गलवान की घटना अकस्मात नहीं, बल्कि चीन की सोची-समझी कूटनीतिक चाल: पूर्व राजदूत

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वरिष्ठ राजनयिक व पूर्व राजदूत विष्णु प्रकाश का मानना है कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हाल का विवाद अकस्मात नहीं, बल्कि चीन की सोची समझी कूटनीतिक चाल थी।

नयी दिल्ली। वरिष्ठ राजनयिक व पूर्व राजदूत विष्णु प्रकाश का मानना है कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हाल का विवाद अकस्मात नहीं, बल्कि चीन की सोची समझी कूटनीतिक चाल थी। भारत और चीन के बीच सीमा पर चल रही तनातनी तथा इससे उपजे हालात पर विष्णु प्रकाश से‘ ’के पांच सवाल और उनके जवाब: सवाल : सीमा पर भारत और चीन के बीच चल रही तनातनी के मद्देनजर हुई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ना कोई हमारी सीमा में घुसा और ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है। इसके क्या राजनीतिक और कूटनीतिक मायने हैं ? जवाब: प्रधानमंत्री ने बहुत ही नपे-तुले शब्दों में सारी स्थिति स्पष्ट कर दी है।

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उन्होंने कहा है कि गलवान में हिंसा इसलिए हुई क्योंकि चीनी पक्ष एलएसी के नजदीक संरचनाएं खड़ी करना चाह रहा था ,जो समझौते के विपरीत था। यह कोई अकस्मात नहीं हुआ। चीनी सैनिकों के पास बंदूक नहीं थीं ,पर हथियार थे ,जिसका बहुत क्रूरता के साथ इस्तेमाल किया गया। भारतीय सेना ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। इस घटना के बाद एक बार फिर चीन का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया है। छल-कपट और झूठ-फरेब उसकी राजनीति और कूटनीति का हिस्सा है। हमारा रुख स्पष्ट है। हमें किसी की जमीन नहीं चाहिए लेकिन हम अपनीजमीन की रक्षा करना जानते हैं। हर कीमत पर हम अपनी जमीन की रक्षा करेंगे और उसमें सफल भी रहेंगे।

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सवाल: प्रधानमंत्री के इस बयान से कुछ विरोधाभास भी पैदा हुए। क्या कहेंगे आप ? जवाब: प्रधानमंत्री का बयान स्पष्ट है। इसलिए हमें अफवाहों में नहीं पड़ना चाहिए। आखिरकार जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की होती है। हमें उनकी बात पर भरोसा करना चाहिए। वह देश के चुने हुए नुमाइंदे हैं और130करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मैंने अपने लंबे राजनयिक करियर में देखा है कि जब संकट बाहर का होता है तो सभी देशवासी आपसी भेदभाव भूलकर एकजुट हो जाते हैं।

सवाल: वर्तमान सरकार के दौरान भारत और चीन के रिश्तों का आप कैसे आकलन करेंगे। जवाब: पिछले छह सालों में मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 18 मुलाकातें हुईं। उन्होंने पांच बार चीन का दौरा किया। इस उम्मीद के साथ किया कि हम चीन के साथ कोई न कोई हल निकालेंगे और समस्याओं का समाधान करेंगे। गलवान की घटना से स्पष्ट है चीन दोस्ताना मुल्क नहीं है और वह हमारा हित नहीं चाहता है। प्रधानमंत्री ने संबंध मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मगर चीन है कि धोखाधड़ी और फरेब में विश्वास करता है।

सवाल: सीमा पर मौजूदा हालात सामान्य करने के लिए सरकार को कूटनीतिक स्तर पर क्या प्रयास करने चाहिए ? जवाब: हमे धीरे-धीरे और बहुत सोच समझ कर आगे कदम उठाने होंगे। चीन बड़ा देश है। हम चाहते हैं कि वह दुनिया के नियम कायदे के हिसाब से चले और अपनी सैन्य ताकत का दुरुपयोग ना करें। भारत एक ऐसा देश है जो शांति चाहता है और बातचीत के जरिए समस्याओं का समाधान चाहता है। कूटनीति में बहुत जरूरी है कि बातचीत का दौर चलता रहे। जब कूटनीति खत्म होती है तो जंग शुरू होती है। बातचीत का दौर जारी रहेगा, लेकिन अब हमारी आंखें खुल गई है। हम अपने हित को जानते हैं और हम चीन का असली चेहरा भी जान गए हैं।

सवाल: चीन के खिलाफ देश भर में रोष है और चीनी सामान के बहिष्कार की मांग जोर पकड़ रही है। जवाब: अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए हमें चीनी सामान का बहिष्कार करना होगा। रातोंरात यह नहीं हो सकता, लेकिन इसकी शुरुआत की जा सकती है। धीरे-धीरे यह एक मुहिम बन जाएगी। हम अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकेंगे और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे। कोई हमें सामान बेचे ,उससे पैसे बनाये और उसी पैसे से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाये ,यह हमें स्वीकार नहीं। आज दुनिया भर में चीन के खिलाफ गुस्सा है। समय आ गया है कि समान सोच रखने वाले देश इकट्ठे हों। बातचीत करें और चीन को संदेश दें कि वह दुनिया के कायदे-कानून के हिसाब से चले। गलत व्यवहार दुनिया स्वीकार नहीं करेगी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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