संकट दूर करने के लिए किया जाता है गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत
हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को दूर करने वाली चतुर्थी माना जाता है। गजानन संकष्टी चतुर्थी की खास बात यह है कि यह पूजा सुबह और शाम दोनों समय में की जाती है। जहां सुबह व्रत का संकल्प लिया जाता है, वहीं शाम को आरती की जाती है।
सावन के महीने में पहला संकष्टी चतुर्थी गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत है। इस दिन व्रत करने से साधक के कष्ट दूर होते हैं तथा उसे सुख की प्राप्ति होती है, तो आइए हम आपको गजानन संकष्टी चतुर्थी के महत्व तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
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गजानन संकष्टी चतुर्थी के हैं कई नाम
गजानन संकष्टी चतुर्थी भक्तों के बीच में कई नामों से प्रसिद्ध है। कहीं इसे संकट चौथ कहा जाता है तो कोई इसे संकटहारा के नाम से जानता है। मंगलवार को पड़ने वाला चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस बार यह चतुर्थी 27 जुलाई को पड़ रही है। अंगारकी चतुर्थी छः महीने में एक बार आती है। इस दिन व्रत रहने से पूर्ण संकष्टी का फल मिलता है। दक्षिण भारत में यह व्रत बहुत हर्ष के साथ मनाया जाता है। इसे गजानन संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं।
गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में जानकारी
हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकट को दूर करने वाली चतुर्थी माना जाता है। गजानन संकष्टी चतुर्थी की खास बात यह है कि यह पूजा सुबह और शाम दोनों समय में की जाती है। जहां सुबह व्रत का संकल्प लिया जाता है, वहीं शाम को आरती की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से संकट से मुक्ति मिलती है। गणेश चतुर्थी का व्रत भगवान गणेशजी को समर्पित है तथा यह व्रत हर महीने की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।
गजानन संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा
गजानन संकष्टी चतुर्थी का अवसर बहुत खास होता है। इसलिए इस दिन जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले वस्त्र पहनें। इसके बाद चौकी साफ आसन बिछाएं और उस पर गंगाजल का छिड़कें। अब चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र विराजित करें। गणेश जी को फूल माला चढ़ाएं। अब दीपक, अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाएं। उसके बाद गणेश चालीसा पढ़ें तथा गणेश मंत्रों का जाप करें। भगवान गणेश की आरती करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा करें।
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गजानन संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
गजानन संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार दम्पत्ति को ईशवर में आस्था नहीं तथा वह निःसंतान थे। एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी। उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी। तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया। उसने कहा संकष्टी चौथ के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया। इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ।
साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी। ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी। इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया। उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी जिसकी शादी नहीं हो पायी थी। तब पीपल के पेड़ से आवाज ए अर्धब्याही ! यह बात लड़की ने अपनी मां से कहा। मां पीपल के पेड़ के पास आया और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बतायी। तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बतायी। तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे।
गजानन संकष्टी चतुर्थी का महत्व
हिन्दू धर्म में गजानन संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। यह दिन भगवान गणेश जी को समर्पित होता है। गणेश जी को देवताओं में प्रथम देव का दर्जा है। इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है। गणेश जी की उपासना करने से शिक्षा, धन, सेहत और मान सम्मान प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन जो लोग सच्चे मन से व्रत रखते हैं तथा गणेश जी की पूजा करते हैं उसके ऊपर प्रभु की कृपा बरसती है। पंडितों का मानना है कि इस संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने वाले जातक को गणेश भगवान सभी मुसीबतों से बाहर निकालते हैं तथा मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से विवाद संबंधी दोष भी दूर होते हैं।
गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत से लाभ
धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि संकष्टी के दिन गणपति की पूजा-आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने भक्तों की सारी विपदाओं को दूर करते हैं और उनकी मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं। चन्द्र दर्शन भी चतुर्थी के दिन बहुत शुभ माना जाता है। सूर्योदय से प्रारम्भ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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