Hartalika Teej 2025: नारी शक्ति और अटूट श्रद्धा का प्रतीक हरतालिका तीज, पढ़ें व्रत कथा

हरतालिका तीज केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह न केवल पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है बल्कि इसमें नारी शक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति और तपस्या का संदेश भी छिपा है।
हरतालिका तीज हिन्दू धर्म में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले प्रमुख व्रतों में से एक है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। हरतालिका तीज विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाई जाती है। इसे अखंड सौभाग्य, पति की दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है।
हरतालिका तीज व्रत की विधि
व्रत की शुरुआत प्रातः स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर और भगवान शिव-पार्वती की पूजा से होती है।
महिलाएँ इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं, अर्थात जल तक ग्रहण नहीं करतीं।
भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी या धातु की प्रतिमा बनाकर पूजन किया जाता है।
पूजा में बेलपत्र, धतूरा, चंदन, पुष्प, धूप-दीप और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं।
रात्रि में कथा श्रवण और भजन-कीर्तन किया जाता है।
अगली सुबह ब्राह्मणों, कन्याओं या जरूरतमंदों को भोजन और दान देकर व्रत का समापन किया जाता है।
इसे भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी पर नोट करें गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त, बन रहे हैं दुर्लभ योग
विशेषताएँ और सांस्कृतिक महत्व
महिलाएँ इस दिन नए वस्त्र और गहने पहनती हैं और मेहंदी रचाती हैं। तीज के गीत, नृत्य और झूले उत्सव का विशेष आकर्षण होते हैं। विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए और अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
हरतालिका तीज केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह न केवल पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है बल्कि इसमें नारी शक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति और तपस्या का संदेश भी छिपा है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में नारी के त्याग, श्रद्धा और समर्पण का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।
हरतालिका तीज व्रत कथा
एक बार भगवान शंकर माता पार्वती से बोले कि तुमने पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक घोर तपस्या की थी। तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता दुखी थे कि एक दिन नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने नारदजी का सत्कार करने के बाद उनसे आने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने बताया कि वह भगवान विष्णु के आदेश पर यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि आपकी कन्या ने कठोर तप किया है और उससे प्रसन्न होकर वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानने आया हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज खुश हो गये और उनको लगा कि सारी चिंताएं दूर हो गईं। वह बोले कि इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। हर पिता की यही इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख−संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। नारदजी यह बात सुनकर भगवान विष्णु के पास गये और उन्हें सारी बात बताई। लेकिन जब इस विवाह की बात तुम्हें पता चली तो तुम्हें दुख हुआ और तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारी मनोदशा को जब भांप लिया तो तुमने उसे बताया कि मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है लेकिन मेरे पिता ने मेरा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है इसी से मैं दुविधा में हूं। मेरे पास प्राण त्यागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
यह सुनने के बाद तुम्हारी सहेली ने तुम्हें समझाया और जीवन की सार्थकता से अवगत कराया। वह तुम्हें घनघोर जंगल में ले गई जहां तुम्हारे पिता तुमको खोज नहीं पाते। वहां तुम साधना में लीन हो गई और तुम्हें विश्वास था कि ईश्वर तुम्हारे कष्ट दूर करेंगे। तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़−ढूंढ़ कर परेशान हो गये और यह सोचने लगे कि कहीं भगवान विष्णु बारात लेकर घर आ गये और तुम नहीं मिली तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। दूसरी ओर तुम नदी के तट पर एक गुफा में साधना में लीन थी। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया और रात भर मेरी स्तुति की। तुम्हारी इस कठिन तपस्या से मेरा आसन डोलने लगा और मेरी समाधि टूट गई। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने के लिए कहा तो तुमने मुझे अपने समक्ष पाकर कहा कि मैं आपका वरण कर चुकी हूं यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। तब मैंने तथास्तु कहा और कैलाश पर्वत पर लौट आया।
अगले दिन तुम्हारे पूजा समाप्त करने के समय ही तुम्हारे पिता तुम्हें ढूंढ़ते−ढूंढ़ते वहां आ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर वह दुखी हुए। तुमने उन्हें बताया कि क्यों तुमने यह तपस्या की। इसके बाद वह तुम्हारी बातें मानकर तुम्हें घर ले गये और कुछ समय बाद हम दोनों का विवाह संपन्न कराया। भगवान बोले कि हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना की इसी कारण हमारा विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुमारियों को मन मुताबिक फल देता हूं। अतः सौभाग्य की इच्छा रखने वाली हर युवती को यह व्रत पूर्ण निष्ठा एवं आस्था के साथ करना चाहिए।
- शुभा दुबे
अन्य न्यूज़












