अयोध्या मामले का मध्यस्थता से निकलेगा हल, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

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मुस्लिम और हिन्दु पक्षकारों से बातचीत के जरिए विवाद को सुलझाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मध्यस्थता होगी।

नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर मामले में मध्यस्थता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया है। बता दें कि मध्यस्थता के लिए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने 3 लोगों का पैनल बनाया है। साथ ही साथ मध्यस्थता की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई है। एक हफ्ते के भीतर मध्यस्थता पैनल की कार्यवाही शुरू होगी और इसे सुप्रीम कोर्ट ने 8 हफ्तों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

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मुस्लिम और हिन्दु पक्षकारों से बातचीत के जरिए विवाद को सुलझाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में मध्यस्थता  होगी। इस मामले की मध्यस्थता के लिए जस्टिस इब्राहिम, श्री श्री रविशंकर प्रसाद, श्री राम पंचू पैनल में शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 6 फरवरी को मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट में डेढ़ घंटे तक सुनवाई हुई थी और दोनों पक्षों ने कोर्ट के सामने अपनी दलीलें पेश की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट के फैसले से आज यह स्पष्ट हो गया है कि अब अयोध्या मामले में कोर्ट फैसला नहीं करेगा और हल मध्यस्थता के जरिए ही निकलेगा। 

न्यायालय ने अयोध्या मामला सर्वमान्य समाधान तलाशने के इरादे से मध्यस्थों को सौंपा

उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील दशकों पुराने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये शुक्रवार को पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित कर दी। इस समिति को आठ सप्ताह के भीतर मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करनी है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मध्यस्थता के लिये गठित समिति के अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और प्रख्यात मध्यस्थ एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता की कार्यवाही एक सप्ताह के भीतर शुरू होगी। यह प्रक्रिया उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में होगी और यह आठ सप्ताह के भीतर पूरी की जायेगी। पीठ ने कहा कि मध्यस्थता समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट न्यायालय को देगी।

न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित करने के लिये इसकी कार्यवाही ‘बंद कमरे’ में होगी और इसे आठ सप्ताह में पूरा किया जायेगा। यह वह अवधि है जिसमें न्यायालय ने अयोध्या मामले के मुख्य पक्षकार मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के अनुवाद का अवलोकन करने की अनुमति दी है। पीठ ने कहा कि इस विवाद का संभावित समाधान तलाशने के लिये इसे मध्यस्थों को सौंपने में उसे कोई ‘‘कानूनी अड़चन’’ नजर नहीं आती है। पीठ ने कहा, ‘‘ हम तद्नुसार ऐसा आदेश करते हैं और पक्षकारों द्वारा बताये गये नामों को ध्यान में रखते हुये हम मध्यस्थता के लिये न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) फकीर मोहमद इब्राहिम कलीफुल्ला को अध्यक्ष और श्री श्री रवि शंकर तथा वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू को इसका सदस्य बनाते हैं।  शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता की कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिये इसकी कार्यवाही में पूरी गोपनीयता बनाये रखी जानी चाहिए और मध्यस्थ तथा पक्षकारों के विचार गोपनीय रखे जाने चाहिए तथा किसी भी व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘हमारी यह भी राय है कि जब मध्यस्थता की कार्यवाही चल रही हो तो इसकी किसी भी मीडिया -प्रिंट तथा इलेक्ट्रानिक- को इसकी कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए।’’ हालांकि, पीठ ने इस संबंध में कोई स्पष्ट आदेश देने से गुरेज किया और आवश्यकता पड़ने पर इस कार्यवाही के विवरण के प्रकाशन पर रोक लगाने के बारे में लिखित में आदेश देने का अधिकार मध्यस्थों को दे दिया।

पीठ ने कहा कि समिति अपने दल में और सदस्यों को शामिल कर सकती है और यदि किसी प्रकार की परेशानी आती है तो समिति के अध्यक्ष शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को इस बारे में सूचित करेंगे।

संविधान पीठ ने इस भूमि विव़ाद का सर्वमान्य हल खोजने के इरादे से इसे मध्यस्थता के लिये भेजने के बारे में बुधवार को सभी संबंधित पक्षों को सुना था। पीठ ने कहा था कि इस भूमि विवाद को मध्यस्थता के लिये सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में बाद में आदेश दिया जायेगा। न्यायालय ने कहा था कि वह इस बारे में आदेश देगा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजा जाए या नहीं । एक वकील ने जब दलील दी कि अतीत में आक्रांताओं ने हिन्दुओं के साथ अन्याय किया था तो पीठ ने कहा था, ‘‘अतीत में जो कुछ भी हुआ उसका हमसे सरोकार नहीं है। आप समझते हैं कि हमने इतिहास नहीं पढ़ा है। हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है कि अतीत में मुगल शासक बाबर ने क्या किया अथवा कौन बादशाह था या किसने हमला किया था। हम उसे बदल नहीं सकते जो पहले हो चुका है, परंतु हम इस समय जो है उस पर विचार कर सकते हैं।’’ शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है।  इस प्रकरण में निर्मोही अखाड़ा के अलावा अन्य हिन्दू संगठनों ने इस विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजने के शीर्ष अदालत के सुझाव का विरोध किया था, जबकि मुस्लिम संगठनों ने इस विचार का समर्थन किया था।

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