तुलसी जी का भगवान विष्णु से क्यों होता है विवाह ? जानिये पूरी कथा

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कमल सिंघी । Nov 16 2018 4:18PM

दिवाली के बाद अगर कोई त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है तो वह है ग्यारस। दिवाली के ग्यारहवें दिन इस दिन को लेकर धूम होती है। इस उत्सव को लेकर भी कई तरह की मान्यताएं हैं। जिनमें से एक है तुलसी-शालिग्राम विवाह।

दिवाली के बाद अगर कोई त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है तो वह है ग्यारस। दिवाली के ग्यारहवें दिन इस दिन को लेकर धूम होती है। इस उत्सव को लेकर भी कई तरह की मान्यताएं हैं। जिनमें से एक है तुलसी-शालिग्राम विवाह। ग्यारस को बुंदेलखंड में गन्ना ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं इस त्योहार पर तुलसी विवाह वैसे ही विधि-विधान से आयोजित किया जाता है जैसे कि आमतौर पर विवाह की परंपराएं निभायी जाती हैं।

पूर्ण विधि-विधान की परंपरा

ग्यारस पर तुलसी विवाह के लिए गन्ने का मंडप बनाया जाता है। जिसके नीचे तुलसी के पेड़ को दुल्हन का रूप दिया जाता है। तत्पश्चात् विवाह के अन्य विधान शुरु होते हैं। इस दिन दूल्हा बनते हैं भगवान विष्णु का ही रूप जिसे शालिग्राम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि तुलसी-शालिग्राम के इस रूप के दर्शन करने से मनुष्य के सभी दुख एवं दोषों का अंत होता है। साथ ही बुरी व अपवित्र शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता।

प्रचलित है यह कथा

इस त्योहार को लेकर कथा प्रचलित है कि वृंदा जो कि भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं, किंतु उसका पति राक्षसी प्रवृत्ति का होने की वजह से संसार को विजित करना चाहता था। इसलिए उसने संसार पर अत्याचार करने प्रारंभ कर दिए। समस्त लोकों को उसने त्रस्त कर दिया। देव, मानव, किन्नर सभी प्रताड़ित हो उठे, हर ओर हाहाकार मच गया। तब श्री विष्णु व शिव ने उसका वध करने का निर्णय किया। किंतु वृंदा के पुण्य प्रताप से ऐसा करना संभव नहीं था, अतः भगवान विष्णु ने वृंदा के पति का रूप धारण कर उसे स्पर्श कर पूजा में विघ्न डाल दिया और भगवान शंकर ने उसका वध कर दिया। सच्चाई जानकर वृंदा क्रोधित हो उठी और भगवान विष्णु को पाषाण बनने का श्राप दिया। इससे समस्त देव विलाप करने लगे। माता लक्ष्मी के कहने पर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त किया, किंतु ऐसी मान्यता है कि तभी से तुलसी-शालिग्राम के विवाह की परंपरा चल पड़ी। माता तुलसी वृंदा का ही रूप हैं और शालिग्राम विष्णु का वही पाषाण रूप।

वृंदा को मिला ऐसा विरला आशीर्वाद

वृंदा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे सदा अपने साथ पूजे जाने का आशीर्वाद प्रदान किया। यही वजह है कि ग्यारस पर दोनों के विवाह की परंपरा है, जबकि किसी भी शुभ कार्य में तुलसी के पत्ते को शामिल किया जाता है जिसके बाद वहां पवित्रता का संचार होना स्वीकार किया जाता है। तुलसी की पवित्रता और पतिव्रत धर्म का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।

-कमल सिंघी

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