वीरभद्र सिंह की अंतिम विदाई से पहले विक्रमादित्य सिंह बने रामपुर बुशहर रियासत के 123वें शासक

Vikramaditya

दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के अंतिम संस्कार से पहले ऐसा करना जरूरी था। यही वजह है कि इसके लिये बीते दिन से ही तैयारियां शुरू हो गई थी।

रामपुर बुशहर। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह आज रामपुर बुशहर रियासत के 123वें शासक बन गये शिमला जिला के रामपुर बुशहर में राज महल यानि पदम पैलेस में आयोजित एक कार्यक्रम में राजसी परंपराओं के तहत विक्रमादित्य सिंह का राज तिलक किया गया। 

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दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह के अंतिम संस्कार से पहले ऐसा करना जरूरी था। यही वजह है कि इसके लिये बीते दिन से ही तैयारियां शुरू हो गई थी राजतिलक की रस्म शनिवार सुबह शरू हुई और दोपहर बाद हवन के बाद पूरी हो गई। रियासत के कुल पुरोहित पंडित योगराज निवासी शिंगला व अन्य पुरोहितों की मौजूदगी में राजतिलक की रस्म निभाई गई।

किन्नौर में सांगला में स्थित कामरू देवता की मौजूदगी में पूरे रीति रिवाज के अनुसार कार्यक्रम किया गया। कामरु देवता के साथ वहां के स्थानीय लोग भी मौजूद रहे। राज परिवार का कामरू देवता के साथ पारिवारिक संबंध भी है। राजतिलक पर्दे में किया गया व इस दौरान चुनिंदा लोग ही शामिल हो पाये। किसी को भी समारोह स्थल तक आने की ईजाजत नहीं थी इसे कैमरों और आम लोगों से भी दूर रखा गया। इसे मात्र राज परिवार की रस्म के रूप में किया गया।

हालांकि रजवाड़ा शाही पूरी तरह से खत्म हो चुकी है लेकिन रामपुर बुशहर के राज परिवार ने अपनी परंपरा निभाने के लिए राजतिलक का आयोजन किया। बुशहर रियासत की रस्म है कि जब परिवार में मुखिया की मृत्यु हो जाती है तो उनकी पार्थिव देह को महल से बाहर निकालने से पहले उनके वारिस का राजतिलक किया जाता है, इसके बाद ही मुखिया के अंतिम संस्कार की रस्म को निभाया जाता है। 

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पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह बुशहर रियासत के 122 वें राजा थे। अब विक्रमादित्य सिंह ने 123वें राजा के रूप में बुशहर रियासत की गद्दी संभाली है। इसके लिए विक्रमादित्य सिंह को सुबह करीब सात बजे गद्दी के पास ले जाया गया। जहां पर क्षेत्र में पंडितों द्वारा पहले पूजा पाठ का आयोजन किया, इसके बाद उनका राजतिलक किया गया। इस दौरान पूरे स्थान को सफेद कपड़े से ढककर रखा गया, ताकि कोई भी व्यक्ति उसके अंदर न झांक सके। राजपरिवार में रिवायत है कि राजा के अंतिम संस्कार से पहले ही उनके पुत्र का राजतिलक किया जाता है। राज परिवार में कभी राज्य को बिना राजा के नहीं छोड़ा जाता है। परंपरा के अनुसार जब किसी राजा का निधन होता है है तो उनके अंतिम संस्कार से पहले बेटे को राजा बनाना अनिवार्य है। वर्ष 1947 में राजा पदम सिंह की मृत्यु हो जाने के बाद वीरभद्र सिंह का पूरे राज रीति रिवाज के अनुसार राजतिलक किया गया था। तब उनकी उम्र महज 13 साल थी। वीरभद्र सिंह के वारिस टीका विक्रमादित्य सिंह हैं। ऐसे में राजतिलक होना निश्चित हुआ है।

पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह 13 साल की उम्र में राजा बन गए थे। बाल अवस्था से ही उनका जनता के दुख दर्द में शामिल होना आदत बन गई थी। इसके बाद राजनीति में आए व छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री भी रहे। उनका राजनीतिक सफर 60 वर्ष का रहा। राजतिलक के बाद ही अब वीरभद्र सिंह की अंत्येष्टि राज परिवार के श्मशान घाट में की जाएगी।

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