चौथी बार MP के CM बनने वाले शिवराज विनम्र एवं मिलनसार नेता, ऐसा रहा है सियासी सफर

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विकास और स्वच्छ छवि के लिए मध्य प्रदेश की जनता में लोकप्रिय शिवराज ने देश एवं विदेश में चल रहे कोरोना वायरस के खतरे के कारण आज सादगीपूर्ण कार्यक्रम में राजभवन में चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली है।

भोपाल। मध्य प्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान को एक सफल प्रशासक के साथ ही बेहद विनम्र और मिलनसार राजनेता माना जाता है। उनके नेतृत्व में वर्ष 2008 एवं वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी। भाजपा ने उन्हें नवंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, लेकिन इस चुनाव में वह अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके और सत्ता उनके हाथ से खिसक कर कांग्रेस नेता कमलनाथ के हाथ में चली गई।

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हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आने और कांग्रेस के 22 विधायक बागी होने के कारण कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके कारण कमलनाथ ने शक्ति परीक्षण से ठीक पहले 20 मार्च को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के इन 22 बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद ये सभी भाजपा में शामिल हो गये हैंं। इसके बाद कांग्रेस के पास मात्र 92 विधायक रह गये और भाजपा 107 विधायकों के साथ बहुमत में आ गई।भाजपा विधायक दल ने चौहान को अपने दल का नेता चुना और वह चौथी बार मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 2005 से वर्ष 2018 तक के अपने कार्यकाल में उन्होंने मध्यप्रदेश के विकास के लिए तमाम परियोजनाओं की शुरूआत की थी। वह पांचवी बार सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसके अलावा, वह विदिशा लोकसभा सीट से वर्ष 1991 से वर्ष 2006 तक पांच बार लगातार सांसद भी रहे। सीहोर जिले के जैत गांव में पांच मार्च 1959 को किसान प्रेम सिंह चौहान एवं सुन्दर बाई चौहान के घर में जन्मे चौहान में नेतृत्व क्षमता छात्र जीवन से ही शुरू हुयी थी। उनकी संगीत, अध्यात्म, साहित्य एवं घूमने-फिरने में विशेष रूचि है।

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उनकी पत्नी साधना सिंह हैं और उनके दो पुत्र कार्तिकेय एवं कुणाल है। कार्तिकेय कारोबारी हैं, जबकि कुणाल अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। शिवराज की शैक्षणिक योग्यता कला संकाय से स्नातकोत्तर है। 1972 में 13 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये चौहान ने 1975 में आपातकाल के आंदोलन में भाग लिया और जेल गये। भाजयुमो के प्रांतीय पदों पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न छात्र आंदोलनों में भी हिस्सा लिया। उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के बतौर 29 नवंबर 2005 को पहली बार शपथ लेने वाले चौहान यहां लगातार दूसरी बार 2008 में एवं तीसरी बार 2013 में भी मुख्यमंत्री बने और दिसंबर 2018 तक मुख्यमंत्री रहे।

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चौहान वर्ष 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे। इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उन्होंने लखनऊ सीट को रखा था और विदिशा से इस्तीफा दे दिया था। विदिशा में पार्टी ने शिवराज को प्रत्याशी बनाया और वह वहां से पहली बार सांसद बने। साल 2000 से 2003 तक भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पार्टी की युवा इकाई को मजबूत करने के लिए मेहनत की। इस दौरान वे सदन समिति (लोकसभा) के अध्यक्ष और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव भी रहे।

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वर्ष 2005 में चौहान मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए और उन्हें 29 नवंबर 2005 को उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई। प्रदेश की तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में चौहान ने भाजपा के स्टार प्रचारक की भूमिका का बखूबी निर्वहन कर पार्टी को लगातार दूसरी बार विजय दिलाई। उन्होंने 12 दिसंबर 2008 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। चौहान के नेतृत्व में भाजपा ने तीसरी बार 165 सीटें जीती और चौहान तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। विकास और स्वच्छ छवि के लिए मध्य प्रदेश की जनता में लोकप्रिय शिवराज ने देश एवं विदेश में चल रहे कोरोना वायरस के खतरे के कारण आज सादगीपूर्ण कार्यक्रम में राजभवन में चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली है।

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