असली मसाले (व्यंग्य)

spices

गधा महासचिव ने कहा– हम गधे जरूर हैं। थोड़े-बहुत मुहावरे हम भी जानते हैं। जब भी मुश्किल की घड़ी आती है आप लोग गधों को यानी हमें अपना बाप बना लेते हैं। जैसे ही स्वार्थ पूरा हुआ कि नहीं पिछवाड़े पर चार लात मार कर हकाल देते हैं।

गधों की मसाला उद्योगपतियों से बैठक चल रही थी। गधों के महासचिव ने बैठक में कहा- नमस्कार, हमारा देश और पूरा विश्व आज भारत का बनाया गरम मसाला खा रहा है। एमडीएच बाबा जरूर गए हैं, लेकिन हम बचे हुए हैं। ऐसे में आपका फर्ज है कि हमारी लीद को जन-जन तक पहुँचाए। यानी कि बढ़िया मसाला खिलाएँ। इसलिए जब तक हम हैं, तब तक मसाला है। जो लोग यह समझते हैं थे कि एमडीएच किसी आदमी के नाम पर बिकने वाला मसाला था तो वह आपकी बेवकूफी थी। एमडीएच में ‘एम’ का मतलब ‘मसाला’, ‘डी’ का मतलब ‘डांकी शिट’ और ‘एच’ का मतलब ‘है’, है। यानी कि असली मसाले हमारी लीद से बनते हैं। यदि आप अपनी आय बनाए रखना चाहते हैं तो आपको हमारी कुछ शर्तें माननी होंगी।

इसे भी पढ़ें: बाबू मोशाय, तुम नहीं समझोगे ! (व्यंग्य)

इस पर मसाला कंपनी के उद्योगपतियों ने कहा– शर्तें...? कैसी शर्तें... ? आप लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अब तक हमने लोगों को आपकी लीद खिलाकर ही इतनी कोठियाँ उठाई हैं। इतना रुपया-पैसा कमाया है। देश और दुनिया आपकी लीद का मुरीद है। कहीं आप लोग लीद देना बंद कर देंगे, तो हमारा बसा बसाया उद्योग बंद हो जाएगा। हम सड़क पर आ जायेंगे। हम आपकी तरह लीद भी नहीं कर सकते। हमारी मजबूरी समझिए। शर्त-वर्त छोड़िए मिल-बैठकर बात करते हैं।

इस पर गधा महासचिव ने कहा– हम गधे जरूर हैं। थोड़े-बहुत मुहावरे हम भी जानते हैं। जब भी मुश्किल की घड़ी आती है आप लोग गधों को यानी हमें अपना बाप बना लेते हैं। जैसे ही स्वार्थ पूरा हुआ कि नहीं पिछवाड़े पर चार लात मार कर हकाल देते हैं। हमें इंसानों की तरह मुश्किल की घड़ी में न बात बदलने की आदत है न बाप। इस बार हम ऐसी कोई बेवकूफी नहीं करेंगे जिससे कि हमारी वर्तमान और आगे आने वाली कौम हमें कोसते रहे। हमारी एकमात्र शर्त यही है कि हमसे माल ढुलाई का काम, खाने के नाम पर अखबार के टुकड़े और रहने के लिए कूड़ादान से छुटकारा दिलाएँ। नहीं तो हम अपनी लीद से आपको बेदखल कर देंगे।

इसे भी पढ़ें: सदमार्गों के मोहल्ले में (व्यंग्य)

मामला बिगड़ता देख उद्योगपतियों ने कहा– हे लीद के धनी गधा महाराज! आप इतने नाराज़ क्यों होते हैं? कौन कहता है कि हम आपका सम्मान नहीं करते? हम जैसे उद्योगपति देश के सिंहासन पर समझदार, अक्लमंद और हमारा बेड़ा गर्क करने वाले को कभी नहीं बिठाते। हम तो उस सिंहासन पर आप जैसे सीधे-सादे गधों को सुशोभित करते हैं जो हमारी हाँ में हाँ मिला सके। हमारे लाभ में अपना लाभ देख सकें। जो उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते गधे बने रहते हैं वही हमारे लिए पूजनीय होते हैं। हमने जब भी उनसे कुछ कहा है उसे लकीर की फकीर समझकर अपनाया है। हमारे आह भरने मात्र से नए देश में काले-पीले, उल्टे-सीधे कानून बन जाते हैं। इसलिए आप लोग निश्चिंत रहिए। हम सिंहासन पर बैठे आपके कौम के लोगों से कहकर आपके हित में और दो-चार कानून बनवा देंगे। देश की जनता चाहे जैसे जिए, लेकिन आपके ऐशो-आराम में खलल पड़ने नहीं देंगे। हम आपको पूरा विश्वास दिलाते हैं कि वे हमारी बात बिल्कुल नहीं टालेंगे, क्योंकि उन्हें चुनाव भी तो लड़ना है। और जीतना भी तो है। हम उनकी नब्ज हमेशा थामे रहते हैं।

यह सब सुन गधा महासचिव ने राहत की सांस ली और उद्योगपतियों की पीठ थपथपायी।

-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त'

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़