हो गया ऐलान, हिंदू-मुस्लिम एक समान, सऊदी समेत इन इस्लामिक देशों की मदद से तैयार हुआ UCC

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अभिनय आकाश । Jan 27 2025 5:00PM

मसला मजहब से जुड़ा हुआ है इसलिए इसको लेकर सवाल और जवाब भी लगातार जारी है। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि उत्तराखंड में लागू हुए यूसीसी में खूबियां क्या हैं और इसका विरोध करने वालों को क्यों ऐतराज हो रहा है? क्यों बार बार कहा जाता है कि यूनिफार्म सिविल कोड इस्लाम के खिलाफ है?

इस वक्त उत्तराखंड पूर देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। 27 जनवरी की तारीख को उत्तराखंड ने एक नया ही इतिहास रच दिया। यहां मजहब की दीवारें टूटनी दिखीं। हर नागरिक एक समान कानून में बंधने वाला है। ढाई साल के मंथन और तमाम विवादों के बाद आखिरकार उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी की यूसीसी लागू हो गया है। सभी पर्सनल लॉ की बजाए अब सभी लोगों को एक कानून का पालन करना होगा। शादी से लेकर तलाक और संपत्ति के अधिकार सभी कुछ मजहबी नहीं बल्कि एक कानून में बंध गया है। मसला मजहब से जुड़ा हुआ है इसलिए इसको लेकर सवाल और जवाब भी लगातार जारी है। ऐसे में आज आपको बताते हैं कि उत्तराखंड में लागू हुए यूसीसी में खूबियां क्या हैं और इसका विरोध करने वालों को क्यों ऐतराज हो रहा है? क्यों बार बार कहा जाता है कि यूनिफार्म सिविल कोड इस्लाम के खिलाफ है? 

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यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड 

उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के मैनुअल को मंजूरी दी। इसके बाद इसे लागू करने का रास्ता साफ हुआ। उत्तराखंड के 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के प्रमुख चुनावी वादों में से ये एक था। मुख्यमंत्री आवास में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इसका ऐलान किया। यह कार्यक्रम सीएम आवास के मुख्य सेवक सदन में आयोजित किया गया। सीएम धामी ने कहा कि हमने 3 साल पहले जनता से किए गए वादे को पूरा लिया। यूसीसी किसी धर्म या वर्ग के खिलाफ नहीं है। इसका उद्देश्य किसी को टारगेट करना नहीं है। सभी को समान अधिकार देना है। 27 जनवरी का दिन समान नागरिकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। उत्तराखंड के डीजीपी दीपम सेठ ने कहा कि हम नए कानून यूसीसी को लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

हिंदू मुस्लिम एक समान

समान नागरिक संहिता कानून का मतलब है कि एक ऐसा कानून जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने भरण पोषण जैसे मुद्दों पर सभी धर्म से जुड़े लोगों पर समान रूप से लागू होगा। भारत में अभी एक समान आपराधिक कानून हैं। लेकिन नागरिक कानून यानी सिविल लॉ अलग अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग अलग हैं। इसमें हलाला, इद्दत, तलाक जैसी प्रथाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है। हालांकि आदिवासी समदायों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद अब हिंदू, मुस्लिम, ईसाई समुदाय के लिए शादी, तलाक, संपत्ति बंटवारा समेत कई चीजों में बदलाव आ जाएगा। अब अलग अलग धर्म के पर्सनल लॉ की जगह एक समान कानून लागू होगा। लिहाजा अब मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को एक से ज्यादा शादी की इजाजत नहीं होगी। वहीं निकाह, हलाला, इद्दत भी गैर कानूनी हो जाएगा। 

यूसीसी के लिए उत्तराखंड सरकार के कब क्या कदम उठाए

2022 के चुनाव से एक दिन पहले मुख्यमंत्री धामी ने यूसीसी की घोषणा की

सरकार बनाने के बाद मार्च 2022 की पहली कैबिनेट में समिति गठन को मंजूरी मिली

समिति ने ढाई लाख लोगों से 20 लाख सुझाव ऑफलाइन और ऑनलाइन प्राप्त किए।

6 फरवरी 2024 को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पेश हुआ, 7 फरवरी 2024 को पारित हुआ

11 मार्च 2024 को राष्ट्रपति ने यूसीसी विधेयक को मंजूरी दी, क्रियान्वयन समिति ने 18 अक्टूबर 2024 को नियमावली सरकार को सौंपी। 

20 जनवरी 2025 को नियमावली को कैबिनेट की मंजूरी मिली।

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यूसीसी के अंतर्गत कौन आएगा?

उत्तराखंड में अधिनियम संपूर्ण राज्य पर लागू होगा। ये अधिनियम उत्तराखंड से बाहर रहने वाले राज्य के निवासियों पर भी प्रभावी है। अनुसूचित जनजातियों और संरक्षित अधिकार प्राप्त व्यक्तियों और समुदायों को यूसीसी के मापदंडों से छूट दी गई है। 

ऑनलाइन पोर्टल का कैसे कर सकते हैं इस्तेमाल?

सीएम द्वारा लॉन्च किया गया ऑनलाइन पोर्टल अगले सप्ताह से उत्तराखंड के नागरिकों के उपयोग के लिए उपलब्ध होगा। https://ucc.uk.gov.in पर लॉग इन कर सकते हैं। यह निवासियों को विवाह, तलाक, उत्तराधिकार अधिकार, लिव-इन रिलेशनशिप और उनकी समाप्ति को पंजीकृत करने की अनुमति देगा। पूरी प्रक्रिया घर से मोबाइल फोन का उपयोग करके पूरी की जा सकती है, आवेदक ईमेल या एसएमएस के माध्यम से अपने आवेदन की स्थिति को ट्रैक करने में सक्षम होगा। 

यूसीसी के तहत विवाह

यूसीसी पुरुषों और महिलाओं के लिए कानूनी विवाह की आयु को क्रमशः 21 और 18 वर्ष निर्धारित करता है।

यह सभी समुदायों में बहुविवाह और 'हलाला' दोनों पर प्रतिबंध लगाता है। हलाला एक विवादास्पद इस्लामी विवाह प्रथा है जहां एक तलाकशुदा महिला दूसरे पुरुष से शादी करती है, फिर अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने के लिए उसे तलाक देती है।

जबकि विवाह की रस्में धार्मिक रीति-रिवाजों या कानूनी प्रावधानों के तहत की जा सकती हैं, 60 दिनों के भीतर पंजीकरण अनिवार्य है।

लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा।

26 मार्च, 2010 से पहले या उत्तराखंड के बाहर हुए विवाहों को अधिनियम लागू होने के 180 दिनों के भीतर पंजीकृत किया जा सकता है। यह कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है।

कोई भी सैनिक, किसी अभियान/वास्तविक युद्ध में शामिल वायु सेना कर्मी, या समुद्र में नाविक, 'विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत' कर सकता है, जिसके लिए नियमों को लचीला रखा गया है।

यूसीसी वसीयत उत्तराधिकार के तहत वसीयत के निर्माण, रद्दीकरण और संशोधन के साथ-साथ पूरक दस्तावेजों, जिन्हें कोडिसिल्स के रूप में जाना जाता है, के लिए एक सरलीकृत ढांचा तैयार करता है।

यूसीसी के तहत तलाक

यूसीसी में, पति और पत्नी के लिए तलाक के कारण और आधार समान हैं। इसका मतलब यह है कि अब पति अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है और पत्नी भी इसी आधार पर तलाक की मांग कर सकती है।

4 मुस्लिम देशों की क्या है भूमिका

यूसीसी लागू करने के लिए सरकार ने व्यापक विचार विमर्श किया। इस प्रक्रिया में 43 हितधारकों के साथ बैठकें आयोजित की गई। कुल 72 गहन बैठकें हुई। जिसमें जनता से 39 लाख एसएमएस, 28 लाख व्हाट्सएप संदेश और 2.33 लाख सुझाव प्राप्त हुए। डाक, ईमेल के माध्यम से भी हजारों सुझाव सरकार तक पहुंचे। सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार उत्तराखंड सरकार ने सऊदी अरब, तुर्की, इंडोनेशिया, नेपाल, फ्रांस, अजरबैजान, जर्मनी, जापान और कनाडा जैसे देशों के अध्ययन कर समान नागरिकता संहिता की अवधारण को बेहतर रूप दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि ये कदम उत्तराखंड को नई पहचान देगा। 

कोर्ट में चुनौती देंगी कांग्रेस?

कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने पर कहा कि जरूरत पड़ी तो इसे अदालत में चुनौती दी जाएगी। खुर्शीद ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इसे होने दें। उन्हें इसे लागू करने दें। उसके बाद हम देखेंगे। मेरा भी उत्तराखंड में घर है। क्या ये मुझ पर भी लागू होगा? इसमें यह भी कहा गया है कि यह उन लोगों पर लागू होगा जो उत्तराखंड के निवासी हैं, चाहे वे कहीं भी रहते हों। तो, यूसीसी उनका कितना पालन करेगी? उन्होंने क्या किया है और किस सोच के साथ ऐसा किया है, हमें समझ में नहीं आता।

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