मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसानों को लिखा पत्र, कहा प्रदूषण न बढाए

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दिनेश शुक्ल । Nov 7 2019 6:07PM

केजरीवाल सरकार की तर्ज पर अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश की आबोहवा स्वच्छ रखने के लिए किसानों को पत्र लिखा है। कमलनाथ ने अपने पत्र में किसानों से पराली (नरवाई) न जलाने की अपील की है।

भोपाल। देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और पराली जलाने से छा रहे धुंए से परेशान केजरीवाल सरकार की तर्ज पर अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश की आबोहवा स्वच्छ रखने के लिए किसानों को पत्र लिखा है।

कमलनाथ ने अपने पत्र में किसानों से पराली (नरवाई) न जलाने की अपील की है। साथ ही इससे होने वाले नुकसानों को लेकर भी किसानों को पत्र में लिखा है। साथ ही बर्बाद हुई फसलों के मुआबजे को लेकर भी मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लिखा है। पढे आखिर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पत्र में किसानों से क्या अपील की है। 

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प्यारे किसान भाईयों,

अतिवृष्टि से आपकी फसलो को काफी नुकसान हुआ है और उसकी भरपाई के लिये शासन अपने स्तर पर निरंतर प्रयासरत है। हमने केन्द्र सरकार से इसके लिये मदद भी मांगी हैं।आपके नुक़सान की भरपाई के लिये हमारी सरकार वचनबद्ध है।

इन सबके बीच आपसे एक महत्वपूर्ण विषय पर अपील करता हूँ कि आप किसान भाई प्रदेश के पर्यावरण की चिंता करते हुए खेत में पराली (नरवाई) न जलाए। 

 

फसल के बाद डंठल या ठूँठ जिन्हें हम पराली कहते हैं, जलाने से चौतरफा नुकसान है। पराली जलाने से जमीन के पोषक तत्वों के नुकसान के साथ प्रदूषण भी फैलता है और ग्रीनहाउस गैंसे भी पैदा होती है जो वातावरण को बेहद नुकसान पहुँचाती है। ये तथ्य जानकार बताते हैं कि पराली जलाने से अधजला  कार्बन , कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड तथा राख उत्पन्न होती है जो वातावरण में गैसीय प्रदूषण के साथ धूल कणों की मात्रा में भी वृद्धि करती है।

इसके साथ ही पराली जलाने पर मिट्टी के साथ वे कृषि सहयोगी सूक्ष्म जीवाणु तथा जीव भी जल जाते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहायक होते हैं।

 

कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि पराली (नरवाई) जलाये बिना उसी के साथ गेहॅू की बुआई की जाये, सिंचाई के साथ जब पराली सडे़गी तो अपने आप खाद में बदल जायेगी और उसका पोषक तत्व मिट्टी में मिलकर गेहॅू की फसल को अतिरिक्त लाभ देगा। अब तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध हैं जो ट्रेक्टर में आसानी से लगकर खड़े डंठलों को काटकर इकट्ठा कर सकते हैं और उन्हीं में बुआई भी की जा सकती है। दोनों विकल्प किसानों के लिये फायदेमंद है। 

 

पराली जलाने से ज्यादा उसका उपयोग भूसे और पशु चारे में तब्दील करने में है। जलाने की बजाये इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन, कार्डबोर्ड और कागज बनाने में करने का सुझाव भी विशेषज्ञों का है।

 

साथियों, अभी सबसे ज्यादा चिंता पर्यावरण संरक्षण की है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बारे में बताया है कि साफ हवा में साँस लेने का हक सबको है। आप आबोहवा के पहरूएँ हैं और हरियाली के जनक। 

 

जलाने के बजाये उसका अन्य उपयोग करें ताकि उन्नत खेती, पशु चारे की उपलब्धता और स्वच्छ प्राणवायु सभी को मिल सके। बाकि प्रदेशो में हवा में जो जहर फैल रहा है उससे हम अपने प्रदेश को समय रहते बचायें। आशा है आप सभी समय की जरूरत का ध्यान रखेंगे और प्रदेश की आबोहवा को प्रदूषण से बचाने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे।

 

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