Book Review। इंद्रधनुषी रश्मियाँ (काव्य संग्रह)

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समाज की समस्याएं उजागर हैं, समाज का दर्द बोलता है, आध्यात्मिक रस है तो प्रकृति का सौंदर्य बोध भी मुखर है। विविध रसों से शृंगारित कविताएं समाज को जागृत करती नज़र आती है। किशोरावस्था में लेखन की शुरुआत करने वाली श्रीमती सुरेखा श्रीवास्तव का परिपक्व चिंतन कविताओं में झलकता है भावप्रधान बनाता है।

उदयपुर की लेखिका सुरेखा श्रीवास्तव का दूसरा काव्य संग्रह इंद्रधनुषी रश्मियाँ 2024 में प्रकाशित हुई। पुस्तक में संकलित सभी 82 कविताएं समाज का आईना कही जा सकती हैं। इनमें समाज की समस्याएं उजागर हैं, समाज का दर्द बोलता है, आध्यात्मिक रस है तो प्रकृति का सौंदर्य बोध भी मुखर है। विविध रसों से शृंगारित कविताएं समाज को जागृत करती नज़र आती है। किशोरावस्था में लेखन की शुरुआत करने वाली श्रीमती सुरेखा श्रीवास्तव का परिपक्व चिंतन कविताओं में झलकता है भावप्रधान बनाता है।

देश के हालातों पर कविता "शक्ति प्रदर्शन" के भाव कहते हैं बड़ा कठिन दौर है, कभी आशा का संचार होता है कभी घनघोर निराशा का। जनता के सपने लूटे जाते हैं। कविता को देश भक्ति से जोड़ते हुए लिखती हैं.....

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हां, शक्ति प्रदर्शन करते हैं,

फिर शक्ति प्रदर्शन करते हैं।

तैयार जो बिकने को बैठे हैं,

वो देश की बातें करते हैं।।

"ये वोटर है" रचना में वोटर की पीड़ा का अहसास कराती है। भीड़ का हिस्सा बन सब की बातें सुनता है। कविता की ये पंक्तियां वोटर की पीड़ा को बयान करती नजर आती हैं.......

तकदीर अपनी बनाने में,

औरों की लिख देता है।

बेहतरी की आस में,

बागडोर संभालता है।।

फैली बाहों में आकाश भर लें, घूमती जमी को ठहरा चाक कर लें। इंद्रधनुष के सातों रंगों में खो जाएं, सागर में उठती लहरी पर झूम लें ।।

इन पंक्तियों के साथ "प्रकृति का जादू" कविता में आगे लिखती हैं...…......

हवा के झोंके पे गीत कोई लिख दें,

गीत के हर भाव को संगीत नया दें। 

कैसा जादू क्या माया सब भूल जाएं, 

शांत इस सौंदर्य पर जीवन निसार दें ।।

प्रकृति के आंगन में, सजते फूलों के मेले, बगिया में मन की, लगते खुशियों के झूले। उड़ता पंछी क्या जाने कब गगन छू जाये, जादुई सौंदर्य छुपा दूर से भी मन को हर ले ।।

" कैसा समय है" कविता समय की सच्चाई का आईना दिखाती है। समय विकट है खून की जगह नदी में स्वार्थ दौड़ता है, पराए अपने और अपने पराए हो गए। कविता की पंक्तियां देखिए...........

धर्म नही दिखता वो

अंधे राह दिखाते हैं, 

भाषा न जाने जो वो 

भाषण सिखलाते हैं।


मुरली की धुन सुनी नहीं 

संगीत सिखाते हैं, 

बुद्धि पर ताले जिनके

वो ज्ञान सिखाते हैं ।।


झूठ में आकंठ डूबे 

सत्य बताते हैं, 

दोराहे पे खड़े हैं 

कब से राह बताते हैं

संग्रह की सभी रचनाएं विभिन्न विषयों और भावों पर सहज और सरल भाषा में लिखी हैं जो पाठक के दिल को सीधी छू लेती हैं। लेखिका के मन में किसी प्रकार की कोई उलझन नहीं है, विषय को सपाट स्वरों में प्रस्तुत किया है। आशा है इनकी रचनाएं पाठकों को पसंद आएंगी।

पुस्तक :इंद्रधनुषी रश्मियाँ ( काव्य संग्रह )

लेखिका : सुरेखा श्रीवास्तव

प्रकाशक : हिमांशु पब्लिकेशन उदयपुर -दिल्ली

मूल्य : 285

पृष्ठ : 110

ISBN : 978-93- 87201- 12 -5

समीक्षा

- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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