उत्तर प्रदेश में भाजपा की कमान जिसको मिलने वाली है, वो नाम बड़ा चौंकाने वाला है

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अजय कुमार । Jun 17 2019 10:57AM

2022 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी किसी बड़े पिछड़े नेता पर भी दांव लगा सकती है। सवाल है कि वो चेहरा कौन होगा? सियासी विशेषज्ञों की मानें तो योगी मंत्रिमंडल में विस्तार के बाद ही इसके बारे में कुछ अंदाजा लगाया जा सकेगा।

उत्तर प्रदेश के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय के मोदी सरकार में शामिल होने के बाद बीजेपी आलाकमान ने प्रदेश संगठन को लीड करने के लिऐ नये अध्यक्ष की तलाश की तलाश शुरू कर दी है। पार्टी के एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत के चलते महेन्द्र नाथ का इस पद पर बने रहना असंभव सा लगता है। यूपी बीजेपी का नया अध्यक्ष कौन होगा ? इसके बारे में निश्चित तौर पर काई भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। क्योंकि मोदी−शाह वाली बीजेपी में ज्यादातर निर्णय चौंकाने वाले ही लिए जाते हैं। चाहे राष्ट्रपति का चुनाव रहा हो या फिर उप−राष्ट्रपति का अथवा यूपी में आश्चर्यजनक रूप से योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जाना। सब अटकलों से परे हुआ। इसीलिए नये प्रदेश अध्यक्ष के बारे में अभी दावे के साथ कुछ भी कहना मुश्किल है, फिर भी अटकलें लगाने वालों का काम जारी है। कई नामों को लेकर तमाम तर्कों के साथ अटकलों का बाजार गर्म है। यह भी कहा जा रहा है कि मौजूदा पदाधिकारियों में से किसी को प्रदेश का नेतृव सौंपने की बजाय किसी नए चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है।

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दरअसल, बीजेपी में एक व्यक्ति, एक पद का सिद्धांत लागू है, लिहाजा कैबिनेट मंत्री की शपथ लेने के बाद महेंद्रनाथ पांडेय को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना होगा। ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के पद पर किसी ब्राह्मण या पिछड़े को मौका मिल सकता है। चर्चा है कि पश्चिम यूपी में जातिगत समीकरण और अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने के लिए बीजेपी पश्चिम के किसी चेहरे को मौका दे सकती है। कहा जा रहा है कि यूपी में जिस तरह से पार्टी आलाकमान ने पूर्वांचल के नेताओं को तरजीह दी है उसकी वजह से पश्चिमी यूपी अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है। इसके अलावा पश्चिम यूपी में बीजेपी को गठबंधन के हाथों सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, अमरोहा और संभल जैसी सीट गंवानी पड़ी थी, जिसकी वजह से भी शीर्ष नेतृत्व पश्चिमी यूपी में नए सिरे से मेहनत कर रहा है।

खैर, बात ब्राह्मण चेहरे की कि जाए तो अध्यक्ष पद के लिए डॉ. महेश शर्मा का नाम लिया जा रहा है। शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं और इस बार उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली है। इसके अलावा गाजीपुर से चुनाव हारने वाले मनोज सिन्हा के बारे में भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें भी संगठन की जिम्मेदारी मिल सकती है। भले ही सिन्हा चुनाव हार जाने के कारण मंत्री नहीं बन पाए हों, लेकिन उनकी साफ−सुथरी छवि हमेशा मोदी को प्रभावित करती रही है।

2022 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी किसी बड़े पिछड़े नेता पर भी दांव लगा सकती है। सवाल है कि वो चेहरा कौन होगा ? सियासी विशेषज्ञों की मानें तो योगी मंत्रिमंडल में विस्तार के बाद ही इसके बारे में कुछ अंदाजा लगाया जा सकेगा। कयास यह लगाए जा रहे हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में पार्टी कई जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश करेगी। किसे कितना नेतृत्व मिला उसी आधार पर अध्यक्ष और संगठन में भी बदलाव हो सकता है। प्रदेश सरकार से कुछ चेहरों को सत्ता से हटाकर संगठन में भेजा जा सकता है।

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वैसे पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्षों की जातिवार नुमांइदगी की बात है तो प्रदेश में छह बार ब्राह्मण नेता माधव प्रसाद त्रिपाठी, कलराज मिश्र (दो बार), केशरी नाथ त्रिपाठी, रमापति राम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत वाजपेयी और महेन्द्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी प्रकार एक बार ठाकुर नेता राजनाथ सिंह, एक बार वैश्य नेता राजेन्द्र कुमार गुप्ता, एक भूमिहार सूर्य प्रताप शाही, चार बार पिछड़े वर्ग के नेता कल्याण सिंह, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार और केशव मौर्या का नाम इस सूची में शामिल हैं। पार्टी ने अभी तक किसी मुस्लिम या दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान नहीं सौंपी है। बीजेपी में किसी मुस्लिम नेता के प्रदेश अध्यक्ष बनने की फिलहाल कल्पना नहीं की जा सकती है। हाँ, मोदी जी जिस तरह से मुसलमानों को लुभाने में लगे हैं, उससे इस संभावना को सिरे से भी खारिज नहीं किया जा सकता है। वहीं दलित नेता के प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावनाओं में दम दिखाई देता है। यूपी में पिछड़ों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में सफल नजर आ रही बीजेपी लम्बे समय से मायावती के दलित वोट बैंक को भी हथियाने के फिराक में है। ऐसे में किसी दलित नेता का यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। मगर समस्या यह है कि अभी बीजेपी में कोई दमदार दलित नेता नजर नहीं आ रहा है जो प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभाल सके और सबको साथ लेकर चल सके।

बहरहाल, इस समय जो नाम चर्चा में हैं उसके अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, विधान परिषद सदस्य विद्यासागर सोनकर, लक्ष्मण आचार्य और सांसद महेश शर्मा में से किसी को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। गौरतलब है कि 1980 में स्थापित भारतीय जनता पार्टी के डॉ. महेन्द्र नाथ पांडेय 14वें प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिनकी जगह नये अध्यक्ष बनाने की कवायद चल रही है। बात पूर्व के उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्षों की कि जाए तो यूपी बीजेपी के पहले प्रदेश अध्यक्ष माधवकान्त त्रिपाठी थे। उसके बाद कल्याण सिंह, राजेन्द्र कुमार गुप्त, कलराज मिश्र (दो बार), राजनाथ सिंह, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार, केसरी नाथ त्रिपाठी, रमापतिराम त्रिपाठी, सूर्य प्रताप शाही, डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी और केशव प्रसाद मौर्य भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हुए। वर्तमान में महेन्द्र नाथ पांडेय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

अटकलें यह भी लग रही हैं कि बीजेपी आलाकमान किसी अगड़ी जाति के नेता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप सकता है। भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ऐसा नेता मुफीद रहेगा जो सवर्ण और पिछड़ों के साथ दलित वोट बैंक को सहेज कर रख सके। इस हिसाब से गौतमबुद्धनगर के सांसद डॉ. महेश शर्मा का नाम भी चर्चा में है। उनके पास सरकार में काम करने का अनुभव है और शर्मा संगठन के ही व्यक्ति माने जाते हैं। डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा को भी संगठन में लाकर एक प्रयोग किया जा सकता है। इसी क्रम में बीजेपी के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक भी अध्यक्ष पद के लिए संगठन की दृष्टि से उपयुक्त माने जा रहे हैं। अगर भाजपा पिछड़े चेहरों पर दांव लगाने की सोचेगी तो सबसे पहला नाम स्वतंत्र देव सिंह का है।

-अजय कुमार

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