जल्द ही कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों पर गिरेगी सीएम योगी की गाज

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अजय कुमार । Apr 5 2022 3:50PM

27 सितंबर को गोरखपुर के एक होटल में ठहरे कानपुर के व्यवसायी मनीष गुप्ता की हत्या के मुख्य अभियुक्त एक पुलिस अधिकारी के लखनऊ स्थित मकान पर योगी सरकार द्वारा बुलडोजर चला दिया गया। फिर भी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं तो इसकी वजह वह अधिकारी भी हैं जो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। योगी सरकार का अपराधियों के खिलाफ रवैया काफी सख्त है। कई अपराधी रहम की भीख मांग रहे हैं। अभी तक योगी सरकार के जो बुलडोजर माफियाओं के खिलाफ गरजते थे,अब वह बलात्कारियों के घरों पर भी गरज रहे हैं। योगी सरकार के गठन के बाद से ही पुलिस द्वारा लगातार एनकाउंटर किए जा रहे हैं और बदमाशों को गिरफ्तार किया जा रहा है। आलम यह है कि एनकाउंटर के खौफ से अपराधी थानों में खुद ही सरेंडर कर रहे हैं। इसी तरह से योगी सरकार की सख्ती की एक और बानगी तब देखने को मिली जब पिछले वर्ष 27 सितंबर को गोरखपुर के एक होटल में ठहरे कानपुर के व्यवसायी मनीष गुप्ता की हत्या के मुख्य अभियुक्त एक पुलिस अधिकारी के लखनऊ स्थित मकान पर योगी सरकार द्वारा बुलडोजर चला दिया गया। फिर भी अपराधियों के हौसले बुलंद हैं तो इसकी वजह वह अधिकारी भी हैं जो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं। यह सच है कि अभी योगी सरकार को सत्ता संभाले एक पखवाड़ा भी नहीं बीता है,लेकिन इतने अपराध तो योगी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी नहीं देखने को मिले जितने करीब पिछले एक महीने में चुनाव के नतीजे आने के बाद हुए हैं। 

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हालात यह है कि 10 मार्च को जब यह पता चल गया कि यूपी में फिर से योगी सरकार बनने वाली है तब भी एक हफ्ते बाद होली के अवसर पर कई जिलों में साम्प्रदायिक दंगे हुए। कई लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ गया। अपराधियों के हौसले इतने बढ़े हुए हैं कि गोरखपुर में कड़े प्रहरे वाली नाथ सम्प्रदाय की सर्वोच्च पीठ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निवास स्थान गोरखनाथ मंदिर की सुरक्षा तक में सेंध लगाकर एक व्यक्ति ने सुरक्षा कर्मियों पर हमलाकर दिया। एटीएस एवं पुलिस इस हमले में आतंकवादी कनेक्शन और साजिश के साथ सभी पहलुओं पर जांच कर रही है।इतना सब हो रहा है तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी पारा चढ़ा हुआ है, कई जिलों के बड़े अधिकारी उनके निशाने पर हैं,लेकिन विधान परिषद चुनाव के चलते लगी आचार संहिता ने योगी के हाथ बांध रखे हैं। वह चाह कर भी ऐसे नौकरशाहों और अधिकारियों के तबादले नहीं कर पा रहे हैं जो अपराध रोकने में नाकाम होते दिख रहे हैं।

नौकरशाही में बड़े फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच कहा जा रहा है कि मुख्य सचिव के बाद राजस्व परिषद चेयरमैन व कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) का पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। राजस्व परिषद के मौजूदा चेयरमैन मुकुल सिंघल व एपीसी आलोक सिन्हा 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इन दोनों ही पदों पर नई तैनाती की जाएगी। मुकुल की सेवानिवृत्ति के बाद परिषद के चेयरमैन पद पर यदि पूर्व मुख्य सचिव व यूपी राज्य सड़क परिवहन निगम के चेयरमैन आरके तिवारी की तैनाती की गई तो निगम के चेयरमैन पद पर भी किसी वरिष्ठ अफसर की तैनाती करनी होगी। एपीसी के पास अपर मुख्य सचिव (एसीएस) ऊर्जा व अतिरिक्त ऊर्जा की भी जिम्मेदारी है। इस बड़े महकमे के लिए भी वरिष्ठ अफसर की तलाश की जानी है। अपर मुख्य सचिव उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण एमवीएस रामीरेड्डी भी 30 अप्रैल को ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इस महकमे में भी नए अफसर की जरूरत होगी। 

   

प्रदेश में स्थानिक आयुक्त का पद भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस अधिकारी का काम दिल्ली में रहकर राज्य से जुड़े मामलों की केंद्र में पैरवी व समन्वय करना होता है। अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी प्रभात सारंगी दिल्ली में राज्य के स्थानिक आयुक्त हैं। वे भी 30 अप्रैल को ही रिटायर हो रहे हैं। इसलिए किसी वरिष्ठ अधिकारी को इस पद पर तैनात करना होगा। गाज उन नौकरशाहों और शासन के कई अधिकाररियों पर भी गिरेगी जो चुनावी हवा नहीं भांप पाए। करीब आधा दर्जन नौकरशाह तो चुनाव नतीजे आने से पहले सपा नेताओं के करीब नजर आए थे। इनमें एक अपर मुख्य सचिव व तीन सचिव स्तर के अधिकारी हैं। चार में तीन तो बेहद महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। अपर मुख्य सचिव के विभागीय मंत्री चुनाव जीतने के बावजूद सरकार में स्थान नहीं बना पाए हैं। माना जा रहा है कि ये अपर मुख्य सचिव व दोनों सचिव शासन में तबादलों के समय साइडलाइन किए जा सकते हैं। एक अपर मुख्य सचिव व एक सचिव स्तर के अधिकारी की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनाती के लिए उपलब्धता की रिपोर्ट केंद्र को काफी पहले भेजी जा चुकी है। महत्वपूर्ण पदों पर तैनात इन दोनों अफसरों की केंद्र में तैनाती के बाद इनके स्थान पर नए अफसर तैनात करने होंगे।

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चर्चा है कि आधा दर्जन से अधिक पुलिस अधिकारी भी योगी सरकार के रडार पर हैं। इसमें वे अधिकारी शामिल हैं जिनकी शिकायत स्थानीय स्तर पर नेताओं ने की है और शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंची है। ऐसी शिकायतों को शासन सत्यापित करा रहा है। जल्द ही इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी है।संभावना जताई जा रही है कि विधान परिषद चुनाव के चलते लगी आचार संहिता के खत्म होने के बाद बड़े पैमाने पर अधिकारियों को इधर से उधर किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार जिन अधिकारियों पर नजर रखी जा रही है उसमें गोरखपुर व लखनऊ जोन में तैनात अधिकारी भी शामिल हैं। वहीं, पश्चिमी यूपी के जिलों में हाल के दिनों में बढ़े अपराध से भी शासन नाराज है। आगरा, सहारनपुर, गाजियाबाद और बुलंदशहर में लूट की वारदातों से योगी सरकार की छवि धूमिल हो रही है। कुछ ऐसे अफसर भी योगी सरकार के रडार पर हैं जिनकी लापरवाही से चुनाव के दौरान अराजकता की स्थिति उत्पन्न हुई थी।आचार संहिता खत्म होने के बाद  जिन अधिकारियों के तबादले होंगे उसमें वे जिले भी शामिल होंगे जहां तैनात अफसरों का प्रमोशन के बाद स्थानांतरण नहीं हुआ है। ऐसे आठ जिले हैं जहां एसपी या एसएसपी की जगह डीआईजी तैनात हैं। इसमें बुलंदशहर, आगरा, सीतापुर, सुल्तानपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी ग्रामीण और देवरिया शामिल हैं। देवरिया में तैनात डीआईजी श्रीपति मिश्रा जून में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में संभव है कि तबादलों में उनका नाम शामिल न हो।

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