कोलंबिया में नए शांति समझौते पर हस्ताक्षर

कोलंबिया सरकार और फार्क विद्रोहियों ने आधी सदी पुराने अपने संघर्ष को विराम लगाने के लिए विवादास्पद संशोधित शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे कड़े विरोध के बावजूद अनुमोदन के लिए कांग्रेस के पास भेजा जाएगा।

बोगोटा। कोलंबिया सरकार और फार्क विद्रोहियों ने आधी सदी पुराने अपने संघर्ष को विराम लगाने के लिए विवादास्पद संशोधित शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे कड़े विरोध के बावजूद अनुमोदन के लिए कांग्रेस के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति जुआन मैन्युल सांतोस और गुरिल्ला नेता रोड्रिगो ‘‘टिमोचेंको’’ लोंडोनो ने इस्तेमाल हो चुके कारतूस से बनी कलम से राजधानी बोगोटा में आयोजित एक सादे समारोह में नए समझौते पर हस्ताक्षर किए। मूल समझौते पर सितंबर में बहुत धूमधाम के बीच हस्ताक्षर किए गए थे जिसे पिछले महीने जनमत संग्रह में मतदाताओं ने आश्चर्यजनक रूप से खारिज कर दिया था। इसके बाद वार्ताकारों को समझौते के लिए फिर से शुरूआत करनी पड़ी थी। आलोचकों की ओर से कटु आलोचना के बीच नए समझौते में कोलंबियाई लोगों का मत नहीं लिया जाएगा। उनका कहना है कि समझौते में किए गए संशोधन लीपा पोती हैं और इसमें रेवोल्यूशनरी आर्म्ड फोर्सेस ऑफ कोलंबिया (फार्क) द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के लिए अब भी माफी का प्रावधान है। संघर्ष समाप्त करने के प्रयासों के लिए इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले सांतोस ने कहा कि नया समझौता मूल समझौते से बेहतर है।

सांतोस ने समझौते में हस्ताक्षर करने के बाद कहा, ‘‘इसमें बड़ी संख्या में कोलंबियाई लोगों के विचार एवं उम्मीदें शामिल हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी की अंतरात्मा जानती है कि सशस्त्र संघर्ष की कीमत बहुत भारी है।’’ सांतोस ने कहा कि समझौते को तत्काल कांग्रेस में भेज दिया गया जहां उसके अगले सप्ताह बहस होने के बाद पारित होने की उम्मीद है। सांतोस और उसके सहयोगियों को सदन में बहुमत प्राप्त है। सरकार एवं फार्क दोनों का कहना है कि वह इस डर के दबाव में है कि उनका नाजुक संघर्ष विराम टूट सकता है। संघर्ष क्षेत्रों में कथित हत्याओं की हालिया लहर के कारण समझौता जल्दी करने का दबाव और बढ़ गया। हालांकि बाद में विरोध एवं अनिश्चितता पैदा होने की संभावना है क्योंकि विद्रोहियों ने सड़कों में प्रदर्शनों समेत शांति योजना बाधित करने का संकल्प लिया है। शीर्ष विपक्षी, पूर्व राष्ट्रपति एवं सीनेटर अल्वारो उरिबे ने कहा, ‘‘देश ने अपनी बात कह दी है। उसने ‘शांति को हां कहा हैं लेकिन माफी के बिना’।’’ उन्होंने आरसीएन टेलीविजन से कहा, ‘‘यहां केवल माफी के बिना कुछ शेष नहीं बचा।’’ उन्होंने बाद में सीनेट में बोलते हुए समझौते के कुछ उन ‘‘मूल मुद्दों’’ पर एक अन्य जनमत संग्रह कराने की अपील की है जिन पर विवाद है। उरिबे की शिकायत है कि समझौते में खासकर हत्याओं एवं अपहरण के मामलों में फार्क नेताओं को सजा देने समेत अहम मांगों को अब भी नजरअंदाज किया गया है।

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