इशरत जहां एनकाउंटर केस: जानिए कब-कैसे-क्या हुआ, कोर्ट ने क्यों आरोपियों को किया बरी?

Ishrat Jahan
अभिनय आकाश । Apr 1 2021 5:08PM

5 जून 2004 को गुजरात पुलिस और एटीएस के अहमदाबाद के बाहरी इलाके में हुए एक ज्वाइंट ऑपरेशन में चार लोग मारे जाते हैं और इन चार लोगों में इशरत जहां भी थी। मारे गए चार लोगों में इशरत जहां के अलावा, जावेद शेख यानी प्राणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जिशान जौहर शामिल था।

कभी-कभी पूरा का पूरा सिस्टम देश को नुकसान पहुंचाने वाला एजेंडा चलाने लगता है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है इशरत जहां एनकाउंटर केस। आज हम इस कुख्यात एनकाउंटर केस का एमआऱआई स्कैन करेंगे क्योंकि 31 मार्च 2021 को इशरत जहां एनकाउंटर केस में सीबीआई कोर्ट ने तीन पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने तरुण बरोट और जीएल सिंघल समेत तीन पुलिस अफसरों को केस से बरी कर दिया है। ये तीनों अधिकारी ही इस केस में आखिरी तीन आरोपी थे, जिन्हें बरी किया गया है। इससे पहले कुछ अन्य अधिकारियों को कोर्ट से क्लीन चिट मिल चुकी है। जून 2004 में गुजरात पुलिस पर इशरत जहां, जावेद शेख और दो अन्य लोगों के फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे थे।

कौन थी इशरत जहां

इशरत जहां का जन्म बिहार के एक परिवार में 1985 को हुआ था। अपने सात भाई-बहनों में इशरत दूसरे नंबर पर थी। वह मुंबई के गुरु नानक खालसा कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई कर रही थी। इशरत के पिता मोहम्मद शमीम रजा एशियन कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाते थे और उसकी मां मुंबई के वाशी इलाके में मेडिकल पैकेजिंग कंपनी में काम करती थी। सभी लोग मुंबई के पास ठाणे के मुस्लिम बहुल मुंब्रा इलाके में रहते थे। 2002 में इशरत जहां के पिता की मौत हो जाती है। पिता की मौत के बाद इशरत की केरल के रहने वाले जावेद शेख उर्फ प्राणेश से मुलाकात हुई। वो जावेद की सेक्रेट्री बन गई और उसके अकाउंट्स का काम भी देखती थी। जावेद शेख मुज्म्मिल भट के संपर्क में था और उसी के कमांड पर नरेंद्र मोदी पर हमले की तैयारी थी। इशरत के परिवार वालों के अनुसार इशरत की जावेद के साथ मुलाकात एनकाउंटर से दो महीने पहले हुई थी। उसने इशरत को नौकरी दी और फिर अपने साथ नासिक, बेंगलुरु और लखनऊ ले गया। काम के सिलसिले में दोनों टूर पर भी जाते थे। 

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11 जून 2004 ... नासिक के लिए घर से निकली इशरत...

11 जून 2004 को इशरत जहां अपने घर ये कहती है कि उसे एक जरूरी काम से जावेद शेख के साथ नासिक जाना है। 11 जून को नासिक से वो अपने घर फोन भी करके कहती है कि मैं बस स्टॉफ पर हूं। थोड़ी देर बाद वो दूसरा कॉल करती है और शायद ये उसका आखिरी कॉल था। वो कहती है कि जावेद तो आ चुका है लेकिन उसके साथ कुछ अजीब से लोग हैं और मैं बहुत घबराई हुई हूं। इसके बाद फिर फोन पर कोई बातचीत नहीं होती है। 

नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने का मिशन पुलिस ने किया नाकामयाब

15 जून 2004 को गुजरात पुलिस और एटीएस के अहमदाबाद के बाहरी इलाके में हुए एक ज्वाइंट ऑपरेशन में चार लोग मारे जाते हैं और इन चार लोगों में इशरत जहां भी थी। मारे गए चार लोगों में इशरत जहां के अलावा, जावेद शेख यानी प्राणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जिशान जौहर शामिल था। एनकाउंटर के बाद पुलिस प्रेस कॉन्फ्रेंस करती है और बताती है कि ये चारों लश्कर के एक मॉड्यूल थे। गुजरात के उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने के लिए लश्कर ने इन्हें भेजा था। जिसकी भनक पुलिस को पहले लग गई औऱ फिर मिशन को नाकामयाब कर दिया गया। केरल के जावेद शेख के परिवार वालों ने आवाज उठाई और वहीं इशरत जहां के घरवाले टीवी पर सामने आते हैं और कहते हैं कि उनकी बेटी का लश्कर और आतंकी गतिविधियों से कोई मतलब नहीं है। जिसके बाद राजनीतिक पार्टियां भी इसमें शामिल हो जाती हैं। पुलिस की कार्रवाई के बाद इशरत की बॉडी उसके घर वालों को सौंप दी जाती है। वहीं पाकिस्तानी आतंकी राणा और आमजद का संस्कार पुलिस द्वारा ही किया जाता है। मुंबई के उस इलाके में जहां इशरत रहती थी वहां जब उसकी शवयात्रा निकली तो उसमें करीब 10 हजार लोग शरीक हुए। जिसकी अगुवाई समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने इसे हत्या बताते हुए मामले की जांच सीबीआई से करवाने की बात कही। 

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लश्कर के मुखपत्र का दावा

लाहौर से छपने वाले गजवा टाइम्स जिसे आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा का मुखपत्र कहा जाता है ने माना की इशरत लश्कर के लिए काम कर रही थी। इसमें कहा गया कि इशरत को जन्नत नसीब हुई और उस वक्त वो अपने पति के साथ मिशन पर थी। गजवा ने अपनी वेबसाइट पर लिखा कि गुजरात पुलिस ने इशरत का बुर्का हटा दिया और उसे दूसरे मुजाहिदीनों की लाश के पास लिटा दिया गया। लेकिन भारत में सेक्युलर राजनीति इसे कैसे स्वीकार कर लेती। इस दौरान इशरत जहां के लिए राजनेता और सेक्युलर ब्रिगेड आंसू बहा रहे थे, उसे अपनी बेटी बता रहे थे। ये वो लोग थे जिन्होंने इशरत जहां के घर को किसी दौर में सेक्युलर टूरिज्म का अड्डा बना दिया। 

मामला कोर्ट में जाता है

पूरा मामला कोर्ट में जाने के बाद वहां के मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट एसपी तमांग को पूरे मामले की जांच की जिम्मेदारी दी जाती है। पांच साल बाद सात सितंबर 2009 को उन्होंने अपनी 243 पन्नों की जांच रिपोर्ट जमा की जिसमें एनकाउंटर को फर्जी बताया गया। रिपोर्ट में दावा किया गया कि पुलिस ने इन चारों की हत्या की है और इसके लिए डीजी बंजारा को कटघरे में खड़ा किया। अपनी रिपोर्ट में तमांग ने दावा किया कि 14 जून नहीं बल्कि पुलिस ने इन्हें इससे पहले ही उठाया था। पिर इनको पुलिस कस्टडी में गोली मारी गई और हथियार रखे गए। तमांग ने अपनी रिपोर्ट में चारों का लश्कर से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होने का दावा किया था। इस रिपोर्ट को गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया। 

एसाईटी का गठन

जब ये रिपोर्ट आई तो इसको लेकर खूब हंगामा भी हुआ। जिसके बाद इसे गुजरात सरकार द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने तमांग की रिपोर्ट पर स्टे लगा दिया। इस कमेटी के मेंबर जस्टिस कल्पेश जावेरी ने तमांग पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर की चीजों पर भी गैरजरूरी टिप्पणी की है। इसके बाद जजों की बेंच ने तमांग के खिलाफ एनक्वायरी बैठाने के आदेश दिया। एजीडीपी प्रमोद कुमार के नेतृत्व में हाईकोर्ट के निर्देश पर एसआईटी बनी। 21 नवंबर 2011 को हाईकोर्ट की निगरानी में बनाई गई एसआईटी ने एनकाउंटर को फेक बताया और कई पुलिसवालों को नामजद किया। इसमें 20 लोग शामिल थे। कुछ आईपीएस रैंक के अधिकारी भी थे। 

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सीबीआई की निगरानी में जांच

सीबीआई पूरे मामले की जांच करती है और अपनी चार्जशीट कोर्ट में पेश करती है। सीबीआई की तरफ से एनकाउंटर को फर्जी बताया गया। सीबीआई की तरफ से चार्जशीट में बताया कि इशरत जहां के साथ प्राणेश पिल्लई को गुजरात के आनंद डिस्ट्रिक्ट से पुलिस उठा लेती है। इन्हें अहमदाबाद के बाहरी इलाके में ले जाकर पुलिस गैर कानूनी तरीके से अपने हिरासत में रखती है। जिशान जौहर और अमजद अली राणा पहले से ही पुलिस की गिरफ्त में थे। बंजारा के नेतृत्व में पूरी प्लानिंग होती है। 15 जून की सुबह इन्हें बाहर निकाला जाता है। एक सुनसान जगह पर ले जाकर इस घटना को अंजाम देते हैं। 21 फरवरी 2013 को सीबीआई ने गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल को गिरफ्तार किया और कई पुलिस वाले भी गिरफ्तार किए गए। मगर सीबीआई 90 दिनों की तय सीमा के अंदर कोई चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई। जिसके बाद अमीन को छोड़कर सभी आरोपियों को जमानत मिल गई। 

हेडली ने लश्कर की फिदायीन बताया

जून 2013 में इंडिया टुगे मैगजीन की रिपोर्ट में खुलासा करते हुए कहा था कि आईबी चीफ आसिफ इब्राहिम ने उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री के दफ्तर को बताया था कि उनके पास इशरत जहां के खिलाफ पुख्ता सबूत है। ये इशारा करते हैं कि इशरत लश्कर के उस मॉड्यूल का हिस्सा थी, जो नरेंद्र मोदी और आडवाणी को मारना चाहता था। डेविड हेडली ने मुंबई की स्पेशल कोर्ट में अपनी गवाही के दौरान इशरत जहां को लश्कर ए तैयबा का आतंकवादी बताया था। रिचर्ड हेडली के मुताबिक इशरत लश्कर की फिदायीन हमलावर थी और वो कश्मीरी आतंकवादी मुजम्मिल भट को रिपोर्ट करती थी। उसने कहा था कि उसे ये बात जकीउर रहमान लखवी ने कही थी। लेकिन बाद में हेडली अपने बयान से पलट गया और कहा कि उसने ये बातें मीडिया के माध्यम से जानी। 

सीबीआई अदालत ने सभी आरोपियों को किया बरी

इशरत जहां मामले में विशेष सीबीआई अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए मामले में आरोपी आईपीएस अधिकारियों को बरी कर दिया। अदालत की ओर से कहा गया कि क्राइम ब्रांच के अधिकारी जीएल सिंघल, तरुण बारोट व अनाजों चौधरी ने आईबी से मिले इनपुट के आधार पर कार्यवाही की जैसी उन्हें करना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि इशरत को आतंकवादी नहीं मानने का कोई कारण नजर नहीं आता है। पुलिस अधिकारियों ने जिस घटना को अंजाम दिया वह परिस्थिति जघन्य थी तथा उनके द्वारा यह जानबूझकर किया गया ऐसा नहीं लगता है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि‘‘ सीबीआई ने अनुमति आदेश के खिलाफ कुछ भी विशेष उल्लेख नहीं किया है (जिसमें गुजरात सरकार ने तीनों आरोपियों पर अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया) जिससे यह भी माना जाता है कि आवेदक/आरोपी आधिकारिक कर्तव्य का निवर्हन कर रहा था।’’ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 20 मार्च को अदालत को सूचित किया था कि राज्य सरकार ने तीनों आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अक्टूबर 2020 के आदेश में टिप्पणी की थी उन्होंने (आरोपी पुलिस कर्मियों)‘आधिकारिक कर्तव्य के तहत कार्य’ किया था, इसलिए एजेंसी को अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत है। 

"इशरत जहां आतंकवादी नहीं थी इसका कोई सबूत नहीं है" ये बात सुनकर देश के कथाकथित बुद्धिजीवी, सेक्युलर पत्रकार और नेता बेचेन हो गए होंगे जो पिछले 17 वर्षों से इशरत जहां के लिए आंसू बहा रहे थे। ये वो देश है जहां खून बहाने वाले आतंकवादियों के लिए भी आंसू बहाए जाते हैं। ये वो देश है जहां निर्दोष लोगों को मारने वाले आतंकवादियों को बेकसूर ही नहीं शहीद भी बता दिया जाता है। ये वो देश है जहां के नेता वोटों के लिए आतंकवादी को बेटी कहने से भी नहीं हिचकिताते हैं। आपको याद करा दें कि 2005-06 के दौरान बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर को लेकर राजनीति खूब तेज हुई थी। उस केस में भी सीबीआई की विशेष अदालत से सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था।- अभिनय आकाश

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