जगमीत और ट्रूडो के बीच का एग्रीमेंट और कुर्सी बचाने की मजबूरी, जानें खालिस्तान के नाम से ही इतना डर क्यों जाते हैं कनाडा के पीएम

विदेश मंत्रालय ने उनके इस बयान को खारिज कर दिया है। लेकिन विदेश नीति के जानकारों की मानें तो ट्रूडो का बयान कोई हैरान करने वाला नहीं है। कनाडा सरकार खुद खालिस्तान के समर्थन से चलती है।
भारत ने जैसे ही खालिस्तानी आतंकियों को पाल रहे दुनिया के देशों को बेनकाब करना शुरू किया तो सबसे ज्यादा कना़डा घबरा गया। ये बात तो किसी ने नहीं छुपी की कनाडा की सरकार काफी हद तक खालिस्तानियों के समर्थन से चल रही है। खालिस्तानी समर्थक कनाडा की सरकार के लिए एक बड़ा वोटबैंक है। इसलिए कनाडा की सरकार खालिस्तानी समर्थकों को पाल-पोस कर बड़ा कर रही है। खालिस्तानियों का कनाडा पर इतना जबरदस्त कब्जा हो गया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूड्रो को भारत के खिलाफ बयान देना पड़ गया। अपनी सरकार को बचाने के लिए खालिस्तानियों के दबाव में आए जस्टिन ट्रूडो भारत से भिड़ने के लिए तैयार हो गए। जस्टिन ट्रूडो ने भारत को झूठा देश तक बता दिया। भारत में ट्रूडो के बयान की जमकर आलोचना हो रही है। विदेश मंत्रालय ने उनके इस बयान को खारिज कर दिया है। लेकिन विदेश नीति के जानकारों की मानें तो ट्रूडो का बयान कोई हैरान करने वाला नहीं है। कनाडा सरकार खुद खालिस्तान के समर्थन से चलती है।
खालिस्तान का नाम सुन इतना डर क्यों जाते हैं ट्रूडो
एक पत्रकार ने जब जस्टिन ट्रूडो से सवाल किया कि भारत का कहना है कि आप सिख चरमपंथियों पर नरम रुख अपनाते हैं। क्योंकि आप उस समुदाय के वोटों पर निर्भर हैं। इस पर जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया कि भारत सरकार गलत है। कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है। बयान देते हुए जस्टिन ट्रूडो इतना डरे हुए थे कि वो खालिस्तानी शब्द का इस्तेमाल तक नहीं कर पाए। जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत को ऐसा नहीं कहना चाहिए कि हम खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहे। लेकिन आपको जस्टिन ट्रूडो का एक पाखंड बताते हैं। जिस वक्त जस्टिन ट्रूडो भारत को गलत बोल रहे थे। ठीक उसी समय कनाडा में भारतीय दूतावास के बाहर भारतीय राजनयिकों की एक पोस्टर लगी थी। जिसमें उन्हें निशाना बनाए जाने की बात कही गई थी। यानी खालिस्तानी समर्थक कनाडा में खुलेआम भारतीय राजनयिकों पर हमले की बात कर रहे हैं। लेकिन जस्टिन ट्रूडो की माने तो कनाडा में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।
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पन्नू ने खुद कबूला मैंने लगाए पोस्टर
खालिस्तानियों का नाम आते ही जस्टिन ट्रूडो आंखों पर चश्मा चढ़ा लेते हैं। अब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आंखों पर चढ़े चश्मे को थोड़ा और क्लियर करते हैं। आपको बता दें कि अलगाववादी सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) का संस्थापक गुरपतवंत सिंह पन्नून ने पुष्टि की कि उसने भारतीय राजनयिकों के नाम और तस्वीरों के साथ "किल इंडिया" पोस्टर का मास्टरमाइंड है। उसने कहा कि हां, मैं वही हूं जिसने इन पोस्टरों को जारी किया। पन्नून ने धमकी देते हुए कहा कि 'हम 15 अगस्त से पहले हर उस देश में जहां भारतीय मिशन है, इन राजनयिकों के 'वांछित' पोस्टर लगाने जा रहे हैं।
भारत ने जमकर धोया
भारत ने 8 जुलाई को होने वाले खालिस्तान समर्थक कार्यक्रम की जानकारी के साथ कनाडा में साझा किए गए पोस्टरों में अपने राजनयिकों को मिल रही धमकियों के बारे में चिंता व्यक्त की। पोस्टरों में कनाडा में भारतीय राजदूत और टोरंटो में महावाणिज्य दूतावास के खिलाफ धमकियां दी गईं। सिख चरमपंथियों ने कथित तौर पर कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और टोरंटो में भारत के महावाणिज्य दूतावास अपूर्व श्रीवास्तव पर जून में कनाडा में खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख और नामित आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भूमिका निभाने का आरोप लगाते हुए पोस्टर प्रसारित किए। यह प्रदर्शन खालिस्तानी आतंकवादी हरजीत सिंह निज्जर उर्फ हरदीप सिंह निज्जर को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित किया जा रहा है, जो 18 जून को कनाडा के सरे में लक्षित गोलीबारी में मारा गया था।
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वोट बैंक की राजनीति
कनाडा सरकार पर कड़ा प्रहार करते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते कहा था कि ओटावा वोट-बैंक की राजनीति से प्रेरित लगता है और इससे दोनों देशों के बीच संबंधों पर भी असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि कनाडा ने खालिस्तानी मुद्दे से कैसे निपटा है यह हमारे लिए एक पुराना मुद्दा है, क्योंकि बहुत स्पष्ट रूप से, वे वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित प्रतीत होते हैं। उनकी प्रतिक्रियाएँ वोट बैंक की मजबूरियों के कारण बाधित हुई हैं। मंत्री ने कहा कि हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर कनाडा से ऐसी गतिविधियां होती हैं जो हमारी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और हमारी सुरक्षा को प्रभावित करती हैं, तो हमें जवाब देना होगा।" उन्होंने कहा कि इससे अतीत में द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ा है। खालिस्तानी समर्थकों द्वारा आयोजित रैली और भारतीय अधिकारियों को धमकी भरे पोस्टरों के मद्देनजर कनाडा ने भारत को राजनयिकों की सुरक्षा का आश्वासन दिया है। खालिस्तानी समूह हाल के महीनों में कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अधिक सक्रिय हो गए हैं, जहां उन्होंने भारतीय मिशनों और मंदिरों में तोड़फोड़ की है।
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कुर्सी बचाने के लिए खालिस्तान समर्थक को खुश रखना मजबूरी
साल 2019 में कनाडा में आम चुनाव हुए थे। ट्रूडो ने चुनाव में जीत तो दर्ज कर ली थी लेकिन वो सरकार नहीं बना सकते थे। उनकी लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिली थी। विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। ट्रूडो के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं था। सरकार बनाने के लिए उन्हें 170 सीटों की दरकार थी। जिसकी वजह से ट्रूडो की पार्टी ने कनाडा के चुनाव में 24 सीटें हासिल करने वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन लिया। इस पार्टी के मुकिया जगमीत सिंह है जो खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। ट्रूडो के लिए सत्ता में रहने का मतलब जगमीत को खुश रखना है। बहुमत के आंकड़ों के लिहाज से उनके लिए जगमीत की पार्टी का समर्थन बेहद जरूरी है।
टूड्रो और जगमीत के बीच का समझौता
चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस एंड सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। ये समझौता 2025 तक लागू रहेगा। अब तक सिंह ट्रूडो के भरोसेमंद साझेदार बने हुए हैं। हाल ही में विपक्ष ने कनाडा के चुनावों में चीन के हस्तक्षेप की जांच की मांग की और ट्रूडो पर जबरदस्त अटैक बोला गया। लेकिन उस वक्त जगमीत सिंह की एनडीपी पीएम के लिए ढाल बनकर खड़ी रही। ट्रूडो के समर्थन से सुरक्षित सिंह भारत के खिलाफ और खालिस्तानी मुद्दे के समर्थन में आगे बढ़ते जा रहे हैं। इस साल मार्च के महीने में जैसे ही पंजाब में खालिस्तानी अलगाववादी अमृतपाल सिंह पर मामला गर्माया तो भारतीय राज्य में इंटरनेट बंद कर दिया गया था। इसके बाद जगमीत सिंह अमृतपाल के समर्थन के लिए ट्रूडो की चौखट पर पहुंचे थे।
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