75 years of independence: लंबे संघर्ष के बाद मिली है देश को आजादी, इन घटनाक्रमों का रहा महत्वपूर्ण योगदान

Indian Flag salute
ANI
अंकित सिंह । Aug 11 2022 6:56PM

आजादी के लिए लगभग 90 वर्षों तक तो संघर्ष करना ही पड़ा। साथ ही साथ देश के बंटवारे का भी दर्द झेलना पड़ा है। भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 से ज्यादा वर्षों तक राज किया।

भारत अपने आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए। इस 75 साल में भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की है। हालांकि, यह बात भी सच है कि देश के सामने अभी भी कई बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। हालांकि, भारत को यह आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली। आजादी के लिए लगभग 90 वर्षों तक तो संघर्ष करना ही पड़ा। साथ ही साथ देश के बंटवारे का भी दर्द झेलना पड़ा है। भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 से ज्यादा वर्षों तक राज किया। आजादी की लड़ाई में कई अहम ऐसे पड़ाव भी आए जो हमारे संघर्ष को और भी मजबूत बनाते गए। आज उन्हीं के बारे में हम आपको बताते हैं।

1857 की लड़ाई

1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता की सबसे पहली और बड़ी लड़ाई मानी जाती है। इसे सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई थी। इसमें मुख्य भूमिका में मंगल पांडे, बख़्त खान, बेगम हजरत महल, नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई और तात्या तोपे की रही। हालांकि, इस लड़ाई में भारत को बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली थी। बावजूद इसके अंग्रेजों को बैकफुट पर लाने में इस लड़ाई ने अहम योगदान दिया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

आजादी की लड़ाई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का योगदान काफी अहम रहा है। इसकी स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। कांग्रेस की स्थापना भारत के लोगों और ब्रिटिश शासन के बीच सेतु के रूप में काम करने के लिए की गई थी। इसके संस्थापक सदस्यों में ए ओ ह्यूम,  दादाभाई नरोजी जैसे लोग शामिल थे। हालांकि बाद में यही राष्ट्रीय कांग्रेस आजादी की लड़ाई में काफी महत्वपूर्ण साबित हुई। इसी कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया गया था।

स्वतंत्रता की लड़ाई और महात्मा गांधी का आगमन

भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई लगातार जारी थी। गोपाल कृष्ण गोखले, लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक जैसे लोग अंग्रेजों को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश लगातार कर रहे थे। इसी दौरान दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के लिए महात्मा गांधी एक बड़ी आवाज के रूप में उभर चुके थे। गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी से भारत लौटने का अनुरोध किया। 1915 में महात्मा गांधी भारत लौटे। उन्होंने अंग्रेजों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। वह किसानों और मजदूरों की आवाज उठाते गए। धीरे धीरे भारत की स्वतंत्रता के लिए उनका संघर्ष बढ़ता गया। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अहिंसा का रास्ता चुना और अंग्रेजो के खिलाफ कई बड़े आंदोलन शुरू किए।

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चंपारण सत्याग्रह

महात्मा गांधी की ओर से अंग्रेजो के खिलाफ शुरू किया गया यह पहला आंदोलन था। इसे अप्रैल 1917 में बिहार के चंपारण में शुरू किया गया था। किसानों पर अंग्रेजों द्वारा थोपे गए नीतियों का गांधीजी ने विरोध किया था। उन्होंने किसानों के शोषण का पुरजोर तरीके से विरोध किया। महात्मा गांधी को इस आंदोलन में राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, मजहर उल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसे महान विभूतियों का भी साथ मिला।

जलियांवाला बाग कांड

आज भी जब हम इस घटना का जिक्र करते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने भारत के निहत्थे लोगों को अपनी गोलियों का शिकार बना दिया। इसमें महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों समेत कई लोग मारे गए थे। हजारों लोग घायल हुए थे। माना जाता है कि इसी घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और उग्र कर दिया। इस घटना ने भारत के लोगों को पूरी तरह से झकझोर दिया था। इसी घटना के बाद भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उदय हुआ।

असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से शुरू किया गया था। यह महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया पहला राष्ट्रीय अभियान था जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों और आदिवासियों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई में यह पहला जन आंदोलन बन कर उभरा। माना जाता है कि गांधीजी ने पूरी तरीके से अंग्रेजों की नीतियों में सहयोग करने का विरोध किया था। इसे अंग्रेजों द्वारा लाए गए रौलट एक्ट के खिलाफ भी चलाया गया था। इस आंदोलन का असर यह हुआ कि भारत के चारों ओर अंग्रेजो के खिलाफ लोगों की आवाज मुखर होने लगी थी। माना जाता है कि जलियांवाला बाग कांड के खिलाफ भी इसे शुरू किया गया था।

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सुभाष चंद्र बोस की वापसी

1921 में भारत की स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की एंट्री होती है। इंग्लैंड में एक अच्छी सरकारी नौकरी छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए। उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का फैसला लिया। वह अंग्रेजों के खिलाफ लगातार मुखर रहे। इसके बाद उन्हें जेल भी भेजा गया। बाद में वे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

पूर्ण स्वराज

19 दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी. इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत को पूरी तरह से खत्म करके अपनी सरकार बनाने की प्रतिज्ञा की गई थी। इसी दौरान 26 जनवरी 1930 को पूरे राष्ट्र में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाने का भी निश्चय किया गया था। अंग्रेजो के खिलाफ भारत का यह सबसे बड़ा विद्रोह माना गया था जहां अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से खत्म करने की बात की गई थी। इसमें देश के सभी रियासतों के राजा महाराजा भी शामिल हुए थे।

दांडी मार्च

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश में विद्रोह लगातार बढ़ता जा रहा था. इसी कड़ी में महात्मा गांधी द्वारा दांडी मार्च शुरू किया गया था। 12 मार्च 1930 से शुरू होकर 6 अप्रैल 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ यह मार्च चलाया गया था। जब 6 अप्रैल 1930 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश राज के नमक कानून को तोड़ा तो उन्हें लाखों भारतीयों का समर्थन हासिल हुआ। यह मार्च साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी तक गया था जिसे अब नवसारी कहा जाता है। इसमें गांधीजी को हर वर्ग का साथ मिला था।

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आजाद हिंद फौज का गठन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भूमिका काफी अहम रही थी। वह ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस गरम दल के नेताओं में शामिल थे। उन्होंने वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान 1942 से में आजाद हिंद फौज का गठन कर लिया था। इसका लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता को ब्रिटिश शासन से सुरक्षित करना था।

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