Prabhasakshi NewsRoom: Jagdeep Dhankhar ने इस्तीफा देकर क्या राजनीतिक संकेत दिये हैं?

जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में संविधान के अनुच्छेद 67(क) का हवाला देते हुए लिखा कि स्वास्थ्य कारणों के चलते वह तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद छोड़ रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया।
राज्यसभा के मानसून सत्र के पहले दिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सामान्य रूप से कार्य करते रहे। उन्होंने सदन की कार्यवाही का संचालन किया, बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में भाग लिया और उनके जयपुर दौरे की आधिकारिक घोषणा भी हो गई थी। लेकिन शाम होते-होते एक ऐसा घटनाक्रम घटा, जिसने न केवल संसद बल्कि समूचे राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का हवाला दिया, लेकिन इसके पीछे की असली वजहों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
हम आपको बता दें कि जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में संविधान के अनुच्छेद 67(क) का हवाला देते हुए लिखा कि स्वास्थ्य कारणों के चलते वह तत्काल प्रभाव से उपराष्ट्रपति पद छोड़ रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस अचानक उठाए गए कदम का अकेला कारण 'स्वास्थ्य' नहीं हो सकता। हम आपको याद दिला दें कि मार्च में AIIMS में उनकी हार्ट सर्जरी और जून में नैनीताल में भाषण के दौरान बेहोश हो जाना उनके स्वास्थ्य को लेकर कुछ संकेत तो जरूर देते हैं, परंतु हाल ही के दिनों में वे सक्रिय दिखाई दे रहे थे। संसद में उनका अंदाज़, उनके हस्तक्षेप और कामकाज में उनकी सक्रियता उनके इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारण की थ्योरी को कमजोर करती है।
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देखा जाये तो धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय आया है जब संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ है और विपक्ष सरकार को घेरने की रणनीति बना रहा है। ऐसे में यह इस्तीफा सत्तारुढ़ दल के लिए असहज करने वाला है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि हाल के दिनों में धनखड़ अपने पद को लेकर नाखुश महसूस कर रहे थे। उनके और सत्ता पक्ष के बीच हल्के मतभेदों के संकेत तब मिले जब उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर दिए गए विवादित बयानों पर खुलकर बोलने की इजाजत दी।
इसके अलावा, न्यायपालिका से जुड़े मामलों में भी उनकी दिलचस्पी पहले से रही है। हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने का उनका फैसला भी असामान्य माना गया। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वे किसी बड़ी संवैधानिक या संस्थागत असहमति के चलते दबाव में थे?
हम आपको बता दें कि धनखड़ पहले ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जिन्होंने बिना राष्ट्रपति बनने की होड़ में शामिल हुए इस्तीफा दिया है। इससे पहले वी.वी. गिरि ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए और आर. वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा और के.आर. नारायणन राष्ट्रपति बन जाने के बाद इस्तीफा दे चुके थे। इसके अलावा, धनखड़ का अचानक इस्तीफा और वह भी उस व्यक्ति का, जिसे भाजपा ने अपेक्षाकृत नए होने के बावजूद पश्चिम बंगाल का राज्यपाल और फिर उपराष्ट्रपति जैसे अहम पद तक पहुंचाया, एक बड़े राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि धनखड़ अब पूरी तरह राजनीति में लौट सकते हैं। खासकर जाट समुदाय के बड़े चेहरे के रूप में वह भविष्य में हरियाणा अथवा राजस्थान की राजनीति में सक्रिय भूमिका भी निभा सकते हैं।
बहरहाल, धनखड़ का इस्तीफा केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि गहरे राजनीतिक संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए। यह इस्तीफा सत्तारुढ़ दल के लिए निश्चित तौर पर असहज करने वाला है और विपक्ष इसे सरकार की कमजोर होती पकड़ या भीतरखाने की कलह के रूप में भुनाने की कोशिश करेगा। आने वाले समय में यदि धनखड़ किसी नई राजनीतिक भूमिका में दिखें, तो यह किसी के लिए भी आश्चर्य की बात नहीं होगी।
अब आगे की बात करें तो आपको बता दें कि जगदीप धनखड़ के उत्तराधिकारी की नियुक्ति के लिए चुनाव ‘‘जल्द से जल्द’’ कराना होगा। संविधान के अनुच्छेद 68 के खंड दो के अनुसार, उपराष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफे या उन्हें पद से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से होने वाली रिक्ति को भरने के लिए चुनाव, रिक्ति होने के बाद "यथाशीघ्र" आयोजित किया जाएगा। रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति "अपने पदभार ग्रहण करने की तिथि से पांच वर्ष की अवधि तक" पद धारण करने का हकदार होगा। हम आपको बता दें कि संविधान में इस पर कुछ नहीं कहा गया है कि उपराष्ट्रपति की मृत्यु या उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले त्यागपत्र देने की स्थिति में, या जब उपराष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं, तो उनके कर्तव्यों का निर्वहन कौन करेगा।
उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उनका कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद, वह तब तक पद पर बने रह सकते हैं, जब तक कि उनका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। संविधान में एकमात्र प्रावधान उपराष्ट्रपति के राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य के संबंध में है, जो रिक्ति की अवधि के दौरान उपसभापति या भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिकृत राज्यसभा के किसी अन्य सदस्य द्वारा किया जाता है। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को जो त्यागपत्र सौंपते हैं वह स्वीकार होने के दिन से प्रभावी हो जाता है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करते हैं। किसी भी अवधि के दौरान जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं या उसके कार्यों का निर्वहन करते हैं, तो वह राज्यसभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं और राज्यसभा के सभापति को देय किसी भी वेतन या भत्ते के हकदार नहीं होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 66 के मुताबिक, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से किया जाता है।
उपराष्ट्रपति के रूप में कौन निर्वाचित हो सकता है
कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति के रूप में तब तक निर्वाचित नहीं हो सकता जब तक कि वह भारत का नागरिक न हो; 35 वर्ष की आयु पूरी न कर चुका हो तथा राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिए योग्य न हो। वह व्यक्ति भी पात्र नहीं है, जो भारत सरकार या राज्य सरकार या किसी अधीनस्थ स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता हो।
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