देश और समाज सेवा की ऐसी मिसाल कम ही देखने-सुनने को मिलती है

eating meal
अशोक मधुप । Apr 2 2022 4:52PM

ये घटना है उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के धामपुर नगर की। 1857 की क्रांति के समय उत्तर प्रदेश के धामपुर जनपद बिजनौर के सेठ हरसुख राय लोहिया चर्चित हस्ती थे। इस जंग ए आजादी के दौरान इनकी बेटी की शादी थी। बारात आई हुई थी।

किसी के यहां बेटी की शादी हो। बारात घर पर आई हुई हो, ऐसी हालत में क्या कोई बारात के लिए तैयार खाना किसी अनजान व्यक्तियों को खिला सकता है। कल्पना भी नहीं होती, किंतु एक भामाशाह ने ऐसा किया। आज ऐसी महान आत्मा और उसके परिवार को कोई जानता भी नहीं। 1857 की क्रांति के समय उनके शहर से अंग्रेज फौज के विद्रोही जवान की टुकड़ी जा रही था। उन्हें पता चला। घर से भागकर शहर के बाहर सड़क पर पहुँचे। इन जवानों को रोका। अपने साथ घर चल कर भोजन करने का आग्रह किया। उन सबको सम्मान के साथ अपनी हवेली लिवा लाए। बारातियों को समझा कर खाना खाने से रोका। कहा− यह आजादी के दीवाने हैं। पता नहीं कब से इन्हें अच्छा भोजन नहीं मिला। आप भोजन बाद में खा लेना। पहले इन्हें खा लेने दो। अब तो सब व्यवस्थाएं सरलता से हो जाती हैं। एक बात 1857 की उस समय की है, जब शादी ब्याह के लिए एक−एक छोटा मोटा सामान सब परिवार को एकत्र करना पड़ता था।

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: क्या आप जानते हैं विश्व के सबसे बड़े संविधान के रोचक अज्ञात तथ्यों के बारे में ?

ये घटना है उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के धामपुर नगर की। 1857 की क्रांति के समय उत्तर प्रदेश के धामपुर जनपद बिजनौर के सेठ हरसुख राय लोहिया चर्चित हस्ती थे। इस जंग ए आजादी के दौरान इनकी बेटी की शादी थी। बारात आई हुई थी। इनकी हवेली में बारात के खाने का प्रबंध था। शानदार व्यवस्था थी। तरह-तरह के भोजन और मिठाई बनी थीं। इन्हें पता चला कि अंग्रेज सेना के भारतीय जवानों का एक दल विद्रोह करके रुड़की से बरेली जा रहा है। शहर से गुजर रहे आजादी के मस्तानों को इन्होंने हाथ जोड़कर रोक लिया। अपनी हवेली ले आये। सबसे कहा- भोजन करो। पता नहीं कबसे ठीक से खाना नहीं मिला होगा। बारातियों को भी हाथ जोड़े। कहा- कुछ देर रुक जाएं। इनके बाद आप जीम लेना। ये नजारा देख बाराती भी क्रांतिकारी जवानों की सेवा में लग गये। कोई दाल परोसने लगा। कोई चावल। कोई मिठाई खिलाने में लग गया। सूचना पर शहरवासी भागकर इनकी हवेली आने लगे। वह भी ये नजारा देखकर भाव विभोर हो गए। वे सब भी इन क्रांतिकारियों की सेवा में लग गए। शहरवासी भी जवानों के लिए अपने घर से कुछ न कुछ लेकर आये। काफी राशन एकत्र करके इन्हें सौंपा ताकि इन्हें रास्ते में भोजन की कमी न रहे। इन वीरों का बारात से बड़ा स्वागत हुआ। क्या नजारा होगा। ऐसे देशभक्त भामाशाह हरसुख राय लोहिया को आज धामपुर में कोई जानता भी नहीं। धामपुर में पूरा लोहियों का मुहल्ला है लोहियान। किसी को कुछ पता नहीं। हो सकता है अंग्रेजों ने पूरे परिवार का कत्ल कर दिया हो।

1857 की क्रांति के समय बिजनौर में तैनात रहे सदर अमीन सर सैयद ने उस समय की घटनाओं की डायरी लिखी। नाम दिया सरकशे बिजनौर। वे पुस्तक में कहते हैं कि सैपर्स एंड माइनर्स की एक कंपनी के तीन सौ जवान विद्रोही हो गए। इन्हें सहारनपुर में कमांडर-इन-चीफ के शिविर में शामिल होने के लिए भेजा गया था, पर ये रुड़की लौट आई। वहां से बरेली के लिए चले। 20 मई को इन्होंने नजीबाबाद में नवाब महमूद को बागवत के लिए तैयार किया। खुद बरेली के लिए निकल गए। इनके आने की सूचना पर नगीना तहसील प्रशासन सचेत था। तहसील कार्यालय का दरवाजा बंद था, लेकिन खिड़की खुली रह गई। अचानक तीन सिपाही खिड़की के रास्ते तहसील कार्यालय में घुसे। तहसीलदार से सामान की मांग की। इसी दौरान कई अन्य जवानों ने तहसील कार्यालय में घुसकर तहसीलदार को संगीनों के घेरे में ले लिया। उसे जबरदस्ती दरबार की इमारत में ले गए। उन्होंने बंदूक की बट मार कर संदूक तोड़ दिए। खजाने को लूटने के लिए खजाने का ताला तोड़ दिया। इस दौरान तहसीलदार किसी तरह फरार हो गए। बाद में वे दूसरे रास्ते से छिपने के लिए वापस आ गए। उन्होंने कलेक्टर को रिपोर्ट भेजी है। तहसीलदार के सामान को लूटने और बाजार में तोड़फोड़ करने के लिए शहर के कई शरारती सैनिकों में शामिल हो गए थे। इन्होंने एक बहुत धनी व्यक्ति भगीरथ को भी लूट लिया। इन्होंने तहसील में खजाने में जमा 10344 रुपये और 14 आना लूट लिए।

इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: महात्मा गांधी के खिलाफ जाने से भी नहीं कतराई थीं सुचेता कृपलानी, अपने साथ रखती थीं साइनाइड

नगीना के बाद सैपर एंड माइनर कंपनी के सोल्जर्स धामपुर पंहुचे। उसकी खबर पहले धामपुर पहुंच चुकी थी। तहसीलदार ने अपना कार्यालय बंद कर दिया था, जबकि उसके आदमी अंदर अलर्ट पर थे। सर सैयद कहते हैं कि गनीमत यह भी रही कि आज ही के दिन हर सुखराय लोहिया के घर लड़की की बारात आई हुई थी। उसने बारात के लिए तैयार खाना उत्तम मिठाइयाँ इन जवानों को बड़े प्यार से खिलाईं। नगरवासियों ने उन्हें राशन भी दिया। सैनिकों ने वहां कोई परेशानी नहीं की और मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए। सर सैयद ने यह नहीं लिखा कि अंग्रेजों ने वापस जनपद पर कब्जा करने के बाद हरसुख लाल लोहिया पर क्या कार्रवाई की। जबकि विद्रोही जवानों को भोजन कराना बड़ा अपराध था। धामपुर नगर और बिजनौर जनपद के रहने वालों ने भी इस महान आत्मा का पता लगाने का प्रयास नहीं किया कि उनका क्या हुआ? हो सकता है कि अंग्रेज ने इन्हें फांसी दे दी हो। या अंग्रेजों के जिले पर कब्जा होने के बाद सरकारी जुल्म के डर से ये ही शहर छोड़कर कहीं दूर चले गए हों। आजादी के अमृत महोत्सव में भी हरसुख लाल लोहिया  किसी को याद नहीं आए।

-अशोक मधुप 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़