हार के साथ शुरू हुई कहानी को जीत पर मिलेगा विराम!आखिरी शॉट में BJP को 36 वाली बाउंड्री पार करा पाएंगे JP?

जेपी नड्डा का कार्यकाल पिछले साल फरवरी 2024 में ही पूरा हो गया था लेकिन लोकसभा चुनाव और फिर राज्यों के विधानसभा चुनाव के मध्य नजर इसे बढ़ाया जाता रहा। बीजेपी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले 50% राज्य इकाई का संगठन आत्मक चुनाव होना अनिवार्य है।
दिल्ली में 5 फरवरी को वोट डाले जाने हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ढाई दशक के सामने भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक वनवास खत्म करवाने की चुनौती है। पिछले ढाई दशक में जब जब विधानसभा के चुनाव हुए हैं तो बीजेपी को यहां शिकस्त ही मिली है। कहा जाता है कि देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के लिए दिल्ली सबसे कमजोर कड़ी साबित होती रही है। जेपी नड्डा का कार्यकाल पिछले साल फरवरी 2024 में ही पूरा हो गया था लेकिन लोकसभा चुनाव और फिर राज्यों के विधानसभा चुनाव के मध्य नजर इसे बढ़ाया जाता रहा। बीजेपी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले 50% राज्य इकाई का संगठन आत्मक चुनाव होना अनिवार्य है। अब राजनीतिक पंडित यही सवाल उठा रहे हैं कि क्या कार्यकाल के 'आखिरी बॉल' पर नड्डा बीजेपी को बहुमत के 36 वाले आंकड़े को पार करा पाएंगे?
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मोदी-शाह दोनों के करीबी
कुशल रणनीतिकार होने के साथ ही नड्डा पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विश्वासपात्र भी माने जाते रहे हैं। कठिन से कठिन कामों को सूझबूझ और सरलता से सुलझाने में माहिर नड्डा भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए। पीएम मोदी और अमित शाह दोनों के साथ जेपी नड्डा के रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं। बता दें कि नरेंद्र मोदी जब हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे उस वक्त जेपी नड्डा और मोदी साथ में काम किया करते थे। दिल्ली के अशोक रोड स्थित भाजपा के पुराने मुख्यालय के आउट हाउस में दोनों एक साथ रहा करते थे। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से भी नड्डा की करीबी काफी पुरानी है। शाह जब जनता युवा मोर्चा के कोषाध्यक्ष थे तो नड्डा भाजयुमो के अध्यक्ष थे।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा का रिकॉर्ड
जय प्रकाश आंदोलन से प्रभावित होकर छात्र राजनीति की ओर कदम बढ़ाने वाले नड्डा ने वैसे तो बीजेपी की छात्र ईकाई एवीबीपी से राजनीति में एंट्री ली। फिर 1993 में बिलासपुर के विधायक के रूप में पहली बार विधानसभा पहुंचे। लेकिन अगर बाद साल 2019 के अप्रैल महीने की करें तो नरेंद्र मोदी सरकार पार्ट 2 के शपथ ग्रहण सामरोह में एक नाम ऐसा था जिस पर हर किसी निगाहें टिकी थी, वो नाम था मोदी के सिपहसालार अमित शाह का। यह कयास लगाए जा रहे थे कि शाह मंत्री पद संभालेंगे कि नहीं। लेकिन तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए अमित शाह ने मंत्री पद की शपथ भी ली और देश के गृह मंत्री भी बन गए। जिसके बाद अटकलों का बाजार देश की सबसे बड़ी पार्टी के नए अध्यक्ष को लेकर गर्म हो गया। पिछले मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे जगत प्रकाश नड्डा के इस बार मंत्री नहीं बनने के बाद से ही उनका नाम भाजपा के अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे चल रहा था। नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। उसके तुरंत बाद जनवरी के महीने में जगत प्रकाश नड्डा भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष चुन लिए गए। उन्हें तीन वर्षों के लिए भाजपा का अध्यक्ष चुना गया। बिहार के विधानसभा चुनाव व उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक आदि राज्यों में अभी हाल ही में संपन्न हुए कुछ विधानसभा सीटों के उपचुनावों में भाजपा को मिली जबरदस्त सफलता ने देश के अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों के आकलन को जहां एक तरफ न सिर्फ धता बताया बल्कि सभी को चौकांया क्योंकि अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों व बहुत सारे राजनेताओं का चुनाव से पहले व चुनाव के दौरान मत था कि देश में कोरोना महामारी की वजह से जगह-जगह उत्पन्न हुई विभिन्न प्रकार की बेहद गंभीर समस्याओं के चलते, भाजपा को इन चुनावों में जनता का सामना करने में भारी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप चुनाव परिणामों में हार के चलते भाजपा को जबरदस्त निराश हाथ लगेगी। लेकिन जब बिहार व अन्य राज्यों के चुनाव परिणाम सभी के सामने आये तो भाजपा ने जीत का सेहरा अपने सिर बांधकर सभी चुनावी विश्लेषकों व चुनावों में परास्त हुए राजनीतिक दलों को गहन आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है।
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तमाम प्रयोगों पर कामयाबी की मुहर
पूरा कार्यकाल पार्टी के लिए मिले-जुले परिणाम वाला रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को लगातार दूसरी बार बहुमत मिलने पर तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को केंद्रीय गृह मंत्री बनाए जाने के बाद नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। उसके तुरंत बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। हरियाणा में बहुमत से वंचित बीजेपी को नई बनी क्षेत्रीय पार्टी जेजेपी से गठबंधन कर सरकार बनानी पड़ी, लेकिन पांच साल बाद 2024 के चुनाव में सत्ता की 'हैट्रिक' से पार्टी ने सारी भरपाई कर ली। महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना में तकरार के चलते सरकार बनने-बिगड़ने का खेल लंबा चला। लेकिन 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की एकतरफा जीत ने उसके तमाम प्रयोगों पर कामयाबी की मुहर लगा दी।
कई बड़े और अहम राज्यों में मिली जीत
कहा जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। जब लोकसभा चुनाव अपने चरम पर था और उत्तर प्रदेश में बसपा-सपा-रालोद की तिकड़ी महागठबंधन के जरिए चमत्कार के सपने संजो रही थी और सभी राजनीतिक पंडित इस चुनाव में भाजपा के यूपी में खराब प्रदर्शन करने की भविष्यवाणी करते दिख रहे थे। उस वक्त एक शख्स बूथ लेवल से लेकर प्रदेश की सियासी गलियों को भापंने व नांपने में लगे था। वो नाम था हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा सांसद और उत्तर प्रदेश के प्रभारी जेपी नड्डा। परिणाम जब सामने आए महागठबंधन का कुनबा ही बिखड़ गया और भाजपा ने सूबे की 62 सीटें अपने नाम कर ली। वहीं विधानसभा चुनाव के परिणाम ने तो इतिहास बदला नहीं बल्कि पहली बार दोबारा जीत के साथ इतिहास बना दिया। क्या राजस्थान, क्या मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ नड्डा के कार्यकाल में एक एक कर सियासी सफलता दर्ज होते चले गए। याद कीजिए 2018 का वो साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के हाथों से कांग्रेस ने तीन अहम राज्यों को छीन जैसे संजीवनी पा लिया था। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदल से मध्य प्रदेश में तो बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई। बाकी दो राज्यों के लिए उसे पांच साल इंतजार करना पड़ा।
अंत भला तो सब भला
दो लोकसभा चुनावों में एकतरफा जीत हासिल करने वाली बीजेपी के लिए विधानसभा पर कब्जा ख्वाब ही रहा। पार्टी को 2013 में 33% तो 2015 में 32.3% वोट हासिल हुए। 2020 में बीजेपी के वोट प्रतिशत में 6% की बढ़ोतरी हुई। लेकिन वह जीत से कोसों दूर रही। दिल्ली के वोटरों ने केंद्रीय राजनीति के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा तो जताया, लेकिन दिल्ली के लिए केजरीवाल उसकी पसंद बने रहे। शायद यही वजह है कि आप बार-बार बीजेपी के मुख्यमंत्री के चेहरे का सवाल उछाल रही है। इसके जरिए केजरीवाल खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित भी कर रहे हैं।
बीजेपी को कांग्रेस से आस
बीजेपी की कामयाबी तीसरे दल की ताकत पर ज्यादा निर्भर करती है। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल को 12% से कुछ ज्यादा वोट मिले थे, जिसने पार्टी की जीत में भूमिका निभाई थी। अगले चुनाव में जनता दल अपने अंतर्विरोधों के चलते खत्म हो गया तो कांग्रेस को बढ़ने का मौका मिला। इस बार कांग्रेस पूरा दमखम लगा रही है। अगर वह जनता दल की तरह 12-15% तक वोट हासिल करने में सफल हुई तो BJP की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। बहरहाल, नड्डा की ख्वाहिश होगी की अध्यक्ष पद से उनकी विदाई दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के साथ हो। हालांकि यह इतना भी आसान नहीं होगा लेकिन असंभव तो कतई नहीं है।
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