Disappearances in Balochistan: Munir के 'डेथ स्क्वॉड्स' की दहशत, कैसे बलूचिस्तान से एक-एक कर गायब हो रहे लोग

Munir
ANI/@MahrangBaloch_
अभिनय आकाश । Aug 30 2025 3:36PM

बलूचिस्तान में आज जो अशांति है, वह अचानक हुए विद्रोह का नतीजा नहीं है, बल्कि दशकों से चली आ रही सरकारी नीतियों का नतीजा है जिसने वहाँ के लोगों को अलग-थलग कर दिया है और संघर्ष को और गहरा कर दिया है।

पाकिस्तान के फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर ने अपना डेथ स्कायड बलूचिस्तान के लोगों के लिए उतार दिया है। बलूच कार्यकर्ता महरंग बलूच ने दावा किया कि पाकिस्तानी की तरफ से लोगों को जबरन गायब कर दिया जाता है। उन्हें वर्षों तक पकड़कर रखा जाता है और फिर उन्हें मार कर उनके क्षत-विक्षत शवों को फेंक दिया जाता है। बलूचिस्तान में आज जो अशांति है, वह अचानक हुए विद्रोह का नतीजा नहीं है, बल्कि दशकों से चली आ रही सरकारी नीतियों का नतीजा है जिसने वहाँ के लोगों को अलग-थलग कर दिया है और संघर्ष को और गहरा कर दिया है। 1948 में कलात पर जबरन कब्ज़ा करने से लेकर 2006 में नवाब अकबर बुगती की हत्या तक, पाकिस्तान के फैसलों ने विद्रोह और दमन के चक्रों को बार-बार हवा दी है। हालिया आँकड़े दर्शाते हैं कि ये चक्र और भी बदतर होते जा रहे हैं, और पिछले कुछ वर्षों में हुए कुछ सबसे घातक आतंकवादी हमलों के साथ-साथ जबरन गुमशुदगी की घटनाओं में भी तेज़ी से वृद्धि हो रही है। 

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बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद के अनुसार, 2024 में 830 लोगों को जबरन गायब किया गया और 480 लोगों की हत्या कर दी गई। इनमें से ज़्यादातर का अभी तक कोई पता नहीं चला है। संस्था ने चेतावनी दी है कि बड़ी आतंकवादी घटनाओं के बाद गुमशुदगी की घटनाओं में तेज़ी आती है, जो लक्षित आतंकवाद-रोधी कार्रवाई के बजाय सामूहिक दंड के पैटर्न को दर्शाती है। पाकिस्तान के आधिकारिक जबरन गुमशुदगी जाँच आयोग के अनुसार, 2011 से अब तक कुल आँकड़ा 10,400 से ज़्यादा है, लेकिन मानवाधिकार समूह इन आँकड़ों को आंशिक और अस्पष्ट बताते हुए खारिज करते हैं और कहते हैं कि ये राज्य की ज़िम्मेदारी को छिपाते हैं। पिछले साल कई जानलेवा घटनाएँ हुईं, जिन्होंने इस चक्र को और तेज़ कर दिया। 26 अगस्त 2024 को अकबर बुगती की हत्या की बरसी पर, राजमार्ग पर समन्वित घात लगाकर किए गए हमलों में कम से कम 70 लोग मारे गए, जिनमें बसों से उतारकर मार डाले गए यात्री भी शामिल थे। कुछ हफ़्ते बाद, क्वेटा स्टेशन पर हुए एक आत्मघाती बम विस्फोट में 32 लोग मारे गए। मार्च 2025 में आतंकवादियों ने जाफ़र एक्सप्रेस का अपहरण कर लिया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए। हर हमले के बाद लापता होने की संख्या में वृद्धि हुई, अक्सर छात्रों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। 

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यह दमन केवल दूरदराज के जिलों तक ही सीमित नहीं रहा है। दिसंबर 2023 में, बलूच यकजेहती समिति के महिला-नेतृत्व वाले समूहों ने लापता लोगों के लिए न्याय की मांग करते हुए केच से इस्लामाबाद तक 1,600 किलोमीटर का "लॉन्ग मार्च" निकाला। सुरक्षा बलों ने बलपूर्वक राजधानी में धरना समाप्त कराया। मार्च 2025 में, क्वेटा में ट्रेन अपहरण के बाद शवों के अस्पताल पहुँचने पर नए विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। सुरक्षा बलों ने गोलीबारी की, जिसमें कम से कम तीन लोग मारे गए और डॉ. महरंग बलूच सहित कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद ग्वादर और मकरान में इंटरनेट बंद कर दिया गया, जिसकी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दंडात्मक और गैरकानूनी बताते हुए निंदा की। 

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