रेलवे स्टेशनों की उद्घोषणाएँ कभी कानफाड़ू लगती थीं, अब सुनने को तरस गये हैं

railway station

आलम यह कि स्टेशन में रात-दिन होने वाली जिन उद्घोषणाओं से पहले लोग झुंझला उठते थे, आजकल वही उनके कानों में मिश्री घोल रही है। माइक बजते ही लोग ठंडी सांस छोड़ते हुए कहने लगते है़ं... आह बड़े दिन बाद सुनी ये आवाज...उम्मीद है जल्द ट्रेनें चलने लगेंगी।

कोरोना के कहर ने वाकई दुनिया को गांव में बदल दिया है। रेलनगरी खड़गपुर का भी यही हाल है। बुनियादी मुद्दों की जगह केवल कोरोना और इससे होने वाली मौतों की चर्चा है। वहीं दीदी-मोदी की  जगह ट्रम्प और जिनपिंग ने ले ली है। सौ से अधिक ट्रेनें, हजारों यात्रियों का रेला, अखंड कोलाहल और चारों पहर ट्रेनों की गड़गड़ाहट जाने कहां खो गई। हर समय व्यस्त नजर आने वाला खड़गपुर रेलवे स्टेशन इन दिनों बाहर से किसी किले की तरह दिखाई देता है क्योंकि स्टेशन परिसर में लॉक डाउन के दिनों से डरावना सन्नाटा है।

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स्टेशन के दोनों छोर पर बस कुछ सुरक्षा जवान ही खड़े नजर आते हैं। मालगाड़ी और पार्सल ट्रेनें जरूर चल रही हैं। आलम यह कि स्टेशन में रात-दिन होने वाली जिन उद्घोषणाओं से पहले लोग झुंझला उठते थे, आजकल वही उनके कानों में मिश्री घोल रही है। माइक बजते ही लोग ठंडी सांस छोड़ते हुए कहने लगते है़ं... आह बड़े दिन बाद सुनी ये आवाज...उम्मीद है जल्द ट्रेनें चलने लगेंगी। रेल मंडल के दूसरे स्टेशनों का भी यही हाल है। यदा-कदा मालगाड़ी और पार्सल विशेष ट्रेनों के गुजरने पर ही इनकी मनहूसियत कुछ दूर होती है। हर चंद मिनट पर पटरियों पर दौड़ने वाली तमाम मेल, एक्स्प्रेस और लोकल ट्रेनों के रैक श्मशान से सन्नाटे में डूबी वाशिंग लाइन्स पर मायूस-सी खड़ी हैं। मानो कोरोना के डर से वे भी सहमी हुई हैं, नई पीढ़ी के लिए लॉक डाउन अजूबा है, तो पुराने लोग कहते हैं ऐसी देश बंदी या रेल बंदी न कभी देखी न सुनी। बल्कि इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। कोरोना का कहर न होता तो खड़गपुर इन दिनों नगरपालिका चुनाव की गतिविधियों में आकंठ डूबा होता।

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चौक-चौराहे, सड़क, पानी, बिजली और जलनिकासी की चर्चा से सराबोर रहते, लेकिन कोरोनाकाल से शहर का मिजाज मानो अचानक इंटरनेशनल हो गया। लोकल मुद्दों पर कोई बात ही नहीं करता। एक कप चाय या गुटखे की तलाश में निकले शहरवासी मौका लगते ही कोरोना के बहाने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा में व्यस्त हो जाते हैं। सबसे ज्यादा चर्चा चीन की हो रही है। लोग गुटखा चबाते हुए कहते हैं...सब चीन की बदमाशी है...अब देखना है अमेरिका इससे कैसे निपटता है...इन देशों के साथ ही इटली, ईरान और स्पेन आदि में हो रही मौतों की भी खूब चर्चा हो रही है। कोरोना के असर ने शहर में   हर किसी को अर्थ शास्त्री बना दिया है। एक नजर पुलिस की गाड़ी पर टिकाए मोहल्लों के लड़के कहते हैं...असली कहर तो बच्चू लॉक डाउन खुलने के बाद टूटेगा... बाजार-काम धंधा संभलने में जाने कितना वक्त लगेगा। कोरोना से निपटने के राज्य व केंद्र सरकार के तरीके भी जन चर्चा के केंद्र में हैं।

-तारकेश कुमार ओझा

(लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिषठ पत्रकार हैं।)

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