पंजाब पुलिस के पूर्व अधिकारी को फर्जी मुठभेड़ मामले में 10 साल के कठोर कारावास की सजा

अदालत ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, मोहाली के सचिव को मुआवजा देने के लिए पीड़ित परिवारों के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया। सीबीआई के लोक अभियोजक अनमोल नारंग ने शिकायतकर्ताओं की ओर से पैरवी की।
मोहाली की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत ने 1993 में एक फर्जी मुठभेड़ में दो कांस्टेबल की मौत के मामले में पंजाब पुलिस के एक पूर्व अधिकारी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
विशेष न्यायाधीश (सीबीआई) बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने अमृतसर के ब्यास थाने के तत्कालीन प्रभारी परमजीत सिंह पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। सिंह (67) की पुलिस अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्ति हुई थी।
बुधवार को अदालत ने अपने आदेश में इस मामले के तीन अन्य आरोपियों तत्कालीन निरीक्षक धरम सिंह (77), तत्कालीन सहायक उप निरीक्षक कश्मीर सिंह (69) और तत्कालीन एएसआई दरबारा सिंह (71) को बरी कर दिया। एक अन्य आरोपी तत्कालीन उप निरीक्षण राम लुभाया की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।
बाबा बकाला के मुच्छल गांव के निवासी कांस्टेबल सुरमुख सिंह और खेला गांव के कांस्टेबल सुखविंदर सिंह को पुलिस ने 18 अप्रैल 1993 को गिरफ्तार किया था। स्कूटर चोरी के एक मामले में ब्यास थाने के तत्कालीन प्रभारी परमजीत सिंह ने सुरमुख सिंह को उनके घर से उठा लिया था, जबकि तत्कालीन एसआई लुभाया ने सुखविंदर को गिरफ्तार किया था।
सुखविंदर के माता-पिता ब्यास थाने गए, लेकिन उन्हें अपने बेटे से मिलने नहीं दिया गया। बाद में, मजीठा पुलिस ने दावा किया कि उसने मुठभेड़ में दो अज्ञात आतंकवादियों को मार गिराया है।
सीबीआई जांच के अनुसार बिना शिनाख्त के उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। एक हफ्ते बाद तत्कालीन थाना प्रभारी ने दावा किया कि आगे जांच की कोई आवश्यकता नहीं है। हालांकि, सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि मुठभेड़ फर्जी थी और पुलिस ने इसे असली दिखाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई ने 1995 में जांच अपने हाथ में ले ली। जांच में पाया कि मुठभेड़ में मारे गए दो अज्ञात आतंकवादी वास्तव में दो पुलिस कांस्टेबल थे। मृत पुलिस कांस्टेबल के परिवारों का संदर्भ देते हुए अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘अदालत 1993 से न्याय पाने के लिए दर-दर भटक रहे परिवारों की पीड़ा का भली-भांति अंदाजा लगा सकती है। उन्होंने इस लड़ाई में काफी धनराशि खर्च की होगी और उन्हें अपने पुनर्वास के लिए आर्थिक मुआवजे की जरूरत है।’’
अदालत ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, मोहाली के सचिव को मुआवजा देने के लिए पीड़ित परिवारों के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया। सीबीआई के लोक अभियोजक अनमोल नारंग ने शिकायतकर्ताओं की ओर से पैरवी की।
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