Samajwadi Party को एक-एक कर क्यों छोड़ते जा रहे हैं उसके सहयोगी
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महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव देव मौर्य के एडीए का हिस्सा बनने के बाद मौर्य ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी को समर्थन पत्र सौंप दिया है। मौर्य ने कहा कि वह एनडीए गठबंधन को जिताने के लिए पूरी मेहनत करेंगे।
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हुए लोकसभा चुनाव में जीत के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन इसके उलट उनकी पार्टी के भीतर भगदड़ का माहौल भी नजर आ रहा है। एक तरफ सपा के सहयोगी दल उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ नेतागण भी सपा को टाटा-बाय-बाय करते नजर आ रहे हैं। 17 मई को सपा विधायक मनोज पांडेय ने बीजेपी का दामन थाम लिया था इसके बाद अब महान दल ने लोकसभा चुनाव में एनडीए को समर्थन देने की घोषणा करके एक बार फिर अखिलेश को आईना दिखाने का काम किया है।
महान दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष केशव देव मौर्य के एडीए का हिस्सा बनने के बाद मौर्य ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी को समर्थन पत्र सौंप दिया है। मौर्य ने कहा कि वह एनडीए गठबंधन को जिताने के लिए पूरी मेहनत करेंगे। केशव ने कहा कि सपा से वह अपना नाता तोड़ रहे हैं, क्योंकि वहां उन्हें सम्मान नहीं मिला। वहां लगातार हो रही उपेक्षा के चलते ही उन्होंने भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को समर्थन देने का निर्णय लिया है। वह बोले कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में मुझे कभी भी अपने बगल में नहीं बैठाया। यहां देखिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी मुझे अपने बगल में बैठाकर प्रेस वार्ता कर रहे हैं।
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केशव ने कहा, महान दल को सम्मान देने के लिए मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने अपनी पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं से अपील की कि वह एनडीए के प्रत्याशियों को जिताने के लिए जुटें। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास यात्रा में शामिल होने और एनडीए को समर्थन देने के लिए उनका आभार व्यक्त करता हूं। महान दल का मौर्य, शाक्य, कुशवाहा, सैनी इत्यादि पिछड़ी जातियों पर इस दल का प्रभाव है। यह पिछड़ी जातियां करीब छह प्रतिशत हैं।बता दें कि इससे पहले बीती 14 मई को जनवादी पार्टी ने भी भाजपा व एनडीए को समर्थन देने की घोषणा की थी। पार्टी के अध्यक्ष संजय चौहान लोनिया चौहान बिरादरी की राजनीति करते हैं।
कुल मिलाकर जिस तरह से समाजवादी पार्टी से नेता और उसके सहयोगी दल उससे यही लगता है कि या तो अखिलेश यादव हवा का रूख भांप नहीं पा रहे हैं या फिर उनके संगी-साथियों का अखिलेश की बातों पर भरोसा नहीं है। इसीलिये वह डूबते हुए जहाज में नहीं बैठे रहने देना चाहते हैं।
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