भीष्म साहनी के साहित्य में झलकती है धर्मनिरपेक्षता

[email protected] । Aug 8 2016 3:37PM

साहनी ने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया और उनका धर्मनिरपेक्ष नजरिया उनके साहित्य में भी बखूबी झलकता है। उन्होंने नई कहानियां पत्रिका का संपादन किया और आखिरी दम तक लिखते रहे।

विभाजन की त्रासदी पर तमस जैसी कालजयी रचना लिखने वाले भीष्म साहनी आधुनिक हिन्दी साहित्य में सशक्त अभिव्यक्ति और बेहद सादगी पसंद रचनाकार के रूप में विख्यात हैं। समीक्षकों के अनुसार साहनी एक प्रतिबद्ध लेखक थे जिन्होंने अपने साहित्य में हमेशा मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी। उपन्यासों के अलावा अहं ब्रह्मास्मि, अमृतसर आ गया और चीफ की दावत जैसी उनकी कहानियां सशक्त अभिव्यक्ति के कारण काफी चर्चित रहीं।

वरिष्ठ कहानीकार एवं नया ज्ञानोदय पत्रिका के संपादक रविन्द्र कालिया के अनुसार भीष्म साहनी मूलतः प्रतिबद्ध रचनाकार थे। उन्होंने कुछ मूल्यों के साथ साहित्य रचा। वह बेहद सादगी पसंद रचनाकार थे। उन्होंने कहा कि साहनी ने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया और उनका धर्मनिरपेक्ष नजरिया उनके साहित्य में भी बखूबी झलकता है। उन्होंने नई कहानियां पत्रिका का संपादन किया और आखिरी दम तक लिखते रहे। अमृतसर आ गया जैसी उनकी कहानियां शिल्प ही नहीं अभिव्यक्ति की दृष्टि से काफी आकर्षित करती हैं। कालिया ने उनके साथ अपने संबंधों की याद ताजा करते हुए बताया कि साहनी अपनी पत्नी के साथ इलाहाबाद में उनके घर पर रुके थे। इस दौरान साहित्यिक चर्चा के अलावा उन्होंने तमाम पंजाबी लोकगीत सुनाये। इससे पता चलता है कि साहनी लोकगीतों और लोकजीवन के भी मर्मज्ञ थे।

भीष्म साहनी का जन्म आठ अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। विभाजन के पहले अवैतनिक शिक्षक होने के साथ वह व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद वह भारत आ गए और समाचार पत्रों में लिखने लगे। बाद में वह भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के सदस्य बन गये। साहनी दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहे। उन्होंने मास्को के फारेन लैंग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस में अनुवादक के तौर पर दो दर्जन रूसी किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया। इसमें टालस्टाय और आस्ट्रोवस्की जैसे लेखकों की रचनाएं शामिल हैं। उन्होंने टालस्टाय के एक परिपक्व उपन्यास का अनुवाद पुनरुत्थान नाम से किया था।

उनके उपन्यास भरोखे, तमस, बसंती, मैय्यादास की माडी, कहानी संग्रह भाग्यरेखा, वांगचू और निशाचर, नाटक हानूश, माधवी, कबीरा खड़ा बाजार में, आत्मकथा बलराज माई ब्रदर और बालकथा गुलेल का खेल ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। साहनी ने कुछ समय अपने बड़े भाई एवं फिल्म अभिनेता बलराज सहानी के साथ मुंबई में रंगमंच पर भी काम किया था। साहनी की कृति पर आधारित तमस धारावाहिक काफी चर्चित रहा था। उनके बसंती उपन्यास पर भी धारावाहिक बना था। उन्होंने मोहन जोशी हाजिर हो, कस्बा और मिस्टर एंड मिसेज अय्यर फिल्म में अभिनय भी किया था। प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले इस लेखक का निधन 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुआ।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़