Shaurya Path: आर्थिक तनाव के बावजूद रक्षा संबंध हैं बरकरार, Alaska में Indian Army और US Amry का चल रहा है Yudh Abhyas

यह अभ्यास उस समय हो रहा है जब अमेरिकी नौसेना की पनडुब्बी सहयोग पोत यूएसएस फ्रैंक केबल ने हाल ही में चेन्नई का दौरा किया। यह जहाज इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तैनात पनडुब्बियों और सतही पोतों को मरम्मत, सेवा और रसद सहयोग प्रदान करता है।
भारत और अमेरिका के बीच सामरिक रिश्तों की जटिलता को समझने के लिए “युद्ध अभ्यास” जैसी संयुक्त सैन्य कवायदें एक महत्वपूर्ण आईना प्रस्तुत करती हैं। अलास्का में इस समय चल रहा 21वाँ संस्करण केवल सैन्य प्रशिक्षण का औपचारिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बदलती वैश्विक राजनीति और आर्थिक तनावों के बावजूद दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की रफ़्तार कम नहीं हुई है।
देखा जाये तो भारत और अमेरिका के बीच व्यापार, शुल्क और ऊर्जा आयात को लेकर मतभेद सामने आए हैं। भारत का रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदना अमेरिका को असहज करता है। दूसरी ओर, भारत अपनी सामरिक स्वायत्तता के अधिकार को बनाए रखते हुए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर झुकाव दिखा रहा है। फिर भी "युद्ध अभ्यास" यह साबित करता है कि जब बात सामरिक हितों और सुरक्षा साझेदारी की आती है, तो दोनों देश अपने मतभेदों को अलग रखते हैं।
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हम आपको बता दें कि भारतीय और अमेरिकी सैनिक अलास्का के फोर्ट वेनराइट में एकत्र हुए हैं जहाँ वह "युद्ध अभ्यास" नामक दो सप्ताह लंबे सैन्य अभ्यास में भाग ले रहे हैं। 1 से 14 सितम्बर तक चलने वाले "युद्ध अभ्यास" के 21वें संस्करण में भारतीय दल, जिसमें मद्रास रेजीमेंट की एक बटालियन के सैनिक शामिल हैं, अमेरिकी सेना की 1st बटालियन, 5th इन्फैंट्री रेजीमेंट ‘बॉबकैट्स’ (आर्कटिक वुल्व्स ब्रिगेड कॉम्बैट टीम, 11वीं एयरबोर्न डिवीजन) के साथ संयुक्त प्रशिक्षण करेगा।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, सैनिक इस दौरान विभिन्न सामरिक अभ्यासों का पूर्वाभ्यास करेंगे, जिनमें हेलिबोर्न ऑपरेशन, निगरानी संसाधनों और मानव रहित हवाई प्रणालियों (UAS) का उपयोग, रॉकक्राफ्ट, पर्वतीय युद्ध, घायलों की निकासी, युद्धक्षेत्र में चिकित्सा सहायता तथा तोपखाना, वायुसेना और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों का एकीकृत इस्तेमाल शामिल है। दोनों सेनाओं के विशेषज्ञ संयुक्त कार्यशालाएँ भी आयोजित करेंगे, जिनमें UAS और काउंटर-UAS ऑपरेशन, सूचना युद्ध, संचार और रसद जैसे अहम विषयों पर विचार-विमर्श होगा।
यह अभ्यास संयुक्त रूप से योजना बनाकर और क्रियान्वित किए गए सामरिक अभियानों के साथ संपन्न होगा, जिनमें लाइव-फायर ड्रिल से लेकर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध परिदृश्य शामिल होंगे। इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की क्षमता बढ़ाना और बहु-क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने की तैयारी को मजबूत करना है।
यह अभ्यास उस समय हो रहा है जब अमेरिकी नौसेना की पनडुब्बी सहयोग पोत यूएसएस फ्रैंक केबल ने हाल ही में चेन्नई का दौरा किया। यह जहाज इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तैनात पनडुब्बियों और सतही पोतों को मरम्मत, सेवा और रसद सहयोग प्रदान करता है। यह दो वर्षों में अमेरिकी मिलिट्री सीलिफ्ट कमांड का क्षेत्र में दूसरा दौरा था।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि पिछले वर्ष अगस्त में भारत और अमेरिका ने सिक्योरिटी ऑफ सप्लाई अरेंजमेंट (SOSA) और लायजन ऑफिसर्स की नियुक्ति संबंधी समझौता ज्ञापन (MoA) सहित कई सैन्य समझौते किए थे जिससे रक्षा और सुरक्षा सहयोग को नई मजबूती मिली।
द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की रूपरेखा सबसे पहले सितंबर 2013 के संयुक्त भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग घोषणा पत्र और 2015 के रक्षा संबंधों के लिए रूपरेखा समझौते में तय की गई थी। इसके तहत दोनों देशों ने इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी। इसके अलावा, 2016 से 2020 के बीच दोनों देशों ने चार और अहम समझौते किए थे जिनमें 2016 का लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), 2018 का कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) और 2020 का बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) शामिल हैं।
भारत ने अमेरिका से कई महत्वपूर्ण रक्षा सौदे भी किए हैं, जिनमें MH-60R सीहॉक मल्टी-रोल हेलिकॉप्टर, सिग सॉयर राइफलें और M777 अल्ट्रा-लाइट होवित्ज़र शामिल हैं। वर्तमान में GE F-414 जेट इंजन के भारत में निर्माण को लेकर वार्ताएँ जारी हैं, जिन्हें LCA MK 2 लड़ाकू विमानों में लगाया जाएगा। इसके अतिरिक्त, पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच 31 MQ-9B हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग-एंड्योरेंस (HALE) UAVs की खरीद का समझौता हुआ था। वहीं GE-F404 इंजनों की आपूर्ति वर्तमान में LCA तेजस मार्क-1A विमानों के लिए की जा रही है।
हम आपको एक बार फिर बता दें कि इस बार के युद्ध अभ्यास में जिन विषयों पर ध्यान दिया जा रहा है उनमें हेलिबोर्न ऑपरेशन, पर्वतीय युद्ध, ड्रोन और काउंटर-ड्रोन तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और संयुक्त चिकित्सा सहायता शामिल हैं। यह सभी आधुनिक युद्धकला के बदलते स्वरूप की ओर इशारा करते हैं। साथ ही यह सहयोग केवल युद्धक तैयारी तक सीमित नहीं है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों और बहु-क्षेत्रीय खतरों से निपटने की संयुक्त क्षमता को भी मजबूत करता है।
हालाँकि इस साझेदारी के बीच कुछ प्रश्न अनुत्तरित भी हैं। प्रश्न उठता है कि क्या अमेरिका, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का वास्तविक सम्मान करेगा? क्या भारत, रूस और अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रख पाएगा? और क्या यह सैन्य सहयोग केवल हथियारों की खरीद तक सीमित रहेगा या फिर यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वास्तविक साझेदारी का रूप ले पाएगा?
बहरहाल, स्पष्ट है कि “युद्ध अभ्यास” केवल बंदूकें चलाने या पहाड़ों में मार्च करने का कार्यक्रम नहीं है। यह एक संदेश है— अंतरराष्ट्रीय तनावों और द्विपक्षीय मतभेदों के बावजूद भारत और अमेरिका दोनों को यह एहसास है कि भविष्य के युद्ध और सुरक्षा चुनौतियाँ साझेदारी और विश्वास की माँग करती हैं।
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