एबीवीपी की जेएनयू इकाई के उपाध्यक्ष ने दिया इस्तीफा

[email protected] । Aug 27 2016 3:04PM

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जेएनयू इकाई के उपाध्यक्ष जतिन गोराया ने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है कि वह दलितों के खिलाफ हमलों पर एबीवीपी के रूख से ‘‘उकता’’ चुके हैं।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के जेएनयू इकाई के उपाध्यक्ष जतिन गोराया ने यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है कि वह दलितों के खिलाफ हमलों पर एबीवीपी के रूख से ‘‘उकता’’ चुके हैं। गोराया भाजपा की छात्र शाखा के ऐसे चौथे सदस्य हैं जिन्होंने इस साल कुछ निश्चित मतभेदों के कारण पार्टी से इस्तीफा दे दिया। नौ फरवरी को जेएनयू परिसर में कथित रूप से की गई ‘‘देशद्रोही नारेबाजी’’ की घटना के बाद फरवरी में तत्कालीन एबीवीपी जेएनयू इकाई के संयुक्त सचिव प्रदीप नरवाल और दो अन्य ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था।

‘मनुस्मृति’ में ‘‘दलित एवं महिला विरोधी’’ सिद्धांतों के विरूद्ध कुछ महीने पहले विश्वविद्यालय परिसर में हुए प्रदर्शन के दौरान कुछ छात्रों ने इस प्राचीन ग्रंथ के पन्ने जलाए थे, जिसमें गोराया भी शामिल थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने एबीवीपी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है और खुद को जातिवादी, हास्यास्पद एवं पुरूष प्रधान संगठन से अलग करता हूं। अभाविप का आचरण उसके जोड़तोड़ वाले फासीवादी तथा रूढ़िवादी चेहरे को उजागर करता है।’’

अपने इस्तीफा पत्र में उन्होंने दावा किया, ‘‘रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या और नौ फरवरी को हुई जेएनयू घटना से लेकर उना में दलितों की गरिमा एवं सामाजिक न्याय पर सवाल के संबंध में बढ़ती घटनाओं पर उन्होंने विपरीत रूख लिया है। अब यह चौंकाने वाली बात नहीं है कि अभाविप ने फर्जी राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद विरोधी बयानबाजी कर और अपनी फूट को उजागर कर तथा हम पर राष्ट्रवाद की अपनी घृणित विचारधारा थोपकर हमारी स्वयं की संस्था को कलंकित किया है।’’

गोराया ने शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया था और संपर्क करने पर उन्होंने बताया था कि किसी भी राजनीतिक संगठन में शामिल होने की उनकी कोई योजना नहीं है। अपने पत्र में उन्होंने आगे लिखा है, ‘‘जिस तरह से वे रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या को आत्महत्या के रूप में चित्रित करने और इसमें शामिल लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उससे यह पता चलता है कि वे कभी भी सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को लेकर प्रतिबद्ध नहीं रहे हैं।’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘गोरक्षा के नाम पर देश भर में दलितों और मुस्लिमों की हत्या की जा रही है, और फासीवादी ताकतों ने इन गोरक्षकों को दलितों को दबाने, अपमानित करने, पीटने और उनकी हत्या करने की खुली छूट दे रखी हैं।’’ गोराया ने कहा, ‘‘ऐसा संगठन जिसका निर्माण ही असमानता, भेदभाव, अवसरवाद और वर्चस्व के सिद्धांतों पर हुआ हो, उसे किसी भी संभव अर्थ में राष्ट्रवादी होने का दावा नहीं करना चाहिए।’’

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