आमदनी के लिए केदारनाथ यात्रियों के साथ वन्यजीवों का जीवन संकट खतरे में

Kedarnath temple
ANI

पर्यावरण की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील बनता जा रहा है। खतरों के लिहाज से हिमस्खलन की तीन श्रेणियां होती है। पहला रेड जोन क्षेत्र, जहां हिमस्खलन में बर्फ का प्रभावी दबाव तीन टन प्रति वर्गमीटर होता है।

धार्मिक पर्यटन से ज्यादा कमाई के लालच में उत्तराखंड में यात्रियों के साथ ही जैव विविधता और वन्य जीवों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। केदारनाथ में हेलीकॉप्टर हादसे में 6 लोगों की मौत का हादसा नया नहीं है। पिछले 9 सालों में केदारनाथ में पांच हेलीकॉप्टर दुर्घटनाए हो चुकी हैं। वर्ष 2020 में हेलीकॉप्टर के ऊंचाई की निर्धारित दूरी के उल्लंघन के 74 मामले सामने आ चुके हैं। इसकी तहत हेलीकॉप्टर 250 मीटर से नीची उड़ान नहीं भर सकते। इसके बावजूद पर्यटन क्षेत्र से लोगों और सरकारी तंत्र ने कोई सबक नहीं सीखा। मौजूदा हालात को देख कर यही लगता है कि सरकारी तंत्र को और किसी बड़े हादसे का इंतजार है, शायद इसी के बाद ऐसे मामले पर अंकुश लग सके। हेलीकॉप्टर संचालित करने वाला कंपनियां सिर्फ अपना मुनाफा वसूलने के लिए धार्मिक यात्रियों की जान जोखिम में डाल रही हैं। आश्चर्य की बात यह है कि सरकारी एजेंसियां कंपनियों की मनमानी रोकने में नाकाम रही हैं।

वर्ष 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार को हेलीकॉप्टर की उड़ान को नियंत्रित करने और संचालन की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे। हवाई उड़ान के लिए यह आवश्यक है कि हेलीकॉप्टर 2 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे नहीं उड़े। इसकी ध्वनि की गति भी 50 डेसीबल निर्धारित की गई थी। हेलीकॉप्टर के उड़ान भरते वक्त और उतरते वक्त ही ध्वनि की गति अधिक होने की छूट दी गई थी। बेहतरीन रखरखाव वाले हेलीकॉप्टर्स में ध्वनि की आवाज को निर्धारित मानदंडों के अनुरूप रखा जा सकता है, जबकि पुराने हेलीकॉप्र्टस के साथ अधिक ध्वनि की समस्या आती है। नीची उड़ान भरने से हेलीकॉप्टर्स के दुर्घटनाग्रस्त होने के खतरे के अलावा तेज आवाज से इस इलाके का वन्यजीवन भी प्रभावित होता है। वन्यजीवों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।

इसे भी पढ़ें: विकास परियोजनाओं की सौगात, PM मोदी बोले- ये दशक उत्तराखंड का दशक है

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वर्ष 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक नीची उड़ान भरने होने वाले भारी ध्वनि प्रदूषण से वन्यजीवन प्रभावित हो रहा है। वन्यजीवों के स्वभाविक बर्ताव में बदलाव आ रहा है। हिमनद और पर्यावरण विशेषज्ञ पूर्व में ही केदारनाथ में बढ़ते पर्यटन के दवाब से प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी की चेतावनी दे चुके हैं। इसके बावजूद पर्यटन क्षेत्र के लोगों और सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ में इस साल करीब 14.7 लाख यात्री पहुंचे।  इनमें करीब एक लाख तीन हजार यात्री हेलीकॉपटर के जरिए पहुंचे। यात्रियों की यह संख्या ही इस बात का प्रमाण है कि केदारनाथ का पर्वतीय इलाका कितना भारी दवाब झेल रहा है। इससे इस क्षेत्र का पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा रहा है। इस इलाके में बर्फीले तूफान और भू-स्खलन की घटनाएं आम हो चुकी हैं।

इसे भी पढ़ें: PM मोदी ने किए केदारनाथ और बदरीनाथ के दर्शन, बोले- अपने गौरव को फिर प्राप्त कर रहे हैं काशी, उज्जैन, अयोध्या

पर्यावरण की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील बनता जा रहा है। खतरों के लिहाज से हिमस्खलन की तीन श्रेणियां होती है। पहला रेड जोन क्षेत्र, जहां हिमस्खलन में बर्फ का प्रभावी दबाव तीन टन प्रति वर्गमीटर होता है। इतनी अधिक मात्रा में बर्फ के तेजी से नीचे खिसकने से भारी तबाही होती है। दूसरा ब्लू जोन, जहां बर्फ का प्रभावी दबाव तीन टन प्रति वर्ग मीटर से कम होता है। आपदा के लिहाज से यह रेड जोन से थोड़ा कम खतरनाक होता है। तीसरा येलो जोन, फिलहाल इन क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटनाएं बेहद कम होती हैं और यदि हुई तो जानमाल के नुकसान की संभावना कम रहती है।

केदारनाथ क्षेत्र में पिछले एक माह के भीतर हिमस्खलन की तीन घटनाएं हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जहां गर्मी और बारिश में बदलाव देखने को मिल रहा, वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सितंबर-अक्तूबर माह में ही बर्फबारी होने से हिमस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। जिन क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटना हुई, वे उच्च हिमालयी क्षेत्र हैं और वहां पहाड़ों पर तीव्र ढलान है, जिससे ग्लेशियरों पर गिरने वाली बर्फ गुरुत्वाकर्षण के चलते तेजी से नीचे खिसक रही है। लद्दाख क्षेत्र में कारगिल की पहाडिय़ां, गुरेज घाटी, हिमाचल प्रदेश में चंबा घाटी, कुल्लू घाटी और किन्नौर घाटी के अलावा उत्तराखंड में चमोली और रुद्रप्रयाग के उच्च हिमालयी क्षेत्र हिमस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं और यहां पूर्व में हिमस्खलन की बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। जिस रफ्तार से समूचा हिमालय क्षेत्र पर्यावरण संबंधी बदलाव झेल रहा है, वक्त रहते हुए उसे रोकने के लिए यदि बड़े कदम नहीं उठाए गए तो प्राकृतिक और मानवजनित हादसों को रोकना मुश्किल होगा।

- योगेन्द्र योगी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़