साक्षात्कारः सीडीएस बिपिन रावत के करीबी रहे मेजर जनरल अनुज माथुर से बातचीत

Major General Anuj Mathur
डॉ. रमेश ठाकुर । Dec 14 2021 12:25PM

जनरल बिपिन रावत के करीबी रहे पूर्व सेनाधिकारी ने बताया कि सीडीएस प्रत्येक काम में वह पारदर्शिता चाहते थे। सेना में बिचौलियों का कभी दखल हुआ करता था। जैसे हथियार खरीदना, सैन्य उपकरणों का विदेशों से मंगवाना आदि में बाहरी लोगों का प्रत्यक्ष दखल होता था, उन्हें खत्म कर दिया गया था।

सीडीएस बिपिन रावत के अंडर सालों तक सैन्य सेवाएं देने वाले मेजर जनरल अनुज माथुर को अब भी विश्वास नहीं होता कि हेलीकॉप्टर हादसे में देश के कई टॉप सेना अधिकारियों की असमय मौत हो चुकी है। विश्वास इसलिए भी नहीं होता कि इतने अत्याधुनिक तकनीक से लैस हेलीकॉप्टर से हादसा हो सकता है। उनकी नजरों में ये हादसा है या साजिश? आदि प्रश्नों को लेकर डॉ0 रमेश ठाकुर ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-

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प्रश्न: कभी न भूलने वाले इस हादसे को आप कैसे देखते हैं?

उत्तर- शब्द नहीं है कि मैं कुछ कह सकूं, जेहन से घटना की सुनी बातें निकल नहीं रहीं। सीडीएस रावत को सेना सुधारक कहा जाने लगा था। क्या-क्या सुधार हुआ और होने वाला था मैंने खुद अपनी आंखों से देखा। वर्षों मैंने उनके साथ काम किया। बहुत कुछ सीखा मैंने उनसे, उनका काम करने का तरीका औरों से अलहदा हुआ करता था। प्रत्येक काम में वह पारदर्शिता चाहते थे। सेना में बिचौलियों का कभी दखल हुआ करता था। जैसे हथियार खरीदना, सैन्य उपकरणों का विदेशों से मंगवाना आदि में बाहरी लोगों का प्रत्यक्ष दखल होता था, उन्हें सीडीएस ने खत्म कर दिया था।

प्रश्न: घटना के संबंध में आपको कैसे पता चला?

उत्तर- मेरी पत्नी के मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन आया, जिसमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के हेलीकॉप्टर क्रैश होने की खबर थी। एकाएक तो विश्वास नहीं हुआ। मैंने तुरंत न्यूज़ चैनल ऑन किया तो सारे न्यूज़ चैनलों पर खबर ब्रेक होती दिखी। खबर में बताया जा रहा था कि तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कुन्नूर में सेना के वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों को ले जा रहा भारतीय वायुसेना का हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। फिर भी मुझे विश्वास नहीं हुआ, मैंने एकाध साथी कर्नलों और सेना के कुछ अधिकारियों से बात की, सभी ने खबर को सच बताया।

  

प्रश्न: आपने उनके साथ काम भी किया था, करीबी संबंध भी थे?

उत्तर- रावत साहब मुझसे तीन साल सीनियर थे। राजस्थान के जोधपुर में हमने साथ-साथ युद्धाभ्यास किया था। मेरी अच्छी केमिस्ट्री थी उनसे। मैं सेना से 2018 में जीओसी पद से रिटायर हुआ हूं और कई वर्षों तक जनरल बिपिन रावत के अंडर काम किया। एक नहीं, बल्कि कई जगहों पर उनके साथ रहा। मुम्बई, दिल्ली, जोधपुर, जयपुर समेत कई जगहों पर पोस्टिंग के दौरान जनरल रावत मेरे बॉस थे। उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। उनके निधन से देश को तो नुकसान हुआ ही है, पर व्यक्तिगत रूप से उनकी असमय मौत ने मुझे झकझोर कर रख दिया है।

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प्रश्न: बताते हैं कि उनके सहकर्मी उनसे बहुत खुश रहते थे?

उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं। बॉस के रूप में वो सबके परफेक्ट बॉस हुआ करते थे। उनके अधीन काम करने का अलग ही मजा था। उनका मजाकिया अंदाज सबको भाता था। वो जब हास्य करने पर उतर आते थे तो भूल जाते थे कितने बड़े अफसर हैं। मैंने और बिपिन रावत ने बॉम्बे आर्मी हैडक्वार्टर में एक साथ काम किया। साल भर बाद रावत आर्मी कमांडर बनकर पूना चले गए। इसी वर्ष 2007 में दिल्ली आर्मी हेडक्वार्टर में पोस्टिंग के दौरान रावत बिग्रेडियर बने। मैं जयपुर में जब बतौर जीओसी सेवाएं दे रहा था तब भी वह आर्मी चीफ के तौर पर मेरे बॉस थे।

प्रश्न: कुछ लोग हादसे की वजह कुछ और बता रहे हैं?

उत्तर- देखिए, गंभीरता से जांच की जरूरत तो है। बाकी ब्लैक बाक्स मिल चुका है। जो घटना की सच्चाई बताने के लिए पर्याप्त है। सेना में अनुशासन बहुत मायने रखता है। बड़ा अधिकारी प्रोटोकॉल में होता है। कहीं भी आता है तो उन्हें फोलो करना पड़ता है। जिस हेलीकॉप्टर से हादसा हुआ उसे अति सुरक्षित माना जाता है। इसलिए शक इसी बात का है, हादसा फिर कैसे हुआ।

प्रश्न: साथी अफसरों के साथ उनका आपसी कम्यूनिकेशन कैसा रहता था?

उत्तर- बड़े अफसर के पास अक्सर अपनी समस्यओं को पहुंचाने में लोग हिचकते हैं, मगर बिपिन रावत के साथ ये बात नहीं थी। हर किसी के लिए उनकी अप्रोच एक जैसी हुआ करती थी। दूसरों के काम की उनको अच्छी समझ थी। उनके काम करने का तरीका और नॉलेज का हर अफसर कायल था। उनमें तेजी से निर्णय लेनी की गजब की क्षमता थी। उनके निर्णय पर फिर कोई सवाल उठाने की गुंजाइश ही नहीं बचती थी। पुलगांव महाराष्ट्र हादसे में लिया गया निर्णय काफी चर्चित रहा।

-डॉ0 रमेश ठाकुर

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