कर्मचारी भविष्य निधि का ऐसे उठाइए लाभ, पर जरूर बरतें यह सावधानियां

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कमलेश पांडे । Jan 25 2020 12:39PM

ईपीएफ का नकद और ट्रांसफर दो स्तर पर नुकसानदायक हो सकता है। नियम के अनुसार सेवानिवृत्ति के समय, चिकित्सकीय आवश्यकता या दो माह बेरोजगार रहने की स्थिति में कर्मचारी भविष्य निधि में से कोई भी कर्मचारी अपनी राशि निकाल सकता है।

देश-प्रदेश में कोई भी सेवारत व्यक्ति सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना चाहता है, जिसमें उसके लिये कर्मचारी भविष्य निधि यानि ईपीएफ बहुत सहायक होते हैं। भले ही अधिकतर कर्मचारियों के लिए यह अनैच्छिक बचत होती है, लेकिन सेवानिवृत्ति, असामयिक मृत्यु या अपंगता की स्थिति में कर्मचारी और उसके परिवार के लिये ये अत्यंत लाभदायक होते हैं। क्योंकि इस निधि में कर्मचारी के मासिक वेतन से कुछ अंश यानी कि मूल वेतन का 12.5 प्रतिशत स्रोत पर ही काट कर जमा कर लिया जाता है। साथ ही, इसके बराबर राशि नियुक्तिकर्ता द्वारा भी जमा कराई जाती है, जिस पर 8.5 प्रतिशत की दर से ब्याज भी मिलता है। 

उदाहरण के लिए, यदि कर्मचारी की आयु 25 वर्ष है और उसका तत्कालीन वेतन 20 हजार रुपये है, तो यह मानकर चलें कि ईपीएफ में 8.5 प्रतिशत की दर से ब्याज मिलता है और हर वर्ष उसके वेतन में 5 प्रतिशत की बचत होती है। ऐसे में यदि वह हर माह अपने मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 12 प्रतिशत ईपीएफ में जमा कराता है और उतनी ही राशि उसके नियोक्ता द्वारा भी जमा कराई जाती है, तो सेवानिवृत्ति पर उसको 1.38 करोड़ रुपये की अद्भुत राशि मिलेगी। कर्मचारी भविष्य निधि में जमा होने वाली राशि मासिक रूप से कर्मचारी के वेतन से काटकर उसमें नियोक्ता का अंश 12.5 प्रतिशत मिलाकर उसे में जमा कराया जाता है।

# नौकरी पेशा बदलने पर ऐसे होता है खाता स्थानांतरण

कभी स्थानांतरण या नौकरी बदलने की स्थिति में अगले नियोक्ता द्वारा भी मासिक राशि को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में नियमित तौर पर जमा कराते हैं। इस संगठन का कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इस निधि की सदस्‍यता के लिए अर्हक होने के लिए कामगार को एक वर्ष की लगातार सेवा पूरी करनी होती है और उसे 12 माहों की अवधि के दौरान 240 दिन कार्य कर लिया होना चाहिए। उसके बाद ही कर्मचारियों को मूल वेतन, महंगाई भत्ता और अपने पास रखने के भत्तों की निश्चित दर अंशदान करना होता है। इसी प्रकार नियोक्‍ताओं को भी उसी दर पर अंशदान करना होता है। 

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हालांकि वर्तमान स्वरूप में ईपीएफ का नकद और ट्रांसफर दो स्तर पर नुकसानदायक हो सकता है। नियम के अनुसार सेवानिवृत्ति के समय, चिकित्सकीय आवश्यकता या दो माह बेरोजगार रहने की स्थिति में कर्मचारी भविष्य निधि में से कोई भी कर्मचारी अपनी राशि निकाल सकता है। जबकि, अधिकतर लोग अपनी पिछली नौकरी छोड़ने के दो माह बाद भविष्य निधि राशि को नए खाते में स्थानांतरित करने के स्थान पर उसमें सहेजी राशि वापस निकलवा लेते हैं। क्योंकि नई कंपनी में उन्हें नया भविष्य निधि खाता मिल जाता है। इस प्रकार एक बड़ी राशि मिल जाती है, जो काफी काम में सहायक हो सकती है, किन्तु इससे सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाली कुल राशि में उतनी राशि व सेवानिवृत्ति तक के समय तक उस राशि पर मिलने वाले ब्याज की राशि कम हो जाती है। अतएव ईपीएफ राशि निकलवाने की जगह उसे नए खाते में स्थानांतरित कराना अधिक उपयुक्त होता है।

किसी भी कर्मचारी के लिये यह श्रेयस्कर है कि जैसे ही वे नई संस्था में कार्यभार ग्रहण करें, भविष्य निधि स्थानांतरित कराने की प्रक्रिया आरंभ कर देनी चाहिए। क्योंकि यह भविष्य निधि की खाता संख्या एक अद्वितीय एल्फान्यूमेरिक अंकों का संयोजन होता है, जिसके पहले दो अक्षर क्षेत्रीय भविष्य निधि कार्यालय के बारे में और अगले पांच अंक नियोक्ता के कोड को बताते हैं, फिर कर्मचारी कोड लिखा होता है।

# व्यवहारिक रूप में ऐसे कार्य करता है ईपीएफ संगठन

भारत का कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, मुख्य रूप से 4 आंचलिक कार्यालयों में विभाजित है जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में है। इनके मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतिरिक्त केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त होते हैं। ये आंचलिक कार्यालय, फिर क्षेत्रीय कार्यालयों में और क्षेत्रीय कार्यालय उप-क्षेत्रीय कार्यालयों व जिला कार्यालयों में विभाजित होते हैं। क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य अधिकारी क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त और उप-क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य अधिकारी कनिष्ठ ग्रेड क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त होते हैं। देश के छोटे जिलों या क्षेत्रों में जिला कार्यालय होते हैं जहां प्रवर्तन अधिकारी स्थानीय प्रतिष्ठानों का निरीक्षण और सदस्य अथवा नियोक्ता शिकायतों के लिए तैनात होते हैं। 

दरअसल, भारत में भविष्‍य निधि संबंधी शासी अधिनियम है जो कर्मचारी भविष्‍य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम 1952 (ईपीएफ एण्‍ड एमपी एक्‍ट) कहलाता है। यह अधिनियम औद्योगिक कामगारों के उनकी सेवानिवृत्ति के बाद के भविष्‍य के लिए और मृत्‍यु हो जाने की दशा में उनके आश्रितों के लिए व्‍यवस्‍था करने के लिए कुछ प्रावधान बनाने के मुख्‍य उद्देश्‍य से बनाया गया था। यह‍ अधिनियम जम्‍मू और कश्‍मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है। यह प्रत्‍येक प्रतिष्‍ठान के लिए लागू होता है, जो अधिनियम की अनुसूची-1 में विनिर्दिष्‍ट एक या अधिक उद्योगों या केन्‍द्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किसी कार्यकलाप में रत है और 20 या इससे अधिक व्‍यक्तियों को नियुक्‍त किया है। अधिनियम में कामगारों और उनके आश्रितों के लिए वृद्धावस्‍था की जोखिमों, सेवानिवृत्ति, सेवामुक्‍त, छंटनी या कामगार की मृत्‍यु हो जाने पर बीमा की भी व्‍यवस्‍था है।

# कर्मचारी भविष्य निधि संगठन का ये है लक्ष्य, जिससे मिलेगा सबको फायदा

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, भारत की एक राज्य प्रोत्साहित अनिवार्य अंशदायी पेंशन और बीमा योजना प्रदान करने वाला शासकीय संगठन है। यह अपने सदस्यों और वित्तीय लेनदेन की मात्रा के मामले में विश्व का सबसे बड़ा संगठन है। इसका लक्ष्य सार्वजनिक प्रबंधन की गुणवत्ता के जरिये वृद्धावस्था आय सुरक्षा कार्यक्रमों हेतु अनुपालन के मानदंडों में साफ-सुथरे, ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ तरीके से निरंतर सुधार करना और लाभ प्रदान करना है। साथ ही, ऐसी प्रणाली तैयार करना है जो भारतीयों को विश्वास जीत सके एवं उनकी आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा में योगदान प्रदान कर सके।

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इस संगठन के प्रबंधकों में केंद्रीय न्यासी मण्डल, भारत सरकार और राज्य सरकार के प्रतिनिधि, नियोक्ता और कर्मचारी शामिल होते हैं। इसकी अध्यक्षता भारत के केंद्रीय श्रम मंत्री करते हैं। संगठन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त, मंत्रालय के स्थायी सचिव के माध्यम से केंद्रीय श्रम मंत्री से जुड़े होते हैं। कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम 1952, भारतीय संसद के द्वारा पारित हुआ और 14 मार्च 1952 से प्रभाव में आया। वर्तमान में मुख्य रूप से तीन योजनाओं का संचालन इस अधिनियम के द्वारा होता है- कर्मचारी भविष्य निधि योजना- 1952, कर्मचारी जमा लिंक बीम योजना- 1976 और कर्मचारी पेंशन योजना- 1995.

गत वर्षों में केंद्र सरकार ने लगातार दूसरे साल कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) की ब्याज दर में कमी कर दी है। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए ईपीएफ खातों पर 8.55 फीसदी ब्याज मिलेगी। सरकार ने पिछले साल के मुकाबले 0.10 फीसदी की कटौती की है। उसके बाद से यह स्थिर समझी जाती है।

-कमलेश पांडे

(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)

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