दुश्मन न करे दोस्त ने जो...का चुप साध रहा बलवाना, ट्रंप की इस हरकत ने क्या मोदी की Great Grand US Visit की चमक को किया फीका?

Modi trump
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अभिनय आकाश । Feb 7 2025 1:24PM

यूएस एयरफोर्स का विमान सी 17 ग्लोब मास्टर, दुनिया में अमेरिका के बाद हिंदुस्तान ही इस विशाल जहाज का सबसे बड़ा यूजर है। हमनें अरबों डॉलर देकर इसे यूएस से ही खरीदा है। जब ये आसमान में उड़ता है तो हिंदुस्तान की सैनिक शक्ति के साथ साथ अमेरिका संग उसकी घनिष्टता भी नजर आती है। लेकिन 5 फरवरी को जब ये अमृतसर के आसमान में नजर आया तो कोई इसे सिर उठाकर नहीं देखना चाहता था।

खंडेला के बाजार एक शाम हुआ ये ऐसा, एक ठेले से एक भूखे ने उठा लिया एक समौसा। 

फिर वहां खड़े सब ने धोया दे मूंछों पे ताव, वो दारा सिंह हो गए। 

अगले दिन उसी चौक पर उसी जगह एक मजदूर के ठेकेदार खा गए पैसे। 

वहां खड़े छे चुप्पी साधे मूंछों वाले भैंसे, सीना धस, मूंछे नीची, हो गई निक्कर ढीली। 

राहगीर की इन पंक्तियों के साथ आज आपका अपना खास प्रोग्राम एमआरआई शुरू करने के पीछे का मकसद ये है कि कमजोर पर जोर दिखाना कितना सरल होता है। लेकिन मजबूत के आगे हमारे गले की आवाज और बोलने के संवाद में अंतर साफ नजर आता है। ये फॉर्मूला व्यक्तियों के अलावा देशों पर भी लागू होता है। 

आ गए ट्रम्प, छा गए ट्रम्प। इधर ली शपथ, उधर धड़ाधड़ साइन कर दिए कई एग्जीक्यूटिव आर्डर। भारत और पीएम मोदी के पक्के दोस्त, कनाडा, बांग्लादेश, चीन जैसे हिन्दुतान को आंखें दिखाने वाले मुल्क के दुश्मन। दुनिया को टैरिफ का डर दिखाया, कई देशों से अपनी बातें मनवाई तो कईओं को अपने आगे झुकाया। जो नहीं झुके उनपर मनमाना टैक्स लगाया। सीमा पर अपनी कारगुजारियों से भारत को परेशान करने वाला चीन और उसके नेता ट्रम्प के टैरिफ वॉर से हैरान-परेशान नजर आ रहे हैं। लेकिन इस टैरिफ वॉर से भी भारत को फिलहाल रियायत मिली हुई है। मिले भी क्यों न भला, ट्रम्प तो भारत के प्रधानमंत्री के दोस्त हैं। दोनों नेताओं के रिश्तों की गर्मजोशी किसी से छुपी भी नहीं है। अब जरा सोचिए कि दो दोस्त जो आपस में एक दूसरे को माई डियर फ्रेंड कहकर ही सार्वजनिक मंचों से संबोधित करते हैं। उनमें से कोई एक दूसरे के परिवार वालों के साथ बदसलूकी करें तो रिश्तों में खटास आना और इसकी चर्चा करना भी लाजिमी है। 

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अमेरिका संग भारत की घनिष्टता को दर्शाता सी-17 ग्लोबमास्टर प्लेन

यूएस एयरफोर्स का विमान सी 17 ग्लोब मास्टर, दुनिया में अमेरिका के बाद हिंदुस्तान ही इस विशाल जहाज का सबसे बड़ा यूजर है। हमनें अरबों डॉलर देकर इसे यूएस से ही खरीदा है। जब ये आसमान में उड़ता है तो हिंदुस्तान की सैनिक शक्ति के साथ साथ अमेरिका संग उसकी घनिष्टता भी नजर आती है। लेकिन 5 फरवरी को जब ये अमृतसर के आसमान में नजर आया तो कोई इसे सिर उठाकर नहीं देखना चाहता था। लेकिन ट्रंप ये बताने में कोई कसर छोड़ने की तैयारी में तो कतई नजर नहीं आए कि उन्होंने अपने देश से अवैध एलियंस को कैसे निकाला है। अमेरिकी सैनिक विमान का अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरना भारत के लिए कई लिहाज से असुविधाजनक है। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है जब अवैध प्रवासी भारतीय वापस भेजे गए हों। लेकिन इस बार कई ऐसी बातें हैं, जो इसे अतीत की ऐसी घटनाओं से अलग करती हैं। कहा तो ये भी जा रहा कि अगर सच में अगर दोस्त ऐसे होते हैं तो फिर भला क्या दुश्मनों की जरूरत रह जाती है? 

जो लौट कर अमेरिका से आए, जरा बात उनकी भी कर लें

"हमें 40 घंटे तक चेन में बांध कर रखा गया। खाना खाने के लिए भी चेन नहीं खोली गई। वाशरूम जाने के लिए भी हमें गिड़गिड़ाना पड़ा।" ये आपबीती इंडियन एक्सप्रेस को उन लोगों ने सुनाई जिसे प्रधानमंत्री के डियर फ्रेंड डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार ने मिलिट्री प्लेन में बांधकर भेजा है। ट्रम्प सरकार अवैध प्रवासियों को अमेरिका से बाहर निकालने की मुहिम चला रही है। उन्हें एयर फोर्स के कार्गो प्लेन में भरकर उनके देश भेजा जा रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सवा सात लाख प्रवासी भारतीय हैं जिनके पास डॉक्यूमेंट नहीं हैं तो ये अवैध प्रवासी बन गए। उन पर भी डेपोर्टेशन की तलवार लटक रही है। भारत सरकार ने कहा है कि हमें अपने लोगों को लेने में कोई दिक्कत नहीं है। बशर्ते उनके पास डॉक्युमेंट्स हो और उनकी भारतीय नागरिकता की पुष्टि हो जाए। विदेश मंत्रालय की तरफ से कुछ इसी तरह का बयान दिया गया। फिर जनवरी 2025 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा भी लिया। इस दौरान एस जयशंकर की फ्रंट रो में बैठे हुए तस्वीर भारतीय मीडिया में खूब वायरल भी हुई और इसे बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर के रूप में पेश में किया गया कि किसी विदेश मंत्री को अन्य देशों के देशों के  राष्ट्रीय अध्यक्षों से पैर आगे की कतार में जगह मिलना भारत के साथ और खासकर ट्रंप के साथ दोस्ती को दर्शाता है। ट्रंप के विदेश मंत्री मार्को रुबियो और सिक्योरिटी एडवाइजर से जयशंकर की वन टू वन मीटिंग हुई। उसमें भी अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठा। जयशंकर मीटिंग के बाद बाहर आए तो प्रेस ने उनसे सवाल भी पूछे और उन्होंने भी वही बात दोहराई। लेकिन शायद वह यह बताना भूल गए कि अमेरिका ने उनकी राय पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। इसलिए भारतीयों को डिपोर्ट करते हुए न तो उनके अधिकारों का ध्यान रखा गया और न ही मानवीय गरिमा का। 

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माई डियर फ्रेंड ट्रंप के अमेरिका में आने के बाद क्या बदला? 

सबसे हैरान की बात यह है कि ऐसा सब कुछ उसे व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है जिससे दोस्ती की मिसाले हमारे यहां लोग देते नहीं थकते हैं। स्टेडियम में जिनके लिए प्रोग्राम होता है। हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर टैक्स कम किया जाता है। 5 नवंबर 2024 को अमेरिका में चुनाव हुए और 6 नवंबर को शुरुआती रुझान के साथ यह साफ होता गया कि डोनाल्ड ट्रंप इस बार चुनाव जीत जाएंगे। पीएम मोदी ने सबसे पहले एक्स पर पोस्ट किया और उसमें माई फ्रेंड ट्रम्प को ऐतिहासिक जीत की बधाई दी। उसी रोज प्रधानमंत्री मोदी ने फोन करके भी बधाई दी। उसका ब्यौरा भी एक्स पर दिया और उसमें भी डोनाल्ड ट्रम्प को माई फ्रेंड से संबोधित किया। फिर आता है 20 जनवरी का दिन यानी ग्रैंड इनॉग्रेशन डे और इसे भी ट्रंप ने खास बनाते हुए पहली बार विदेशी नेताओं को न्योता दिया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और इटली की प्रधानमंत्री जार्जिया मेलोनी को। ट्रम्प के शपथ ग्रहण में डॉक्टर जयशंकर ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। शपथ ग्रहण के 7 दिनों बाद प्रधानमंत्री से फोन पर फिर बातचीत हुई। इससे पहले ट्रंप जिनपिंग, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर वैगेरह से बात कर चुके थे। फिर अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी रायटर्स ने व्हाइट हाउस के हवाले से दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरा तय हुआ है। 13 फरवरी को ट्रम्प और मोदी की मुलाकात होगी। 

डिपोर्टेशन नया नहीं, पर भाषा है अलग

क्या यूएस और भारत के रिश्तों में इस डिपोर्टेशन ऑपरेशन का कुछ असर होगा? फॉरेन एक्सपर्ट मानते हैं कि डिपोर्टेशन कोई नहीं चीज नहीं है, यह पहले भी होती रही है। खासकर 9/11 के बाद तो 20 लाख के आसपास और ओबामा के वक्त में 32 लाख लोगों को डिपोर्ट किया था। इस बार उसे करने का तरीका अलग है, भाषा अलग है। इसका यूएस-भारत रिश्तों पर कोई बड़ा असर नहीं होगा लेकिन कुछ असर तो होगा ही क्योंकि इसे सार्वजनिक तौर पर बढ़ाचढ़कर किया जा रहा है। अवैध प्रवासियों की उचित तरीकों से पहचान कर उन्हें उनके देशों को वापस भेजा जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। भारत का इस मामले में शुरू से सहयोगात्मक रुख रहा है। लेकिन एक जायज सवाल वापसी के तरीके का है। इस बार ट्रंप सरकार ने जिस तरह से सैनिक विमान का उपयोग इस काम में किया है, उस पर कई देशों ने आपत्ति जताई है। हालांकि भारत ने इसे मुद्दा बनाने से परहेज किया।

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ट्रंप ने सैन्य विमान का ही प्रयोग क्यों किया

इस बात को हम ट्रंप के इस बयान से समझ सकते हैं जब उन्होंने कहा था कि इतिहास में पहली बार हम अवैध एलियंस (प्रवासियों) को सैन्य विमान में चढ़ाएंगे और उड़ाकर वहां छोड़कर आएंगे, जहां से वो आए थे। हम फिर से अपना सम्मान चाहते हैं। सालों से वो हम पर हंसते रहे हैं, ऐसे जैसे हम बेवकूफ लोग हैं।

क्या ताकत दिखा रहे ट्रम्प

ट्रंप के सैन्य विमान वाली नीति की आलोचना हो रही है। लेकिन यह मामला उनके चुनावी कैंपेन से जुड़ा है। चुनाव के दौरान उन्होंने अपने वोटरों को वादा किया था कि वह अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाल देंगे। उन्होंने इस मामले को जोर शोर से भुनाया। एक आकलन बताता है कि सी17 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के हर घंटे इस्तेमाल में करीब $28,500 का खर्चा आता है। भारत जैसे अच्छी-खासी दूरी वाली देश के लिए ये और महंगा है। लैटिन अमेरिका के देशों में अमेरिका के सैन्य विमान पुराने वक्त की नकारात्मक भावनाएं जगाने का काम भी कर सकते हैं, जो डिप्लोमेसी लिए ज्यादा फायदेमंद ना हो। ब्राजील पहले ही नागरिकों को हथकड़ी लगाए जाने का विरोध कर चुका है।

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