लद्दाख गतिरोध को लेकर चीन पर भरोसा कम ! आगे की हर स्थिति के लिए तैयार भारत

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एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय सैन्य बल पूर्व क्षेत्र में अपनी पैनी नजर बनाए हुए है। साथ ही उन्होंने इसे कभी न खत्म होने वाली रात बताई।

नयी दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ तनातनी जारी है। इस तनातनी को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच में 12दौर की सैन्य स्तर की वार्ता हो चुकी है लेकिन जमी हुई बर्फ कब पिछलेगी। इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। हालांकि दोनों देशों के बीच सैनिकों की वापसी से संबंधित बचे हुए मुद्दों के समाधान के लिए स्पष्ट व गहन वार्ता हुई। इसके बावजूद भारत को चीन पर ज्यादा भरोसा नहीं है। 

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अंग्रेजी समाचार वेबसाइट 'हिन्दुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चीन के इतिहास को देखते हुए पूर्वी लद्दाख को लेकर आगे की वार्ता के लिए तैयार है। रिपोर्ट के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश में साल 1986 के सुमदोरोंग चू सैन्य विवाद का समाधान निकालने में करीब 8 साल का समय लगा था। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार आगे की दौर की सैन्य वार्ता के लिए तैयार है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय सैन्य बल पूर्व क्षेत्र में अपनी पैनी नजर बनाए हुए है। साथ ही उन्होंने इसे कभी न खत्म होने वाली रात बताई। लद्दाख कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने बताया कि भारत का मानना है कि दोनों सेनाओं के बीच सभी विवादास्पद बिंदुओं को हल किया जाना चाहिए। इसमें देपसांग और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स शामिल है। 

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भारत-चीन संबंध

चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों का सीधा रास्ता लद्दाख होकर जाता है। जिसका मतलब है कि जब तक चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जमी बर्फ नहीं पिछलने वाली है तब तक स्थिति बेहतर नहीं होगी। रिपोर्ट के मुताबिक 1980 के दशक की समानांतर कूटनीति सुझाव देने वाले किसी भी प्रस्ताव पर मोदी सरकार विचार नहीं कर रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन की पीएलए पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पार तैनात है। इसके अलावा चीन लगातार हवाई शक्ति को भी मजबूत करने में जुटा हुआ है।

गौरतलब है कि पिछले साल गलवान घाटी में हुई हिंसक झटक के बाद विवाद और ज्यादा गहरा गया था। इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए थे। तब से दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच जारी वार्ता के चलते कुछ जगहों से सेनाएं पीछे हटी हैं।

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