सर्वसिद्धि को पूर्ण करने वाली हैं देवी छिन्नमस्ता, इस तरह करें पूजा
देवी छिन्नमस्ता दसमहाविद्या में से छठवीं महाविद्या हैं। बैसाख मास की शुक्ल पक्ष चर्तुदशी को छिन्नमस्ता जयंती मनायी जाती है। छिन्नमस्ता देवी सर्वसिद्धि को पूर्ण करने वाली हैं। तो आइए छिन्नमस्ता जयंती के अवसर पर देवी की महिमा की चर्चा करते हैं।
देवी छिन्नमस्ता
छिन्नमस्ता देवी को चिंतपूर्णी भी कहा जाता है। उनके इस रूप की चर्चा शिव पुराण और मार्कण्डेय पुराण में भी देखने को मिलता है। देवी चंडी ने राक्षसों का संहार कर देवताओं को विजय दिलायी। छिन्नमस्ता जयंती के दिन व्रत रखकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां छिन्नमस्ता चिंताओं का हरण करने वाली हैं। देवी के गले में हड्डियों की माला मौजूद है और कंधे पर यज्ञोपवीत है। शांत भाव से देवी की आराधना करने पर शांत स्वरूप में प्रकट होती हैं। लेकिन उग्र रूप में पूजा करने से उग्र रूप धारण करती हैं। दिशाएं इनके वस्त्र हैं। साथ ही देवी छिन्नमस्ता की नाभि में योनि चक्र पाया जाता है। देवी की आराधना दीवाली के दिन से शुरू की जानी चाहिए। छिन्नमस्ता देवी का वज्र वैरोचनी नाम जैन, बौद्ध और शाक्तों में एक समान रूप से प्रचलित है। देवी की दो सखियां रज और तम गुण की परिचायक हैं। देवी स्वयं कमल के पुष्प पर विराजमान हैं जो विश्व प्रपंच का द्योतक है।
देवी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा
एक बार देवी अपनी सखियों के साथ स्नान करने गयीं। तालाब में स्नान के बाद उनकी सखियों को भूख लगी। उन्होने देवी से कुछ खाने को कहा। सखियों की इस बात पर देवी ने उन्हें इंतजार करने को कहा। लेकिन सखियों ने उनकी बात नहीं मानी और भोजन के लिए हठ करने लगीं। तब देवी ने अपने शस्त्र से अपनी गर्दन काट कर तीन धाराएं निकालीं। उनमें से दो से सखियों की प्यास बुझायी और तीसरी से उनकी प्यास बुझी। तभी वह छिन्नमस्ता के नाम से मशहूर हैं। देवी दुष्टों के लिए संहारक और भक्तों के लिए दयालु हैं।
छिन्नमस्ता जयंती पर विधिपूर्वक करें पूजा
देवी की पूजा मन से करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान इत्यादि कर देवी की प्रतिमा के समक्ष लाल फूलों की माला लेकर संकल्प करें। साथ ही विविध प्रकार के प्रसाद चढ़ाएं। देवी की पूजा में सावधानी अवश्य बरतें। देवी बहुत दयालु हैं वह अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं।
छिन्नमस्ता जयंती का महत्व
छिन्नमस्ता जयंती भारत में धूमधाम से मनायी जाती है। इस अवसर पर भक्त माता के दरबार को विभिन्न प्रकार से सजाते हैं। इस दिन दुर्गा सप्तशती के पाठ का आयोजन किया जाता है। यही नहीं इस अवसर पर लंगर का प्रबन्ध होता है जिसमें गरीब लोग अच्छा खाना खा सकें। साथ ही भक्तों पर मां कृपा बनी रहे इसके लिए मंदिर में स्तुति पाठ होता है।
मां छिन्नमस्ता का मंदिर
छिन्नमस्ता देवी का मंदिर झारखंड में स्थित है। यह मंदिर असम के कामख्या मंदिर के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। यहां केवल मां छिन्नमस्ता का ही मंदिर नहीं है बल्कि शिव मंदिर, सूर्य मंदिर और बजरंग बली सहित सात मंदिर मौजूद हैं।
-प्रज्ञा पांडेय
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