे रहो केजरीवाल....प्रचंड बहुमत के साथ अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने दिल्ली में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनने के शीला दीक्षित के रिकॉर्ड की बराबरी तो कर ही ली है लेकिन साथ ही अब केजरीवाल देश के उन गिने-चुने नेताओं की लिस्ट में भी शामिल हो गए हैं जिन्हें लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद जनता ने दिया है।

आखिर इस बड़ी जीत के मायने क्या हैं ? केजरीवाल की बड़ी जीत से क्या बदलने जा रहा है ? क्या वाकई केजरीवाल की यह जीत नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की हार है ? सबसे पहले बात करते हैं केजरीवाल की जीत पर। इसमें कोई शक नहीं कि यह जीत ऐतिहासिक है। इतनी ऐतिहासिक कि 2015 के मुकाबले में 5 सीटें कम होने के बावजूद विरोधियों के पास बोलने के लिए तर्क नहीं है। यह जीत इतनी ऐतिहासिक है कि एक बार फिर से केजरीवाल के समर्थक उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा करने का सपना देखने लगे हैं। लेकिन सही मायनों में यह जीत इससे भी बड़ी है।

बड़ी जीत के बाद खुद अरविंद केजरीवाल ने क्या कहा, क्या किया..आपको एक बार फिर से वह याद दिला देते हैं। वंदे-मातरम, इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय। दिल्लीवालों आपने कमाल कर दिया। आई लव यू...ये थे जीत के बाद पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल के शब्द।

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हकीकत में पहले के तीन नारों ने ही दिल्ली में भाजपा की हार की पटकथा लिख दी थी। हालांकि यह भी एक सच्चाई है कि आंदोलन के समय से ही अन्ना-अरविंद के मंच पर यह नारे गूंजा करते थे लेकिन कुछ बीजेपी का कॉपीराइट कहिये या आक्रामक प्रचार...ये तीनों नारे बीजेपी के पर्यायवाची बन चुके थे। अन्य विरोधी दलों ने भी इन नारों से परहेज कर यह स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि देश में हिन्दुओं और हिंदुत्व की बात करने वाली, राष्ट्रवादी एजेंडे पर चलने वाली सिर्फ एक ही पार्टी है- भाजपा। केजरीवाल ने इस मिथक को ही तोड़ने का प्रयास किया। चुनाव से पहले हनुमान चालीसा सुनाकर, हनुमान मंदिर जाकर और शाहीन बाग से दूरी बनाकर। एक सोची-समझी रणनीति के तहत केजरीवाल ने हिंदुत्व के ब्रॉन्ड आईकॉन बन चुके नरेंद्र मोदी पर भी राजनीतिक हमला करने से पूरी तरह परहेज किया।

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, मनोज तिवारी, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा सहित भाजपा के तमाम दिग्गजों के लगातार उकसाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने शाहीन बाग, नागरिकता कानून जैसे विवादास्पद मुद्दों पर हमेशा संतुलित टिप्पणी की। सही मायनों में कहा जाए तो भाजपा के उग्र राष्ट्रवाद का जवाब केजरीवाल ने अपने संयमित राष्ट्रवाद से दिया, हार्डकोर हिन्दुत्व का जवाब सॉफ्ट हिन्दुत्व से दिया और नतीजा हम सबके सामने है।

इस जीत के लिए अरविंद केजरीवाल ने पूरी तरह से अपने आपको बदल दिया। 2020 का अरविंद केजरीवाल 2014 या 2015 के अरविंद केजरीवाल से पूरी तरह अलग नजर आया। आज से 5-6 साल पहले हर बात पर नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने वाले, भाजपा नेताओं के उकसाने पर तुरंत बयान देने वाले या ट्वीट करने वाले भावुक केजरीवाल की बजाय इस बार एक नये ही केजरीवाल चुनाव लड़ते नजर आए। यह केजरीवाल पहले की तरह जिद्दी तो थे लेकिन बात-बात पर झल्लाते नहीं थे, गुस्सा नहीं करते थे। मुश्किल सवालों का जवाब पहले की तरह चिढ़कर देने की बजाय मुस्कुरा कर टालते नजर आते थे। इस पूरे चुनाव प्रचार अभियान में केजरीवाल ने एक बार भी सीधे मोदी पर निशाना नहीं साधा।

भाजपा की तमाम कोशिशों के बावजूद केजरीवाल बार-बार लगातार अपने कामों और भविष्य के चुनावी वायदों को ही गिनाते नजर आए। भाजपा के नगर निगम के कामकाज पर सवाल खड़े करते नजर आए। भाजपा की सबसे कमजोर नस यानि मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न कर पाने पर हमला करते नजर आए। इन सबके बीच वो बार-बार अपने आपको हिन्दू केजरीवाल और राष्ट्रवादी केजरीवाल साबित करते भी दिखाई दिए और यहीं से उन्होंने भाजपा की हार की पटकथा लिख दी।

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लेकिन क्या यह वाकई भाजपा की हार है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की पराजय है ? राजनीतिक चश्मे से देखा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि अरविंद केजरीवाल मोदी-शाह की जोड़ी को हरा कर ही दिल्ली में तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं लेकिन संघ के नजरिये से देखा जाए तो इस हार में भी जीत छिपी हुई है। भाजपा ने इस देश के चुनावी परिदृश्य को तो बदल ही दिया है। एक जमाने में भारतीय राजनेता मंदिर जाने, हिंदू और हिंदुत्व की बात करने से डरा करते थे। यही नेता खुलकर बेशर्मी की हद तक मुस्लिम टोपी पहन कर उन्हें लुभाने की कोशिश करते नजर आते थे लेकिन 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव ने इस डर को खत्म कर दिया है। इस चुनाव ने यह भी स्थापित कर दिया है कि आप मंदिर जाकर भी, हनुमान चालीसा पढ़कर भी सेक्युलर नेता बने रह सकते हैं। मुसलमानों का वोट पा सकते हैं।

यह भी बिल्कुल साफ है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल देश के अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए एक रोल मॉडल भी बनने जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे या फिर झारखंड के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन...ये सभी अब केजरीवाल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स को समझने की कोशिश कर रहे हैं। अपने राज्य में काम करो, जनता को लुभाने के लिए कुछ बड़ी योजनाओं को लागू करो। हिंदुओं की बात करने से परहेज मत करो। मंदिर जाओ-पूजा-अर्चना करते दिखाई दो। देश के हित की बात करो, पाकिस्तान को हमेशा गाली दो और सबसे बड़ी बात ब्रांड नरेंद्र मोदी पर हमला मत करो। निश्चित तौर पर हम आने वाले दिनों में अब अन्य चुनावी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी इसी रास्ते पर चलते हुए देखेंगे।

-संतोष पाठक

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