हार में हार पहनाने की आदत ने ही पाकिस्तानी फौजियों के सीने को मेडल से लाद दिया, मुनीर का प्रमोशन तख्तापलट का प्लान?

खुद जनरल को जान बचाने के लिए बंकर में छुपने की नौबत आ गई। पाकिस्तानी सेना की दुनियाभर में बेइज्जती हुई। अपने साथ साथ पाकिस्तान ने चीन-तुर्की और अमेरिका के एफ16 विमानों की भी भद्द पिटवाकर रख दी। रावलपिंडी में भारत ने घुसकर मारा। इसके बाद भी जनाब ने अपना प्रमोशन करवा लिया।
आज का एमआरआई एक सोशल मीडिया पर वायरल घटना से करेंगे। बोर्ड के रिजल्ट आए थे। एक छात्र ने ग्रेस लगाकर 33-34% के आसपास का नंबर लाया और पास हो गया। घरवालों ने इसकी ऐसी खुशी मनाई। ढोल-बाजे बजे, मिठाईयां बंटी, डांस हुआ। लेकिन जब किसी ने घरवालों से पूछा कि लड़का तो फेल होते होते बचा है। इतना जश्न क्यों? जवाब मिलता है हम तो सोचकर बैठे थे फेल हो जाएगा। पास ही हो गया तो हमारे लिए तो जश्न सरीखा ही है। हारकर भी जीतने वाले को भले ही बाजीगर कहते हो। लेकिन हारकर छाती पर मेडल लगाने वाले को पाकिस्तान कहते हैं। पाकिस्तान दुनिया का वो अनोखा मुल्क हैं जहां हार पर भी हार पहनाया जाता है। पाकिस्तान इसे कला के तौर पर देखता है और इस कला के उस्ताद जनरल आसिम मुनीर हैं। भारत की एयर स्ट्राइक से बचने के लिए बंकर में छुपने जैसे साहसपूर्ण कदम ने जनरल आसिम मुनीर को पाकिस्तान का फेल्ड मार्शल और इस्लामाबाद की भाषा में कहे तो फील्ड मार्शल बना दिया। झंडे में चांद होना और चांद में झंडा होने में औकात औकात का फर्क होता है। एक हमारे भारत में फील्ड मार्शल थे सैम मॉनेकशॉ जिन्होंने 1971 की जंग में 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को सरेंडर करवा दिया था। एक पाकिस्तान है, जहां 9 आतंकी कैंप ध्वस्त हुए, 11 एयरबेस उड़ गया और नया बनवाने के लिए टेंडर निकालना पड़ा। खुद जनरल को जान बचाने के लिए बंकर में छुपने की नौबत आ गई। पाकिस्तानी सेना की दुनियाभर में बेइज्जती हुई। अपने साथ साथ पाकिस्तान ने चीन-तुर्की और अमेरिका के एफ16 विमानों की भी भद्द पिटवाकर रख दी। रावलपिंडी में भारत ने घुसकर मारा। इसके बाद भी जनाब ने अपना प्रमोशन करवा लिया।
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फील्ड मार्शल होता क्या है और इसकी क्या अहमियत है?
पाकिस्तान की फौज में सबसे ऊंचा ओहदा यानी पांच सितारा रैंक। पाकिस्तान के अंदर अपार शक्ति और इस पद का नाम फील्ड मार्शल है। 1959 के बाद पहली बार पाकिस्तान में ये पद जनरल आसिम मुनीर को मिला है। पाकिस्तानी मीडिया एआरवाई न्यूज के मुताबिक पाकिस्तान में ये फाइव स्टार रैंक जनरल से भी ऊपर है। इसका नैटो कोड ओएफ 10 है। यानी कोई और फौजी ओहदा इससे ऊपर नहीं। ये रैंक न तो हर जनरल को मिलती है और न ही रूटीन प्रमोशन का हिस्सा है। ये सिर्फ उसी को दी जाती है जिसने जंग या राष्ट्रीय संकट के वक्त असाधारण नेतृत्व कर दिखाया हो। आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का जो दर्जा मिला है वो पाकिस्तान में इतना खास एक और वजह से है। ये पद देने का फैसला केवल आर्मी हेडक्वार्टर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और पाकिस्तान की पूरी फेडरल कैबिनेट मिलकर लेते हैं। ये रैंक आम तौर पर जिंदगी भर के लिए ऑनर यानी सम्मान के तौर पर दी जाती है। इसके लिए कोई एडिशनल वेतन या कानूनी ताकत नहीं होती। लेकिन इसका प्रतीकाम्क महत्व बहुत बड़ा है। कुल मिलाकर कहें तो एक खोखला और फर्जी पद है जो सिर्फ खुद की पीठ छपछपाने के लिए है।
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पाकिस्तान का पहला फील्ड मार्शल कौन था?
आसिम मुनीर पाकिस्तान में दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं जो इस पद पर पहुंचे हैं। उनसे पहले अयूब खान फील्ड मार्शल बने थे। पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल अयूब खान सैन्य ताकत से सियासत की कहानी आपको इतिहास के हवाले से बता देते हैं। मोहम्मद अयूब खान 1958 से 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। हालाँकि, यह ध्यान देने योग्य है कि 1958 में तख्तापलट करने और खुद को देश का राष्ट्रपति बनने के बाद अयूब खान ने सेना में खुद को सर्वोच्च सैन्य पद पर पदोन्नत किया था। अगले साल 1959 में सेना से सेवानिवृत्ति की उम्र के करीब, अयूब खान ने पाकिस्तानी नागरिक समाज के सदस्यों के 'लगातार अनुरोध' का हवाला देते हुए खुद को फील्ड मार्शल का पद दिया। अक्टूबर 1959 में राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा उन्हें पदोन्नत करने की घोषणा जारी की गई थी।
क्या अयूब खान फील्ड मार्शल बनने के बाद भी सेना प्रमुख बने रहे थे?
नहीं, अयूब खान ने राष्ट्रपति बनने के बाद जनरल मूसा खान को पाकिस्तानी सेना का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया था। उसके बाद वे सेना की कमान संभालने में सक्रिय नहीं रहे और देश चलाने पर ध्यान केंद्रित किया।
अयूब खान की तुलना में असीम मुनीर का फील्ड मार्शल बनना कितना अलग है?
अनिवार्य अंतर यह है कि अयूब ने खुद को पदोन्नत किया, जबकि असीम मुनीर को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने पदोन्नत किया है। एक और बड़ा अंतर यह है कि अयूब ने फील्ड मार्शल के तौर पर पाकिस्तानी सेना की कमान नहीं संभाली, लेकिन असीम मुनीर अपनी सेवानिवृत्ति की निर्धारित तिथि तक पाकिस्तानी सेना के सेनाध्यक्ष बने रहेंगे। वे 2025 में सेना से सेवानिवृत्त हो जाते, लेकिन नवंबर 2024 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली द्वारा पारित एक कानून के कारण ऐसा नहीं हो पाया, जिसके तहत सेना, नौसेना और वायु सेना प्रमुखों का कार्यकाल तीन साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया। अब वे 2027 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
असीम मुनीर की सैन्य पृष्ठभूमि क्या है?
जनरल असीम मुनीर को अप्रैल 1986 में फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में कमीशन दिया गया था। उन्होंने मंगला (पंजाब) में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) से स्नातक किया था। पासिंग आउट परेड में उन्हें स्वॉर्ड ऑफ ऑनर मिला। उन्होंने जापान में फ़ूजी स्कूल, क्वेटा में कमांड एंड स्टाफ़ कॉलेज, कुआलालंपुर में मलेशियाई सशस्त्र बल रक्षा कॉलेज और इस्लामाबाद में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (NDU) में करियर कोर्स में भाग लिया है। कहा जाता है कि सऊदी अरब में तैनात होने के दौरान उन्होंने इस्लामी अध्ययन किया और कुरान को याद किया। उन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट की 23वीं बटालियन की कमान संभाली और ब्रिगेडियर के रूप में उत्तरी क्षेत्रों में एक पैदल सेना ब्रिगेड की कमान संभाली। मेजर जनरल के रूप में उन्होंने उत्तरी क्षेत्रों में फोर्स कमांडर और बाद में सैन्य खुफिया महानिदेशक के रूप में कार्य किया। लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नति के बाद उन्होंने डीजी आईएसआई के पद पर कार्य किया और 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के समय वे इसी पद पर थे। इसके बाद उन्होंने गुजरांवाला में 30 कोर के जीओसी के रूप में कार्य किया। नवंबर 2022 में सेना प्रमुख के रूप में पदोन्नत होने से पहले वे रावलपिंडी में पाकिस्तान जीएचक्यू में क्वार्टरमास्टर जनरल के पद पर कार्यरत थे।
हारने पर हार केवल पाकिस्तान में ही पहनाया जा सकता है
हालांकि जिस तरह पाकिस्तान ने भारत के सामने ऑपरेशन सिंदूर के सामने मुंह की खाई है। ये सवाल उठता है कि उसके टॉप जनरल आसिम मुनीर ने हार की ऐसी कौन सी मिसाल पेश कर दी कि पाकिस्तान ने खुश होकर उन्हें प्रमोशन दे डाला। हम कई बार ये सोचते थे कि पाकिस्तान के फौजी के छाती पर इतने मेडल कैसे होते हैं। आज तक कोई भी जंग नहीं जीतने वाली पाकिस्तानी सेना के अफसरों के पास इतने मेडल कहां से आते हैं। पाकिस्तानी सेना के बड़े बड़े अफसर अपनी यूनिफॉर्म में फर्जी मेडल्स लटकाने के लिए वैसे ही हमेशा ट्रोल होते आए हैं। अब समझ आया कि जितनी बार भी हारने पर उन्हें मेडल से नवाजा जाता है। भारत से हारने पर बड़ा सा मेडल लगा दिया जाता है। आसिम मुनीर के केस के बाद अब तो पूरी दुनिया को मेडल वाली थ्योरी का पता चल गया होगा। आसिम मुनीर की जिस तरह से हार हुई कोई और होता तो मुंह छिपाता। पाकिस्तानी सेना को लगता है कि सिर्फ सितारे लगा लेने से ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं तब तो ठीक है। अगर वो सोच रहे हैं कि आसिम मुनीर के फील्ड मार्शल बन जाने से रॉकेट में बैठकर पांच सितारों के पास पहुंच जाएंगे तो उन्हें अपनी सेना के हथियारों का पहले रिव्यू कर लेना चाहिए कि उनमें दम कितना है।
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