जब पति पत्नी दोनों तलाक पर सहमत हो तो कैसे लिया जाए तलाक

divorce law
जे. पी. शुक्ला । Jan 14 2022 4:56PM

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पति और पत्नी दोनों को एक से अधिक आधारों पर तलाक की डिक्री द्वारा अपनी शादी को भंग करने का अधिकार दिया गया है, जिसे विशेष रूप से धारा 13 में वर्णित किया गया है।

यदि किसी भी पति या पत्नी को अपने वैवाहिक जीवन में आपसी सामंजस्य या किसी और वजह से कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और कानूनी तौर पर उन दोनों ने अपने तरीके से अलग होने का फैसला कर लिया है तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार आपसी तलाक के लिए एक याचिका दायर की जा सकती है। और अगर उन दोनों में से कोई भी पक्ष तलाक लेने के लिए तैयार नहीं है तो इसके लिए केस भी  फाइल किया जा सकता है जिसे 'कंटेस्टेड डिवोर्स’  कहा जाता है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पति और पत्नी दोनों को एक से अधिक आधारों पर तलाक की डिक्री द्वारा अपनी शादी को भंग करने का अधिकार दिया गया है, जिसे विशेष रूप से धारा 13 में वर्णित किया गया है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 28 और तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 10A भी आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है।

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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत आवश्यक शर्तें इस प्रकार हैं:

(i) जब पति और पत्नी एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि से अलग-अलग रह रहे हों।

(ii) जब वे दोनों  एक साथ रहने में असमर्थ होते हैं।

(iii) जब पति और पत्नी दोनों ने परस्पर सहमति व्यक्त की है कि विवाह पूरी तरह से टूट गया है और इसलिए विवाह को भंग कर देना चाहिए। 

इन परिस्थितियों में आपसी सहमति से तलाक दायर किया जा सकता है। भारतीय कानूनी प्रणाली के अनुसार तलाक की प्रक्रिया मूल रूप से तलाक की याचिका दायर करने के साथ शुरू होती है।

तलाक की याचिका कहाँ दायर करें?

1.  अदालत वहां की होनी चाहिए जहां तलाक की मांग करने वाले जोड़े आखिरी बार रहते थे।

2. न्यायालय वह हो सकता है जहां विवाह अनुष्ठापित किया गया था।

3. न्यायालय वह हो सकता है जहां पत्नी वर्तमान में निवास कर रही हो।

भारत में तलाक की पूरी प्रक्रिया तलाक की याचिका दायर करने से ही शुरू हो जाती है जो तलाक की प्रक्रिया से जुड़े पक्षों द्वारा भरी जाती है और उसी की सूचना दूसरे पक्ष को दी जाती है।

आपसी तलाक के मामले में आवश्यक प्रक्रिया:

चरण 1: तलाक के लिए दायर करने की याचिका

सबसे पहले तलाक की डिक्री के लिए विवाह के विघटन के लिए एक संयुक्त याचिका दोनों पति-पत्नी द्वारा इस आधार पर फैमिली कोर्ट में प्रस्तुत की जानी है कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं और वे विवाह को भंग करने के लिए परस्पर सहमत हैं या वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए एक दूसरे से अलग रह रहे हैं। इसके बाद इस याचिका पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होंगे।

चरण 2: न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना और याचिका का निरीक्षण

याचिका दाखिल करने के बाद दोनों पक्षों को फैमिली कोर्ट में पेश होना होगा। दोनों पक्ष अपने-अपने वकील/वकील पेश करेंगे। अदालत पेश किए गए सभी दस्तावेजों के साथ याचिका पर गंभीरता से विचार करेगी।

अदालत पति-पत्नी के बीच सुलह का प्रयास भी कर सकती है लेकिन यदि यह संभव नहीं होता है तो मामला आगे की कार्रवाई के लिए आगे बढ़ता है।

चरण 3: शपथ पर बयानों की रिकॉर्डिंग के लिए आदेश पारित करना

अदालत द्वारा याचिका की जांच और उसकी संतुष्टि के वह शपथ पर पार्टी के बयान दर्ज करने का आदेश दे सकती है।

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चरण 4: पहला प्रस्ताव पारित किया जाता है और दूसरे प्रस्ताव से पहले 6 महीने की अवधि दी जाती है

एक बार बयान दर्ज हो जाने के बाद अदालत द्वारा पहले प्रस्ताव पर एक आदेश पारित किया जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों को तलाक के लिए छह महीने की अवधि दी जाती है, इससे पहले कि वे दूसरा प्रस्ताव दायर कर सकें। दूसरा प्रस्ताव दायर करने की अधिकतम अवधि पारिवारिक न्यायालय में तलाक की याचिका पेश करने की तारीख से 18 महीने की होती है।

चरण 5: दूसरा प्रस्ताव और याचिका की अंतिम सुनवाई

एक बार दोनों पार्टियों ने कार्यवाही के साथ आगे बढ़ने और दूसरे प्रस्ताव के लिए उपस्थित होने का फैसला कर लिया है तो वे अंतिम सुनवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं। इसमें फ़ैमिली कोर्ट के समक्ष पेश होने वाले और बयान दर्ज करने वाले पक्ष शामिल होते हैं। 

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अदालत के फैसले पर पार्टियों को दी गई 6 महीने की अवधि को माफ किया जा सकता है। इसलिए जिन पार्टियों ने गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी या पार्टियों के बीच किसी भी अन्य लंबित मुद्दों सहित अपने मतभेदों को वास्तव में सुलझा लिया है, इस छह महीने में इसे माफ किया जा सकता है।

चरण 6: तलाक की डिक्री:

आपसी तलाक में चूंकि दोनों पक्षों ने सहमति दी होती है इसलिए गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी, भरण-पोषण, संपत्ति आदि से संबंधित विवादों से संबंधित मामलों में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। इस प्रकार विवाह के विघटन पर अंतिम निर्णय के लिए पति-पत्नी के बीच पूर्ण सहमति होती है।

यदि अदालत पक्षकारों को सुनने के बाद संतुष्ट हो जाती है कि याचिका में आरोप सही हैं और सुलह और सहवास की कोई संभावना नहीं हो सकती है तो वह विवाह को भंग करने की घोषणा करते हुए तलाक की डिक्री पारित कर सकती है। 

तलाक की डिक्री अदालत द्वारा पारित होने के बाद तलाक फाइनल हो जाता है।

- जे. पी. शुक्ला

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