होली... फिर आने को है (व्यंग्य)

Holi
ANI
संतोष उत्सुक । Mar 12 2025 4:13PM

होली प्रेमी चाहते हैं कि गुणवता में लिपटा रंग और गुलाल मिले। मिलता है मगर महंगा और आम आदमी की पहुंच से बाहर रहता है। हमारे यहां तो अभी भी कई किस्म के सुगन्धित कीचड़ से भी होली खेलने की परम्परा जोर शोर से जारी है।

रघुबीरा, अवध में कई युगों से होली खेल रहे हैं। राजनीति की करवटें पूरे देश को नए परिवेश में होली खेलना सिखा चुकी हैं। कृष्ण की अनूठी होली के किस्से आज भी जीवित हैं। बरसाने की लट्ठ बरसाने वाली होली दुनिया भर से पर्यटक बुला रही है। इससे जुड़ी बात है कि रंग बनाने और बेचने वालों ने केमिकल के बहाने पैसा बनाना अभी भी बंद नहीं किया । बाज़ार का चरित्र चालाकी, धोखा आधारित लाभ पर आधारित होता है। कुछ बरस पहले के कोविडी अनुभवों से प्रेरित होकर चतुर बाज़ार ने उत्पादों पर ‘आर्गेनिक’ छापकर ग्राहकों को लुभाना जारी रखा है। सौन्दर्य प्रसाधन का बाज़ार हमेशा तैयार रहता है कि नए आकर्षक विज्ञापन का गुलाल फेंककर भक्तों को कैसे रिझाया जाए। इस बार फिर अनेक लेख छपेंगे कि होली में गुलाल क्यूँ लगाते हैं, किस तरह से रंग लगाया जाए और कौन से उपायों से रंग छुड़ाया जाए। अच्छा गुलाल मिल तो जाएगा लेकिन वह उस पपीते की तरह होगा जिसके बारे में बताया जाएगा कि वृक्ष पर पकाया गया है लेकिन आशंका है मसाला लगाकर ही पकाया होगा और मीठा भी नहीं होगा । 

होली प्रेमी चाहते हैं कि गुणवता में लिपटा रंग और गुलाल मिले। मिलता है मगर महंगा और आम आदमी की पहुंच से बाहर रहता है। हमारे यहां तो अभी भी कई किस्म के सुगन्धित कीचड़ से भी होली खेलने की परम्परा जोर शोर से जारी है। प्राचीन संस्कृति का राष्ट्रीय उदय हो रहा है। हर बरस की तरह फिल्मों के हिट होली नृत्य गीत सुने और देखे जाएंगे वह बात अलग है कि निर्माता निर्देशक अपनी फिल्म में होली के पारम्परिक सांस्कृतिक रंग नहीं भरने देता। व्यंग्य छपेंगे लेकिन फेस बुक या व्ह्ट्सेप पर लिखी बातें और कविताएं ज़्यादा पढ़ी जाएंगी। हर मंच पर पुराने संस्कारों, परम्पराओं की दुहाई दी जाएगी, उनके संदर्भ पखारे जाएंगे लेकिन किसी की चमड़ी पर कोई असर न उगेगा। जिस तरह वसंत आने की खूब बातें की। पुरानी देख, पढ़कर नई कविताएं लिखी और छपी लेकिन कभी संजीदगी से यह विचार नहीं किया कि हमने वसंत का अंत कैसे किया।

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आम आदमी को राजनीतिक होली के रंगों में सराबोर रखा जा रहा है। मुफ्त राशन खाने की नई आदतें विकसित कर दी गई हैं जिन्होंने मेहनत को बेहोश कर दिया है। यह तो त्यौहार हैं जिनकी वजह से एक बार मिली ज़िंदगी में उत्सुकता और उल्लास जीवित रहता है नहीं तो उदास रहने के बहुतेरे बहाने हैं यहां। परेशान पर्यावरण में भी टेसू के फूल, करोड़ों कलियाँ वसंत का आंचल ओढ़, फूल बन चुकी हैं, कोयल ने पुराने सुरीले तराने सुनाने शुरू कर दिए हैं, आम की फुगनियों पर समय से पहले बौर आ गया है और सरसों वक़्त से पहले जवान हो ली है। होली आने को है। 

- संतोष उत्सुक

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