जबर्दस्ती शादी क्या है? झूठ-फरेब द्वारा हुई ऐसी शादी को रद्द किए जाने का कानून क्या है? जानिए विस्तार से....

marriage
Creative Commons licenses
कमलेश पांडे । Jul 29 2025 5:23PM

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तलाक और शादी के एनलमेंट में क्या अंतर यानी फर्क है? तो बता दें कि तलाक का आशय है कि कानूनी रूप से वैध शादी को खत्म करना। जबकि शादी के एनलमेंट का अभिप्राय है, ये मानना कि शादी कभी कानूनी रूप से अस्तित्व में ही नहीं थी।

अपने देश में किसी व्यक्ति के जन्म के बाद शादी ही एक ऐसा पवित्र उपक्रम है, जिससे दूसरों को जन्म दिए जाने का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए इस पवित्र बंधन के समस्त कार्य सुयोग पूर्वक संपादित किए जाते हैं। इसे समस्त परिवार, बन्धु-बांधवों, रस्मों और चिरस्थाई वायदों के साथ जोड़ा जाता है, ताकि सात जन्मों तक लाख बाधा-विघ्नों के बाद भी यह बंधन नहीं टूटे। इसलिए इसे जन्म-जन्मांतर का सम्बन्ध करार दिया गया। 

लेकिन पाश्चात्य लोकतंत्र और उस पर आधारित संवैधानिक कानूनों से जहां मनुस्मृति की आलोचना की गई, वहीं प्राचीन सनातन धर्म आधारित पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय व वैश्विक मूल्यों के आए दिन हो रहे अवमूल्यन को रोकने की सार्थक पहल नहीं की गई, बल्कि निरर्थक दलीलें तक दी जाने लगीं। इससे भारतीय उपमहाद्वीप की सामाजिक शोभा समझा जाने वाला संयुक्त परिवार भी बिखरता चला गया। इससे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की जगह विभिन्न प्रकार के स्वार्थपरक विवाद पनपने लगे।

इसे भी पढ़ें: न्यू रजिस्ट्रेशन बिल 2025 लाएगा डिजिटल सिस्टम, जानें नए बिल की जरूरी बातें

सबसे अजीबोगरीब स्थिति तो तब पैदा हो जाती है जब हथपकड़ा विवाह कर दिया जाता है। कहीं कहीं तो झूठ व फरेब की बुनियाद पर पारिवारिक या सामाजिक दबाव डालकर शादी रचा दी जाती है, बेमेल विवाह करा दिए जाते हैं, जिससे लड़का-लड़की दोनों या फिर कोई एक ठगा रह जाता है। ऐसे में ही सवाल उठता कि आखिर में आप तब क्या करेंगे जब यह पवित्र शादी का बंधन ही किसी झूठ की बुनियाद पर टिका हो? 

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि शादी के बाद पता चले कि आपका जीवनसाथी पहले से ही शादीशुदा है और आपको धोखे से ‘हां’ कहलवाया गया है। ऐसे में आधुनिक भारतीय संवैधानिक कानून तलाक नहीं, बल्कि ‘एनलमेंट’ की इजाजत देता है, जो सम्बन्ध विच्छेद का एक सही वैधानिक रास्ता हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुधांशू कुमार चौधरी बताते हैं कि यह एक ऐसा कानूनी तरीका है जो शादी को इस तरह खत्म कर देता है जैसे वह कभी हुई ही नहीं थी।

यही वजह है कि आज हम आपको एनलमेंट की प्रक्रिया के बारे में बताएंगे, ताकि आपको पता चल सके कि आखिर में किन आधारों पर किसी भी शादी को रद्द किया जा सकता है? वहीं यह एनलमेंट विधि, लोकप्रिय तलाक विधि से कैसे अलग है? शादी का एनलमेंट क्या है? बता दें कि शादी के एनलमेंट का मतलब है- विशिष्ट परिस्थितियों या कानूनी आधारों पर विवाह को अमान्य मानकर रद्द कर दिया जाना। बहुत आसान शब्दों में ऐसे समझिए कि आपने बाजार से कुछ खरीदा, लेकिन बाद में पता चला कि यह नकली है। ऐसे में आप उसे लौटा देते हैं और दुकानदार मान लेता है कि सौदा हुआ ही नहीं था। इसी तरह से अरुचिकर शादी के मामले में एनलमेंट में भी होता है। क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति फिर से अविवाहित माना जाता है।

ऐसे में सहज ही सवाल उठता है कि आखिर में कोई शादी कब और कैसे रद्द हो सकती है? तो बता दें कि हर शादी को रद्द नहीं किया जा सकता है, बल्कि कानून को इसके लिए ठोस वजह चाहिए होती है। ये वजहें दो तरह की हो सकती हैं:- पहली, वॉइड (शून्य) शादियां, जो अपने आप अमान्य हैं। और, दूसरी, वॉइडेबल शादियां, जिन्हें अदालत रद्द कर सकती है। आपको पता होना चाहिए कि वॉइड (शून्य) शादियां वो शादियां हैं, जो कानून की नजर में कभी अस्तित्व में ही नहीं थी। इन्हें रद्द करने के लिए कोर्ट का फैसला जरूरी नहीं है, हालांकि सबूत के लिए लोग ऐसा करते हैं। वहीं, वॉइडेबल शादियां वो शादियां हैं जो तब तक सही नहीं मानी जाती हैं, जब तक कि कोई कोर्ट इन्हें रद्द करने का फैसला नहीं कर देता है। इसके लिए आपको यह साबित करना होता है।

सबसे पहले यह जानिए कि शादी को लेकर कानूनी ढांचा क्या कहता है? वह कितना न्याय संगत है? क्या उसमें भी अलग अलग परंपरागत विभेद किये गए हैं। सच कहूं तो भारत में यह शुरू से ही एक विवादित पहल समझी जाती है, क्योंकि धर्मनिरपेक्ष भारत में एक समान वैवाहिक कानून की जगह पर अलग-अलग धार्मिक कानून प्रचलित हैं तो हमारी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की खिल्ली उड़ाते हैं।

एक ओर जहां हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लोगों पर लागू होता है। वहीं, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 अंतर्धार्मिक या कोर्ट मैरिज के लिए लागू होता है। देखा जाए तो दोनों ही कानून शादी को रद्द करने के लिए विस्तृत आधार प्रदान करते हैं और कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। जबकि मुस्लिम समाज के लिए अलग से पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया गया है। कहीं कहीं पर यह समाज सरिया कानूनों यानी शरीयत के मुताबिक चलता है। जबकि इसको लेकर एक समान कानून समस्त भारतीयों के लिए बनाए जाने की जरूरत है, क्योंकि हमलोग खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते नहीं अघाते।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तलाक और शादी के एनलमेंट में क्या अंतर यानी फर्क है? तो बता दें कि तलाक का आशय है कि कानूनी रूप से वैध शादी को खत्म करना। जबकि शादी के एनलमेंट का अभिप्राय है, ये मानना कि शादी कभी कानूनी रूप से अस्तित्व में ही नहीं थी। हालांकि, ऐसी किसी शादी को रद्द करने की अनुमति तब दी जाती है जब शुरू से ही शादी गलत आधार पर हुई हो, जैसे धोखा, ज़बरदस्ती या पहले से शादीशुदा होना। वहीं, तलाक तब दिया जाता है जब शादी सही तरीके से हुई हो, लेकिन बाद में रिश्ते में क्रूरता, बेवफाई या छोड़ देने जैसे कारण सामने आए हों।

इसलिए अब जानते हैं कि भारत में शादी के एनलमेंट की कानूनी प्रक्रिया क्या है? क्या यह सहज है या जटिल और बोझिल। तो बता दें कि किसी भी शादी को रद्द कराने की प्रक्रिया में कुछ कानूनी कदम होते हैं। लिहाजा जानिए कि, यह प्रक्रिया कैसे पूरी की जाती है:- 

सर्वप्रथम आप कानूनी सलाह लें। यानी कि अपनी शादी को रद्द कराने से पहले किसी भी अनुभवी फैमिली लॉ (परिवार कानून) वकील से सलाह लें। तब वकील यह जांचेगा कि आपके पास शादी रद्द कराने के लिए सही कानूनी आधार है या नहीं, और फिर वह केस की तैयारी में आपकी मदद करेगा। ततपश्चात आप याचिका तैयार कराएं और फाइल करें। इस प्रकार एक अनुभवी वकील आपके लिए एक याचिका तैयार करता है, जिसमें यह लिखा होता है कि शादी रद्द क्यों करानी है, शादी की तारीख क्या है और आपके पास क्या सबूत हैं? 

उसके बाद, फैमिली कोर्ट में याचिका जमा करें। यह याचिका उस फैमिली कोर्ट में जमा की जाती है, जहां शादी हुई थी या फिर जहां पति-पत्नी में से कोई एक रहता है। फिर आपके पार्टनर को विधिवत नोटिस भेजा जाता है। यानी कि दूसरे जीवनसाथी को इस याचिका की जानकारी एक नोटिस के जरिए दी जाती है, जिसमें पहली सुनवाई की तारीख भी बताई जाती है। इस तरह से कोर्ट में सुनवाई शुरू होती है। पुनः दोनों पक्ष अपने वकीलों के साथ कोर्ट में पेश होते हैं। फिर कोर्ट विभिन्न सबूतों की जांच करता है, दोनों की दलीलें सुनता है और ज़रूरी गवाहों के बयान लेता है।

अंततोगत्वा, कोर्ट का फैसला यानी डिक्री मिलता है। कहने का मतलब यह कि यदि कोर्ट को लगता है कि आपके पास पुख्ता सबूत हैं, तो वह शादी को शून्य या अमान्य घोषित कर देता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि शादी को ऐसा माना जाएगा कि वो कभी कानूनी रूप से हुई ही नहीं थी।

हालांकि, इसके लिए जरूरी शर्तें क्या क्या हैं? यह जानना आपके लिए अत्यंत जरूरी है। सर्वप्रथम वॉइडेबल शादियों के मामले में अर्जी गलती का पता चलने के 1 साल के भीतर देनी होती है। वहीं, यदि असलियत का पता चलने के बाद भी पति-पत्नी एक साथ रहते हैं या यौन-संबंध बनाते हैं तो आगे शादी रद्द करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में किसी सबूत के बिना, या अप्रासंगिक सबूत के आधार पर आपका दावा कमजोर भी हो सकता है। चूंकि हर मामला अलग अलग प्रकृति का होता है, इसलिए सही सलाह के लिए कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क करें।

इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी भी विवाह को रद्द करना सिर्फ कागजी बात नहीं है, बल्कि यह किसी की जिंदगी या फिर अपनी जिंदगी को वापस पाने का सहज व सुलभ रास्ता है। भले ही हमारे देश में शादी एक पवित्र बंधन है, लेकिन झूठ पर टिकी शादी में फंसना गलत है। इसलिए आप सबलोग अपना अपना वैधानिक हक जानें, अनुभवी वकील से मिलें और सार्थक कदम उठाएं। फिर आप कभी भी नई शुरुआत कर सकते हैं। हार्दिक शुभकामनाएं।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

All the updates here:

अन्य न्यूज़