तुष्टीकरण के बीज बोकर सांप्रदायिकता की फसल काटना राजनीतिक दलों को महंगा पड़ेगा

BJP Congress
Prabhasakshi
राकेश सैन । May 20 2023 4:26PM

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने परम्परा अनुसार खुल कर तुष्टिकरण की चौसर खेली। राज्य की पूर्व भाजपा सरकार ने मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे से दिए जा रहे चार प्रतिशत आरक्षण की सुविधा वापिस ले ली।

अस्सी के दशक की बात है, शाहबानो नामक केस सामने आया। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जिस औरत को तिहरा तलाक दिया गया है, उसका पति गुजर बसर के लिए मुआवजा दे। कठमुल्लों ने इसे इस्लाम में हस्तक्षेप बताया। भीड़ आई, समर्थन आया तो गंगा में डुबकी लगाने राजीव गांधी भी पहुंच गए। उन्हें वहां सस्ती भीड़ मिली। राजीव ने संसद में एक कानून बनाकर न्यायालय के निर्णय को धोबीपटका दे दिया। भीड़ खुश हुई, मौलवी नाचे, इस्लाम वालों का माशा अल्लाह हुआ और राजीव जिंदाबाद हो गए लेकिन इस तुष्टीकरण का परिणाम क्या निकला? उत्तर है कि- मुसलमानों के एक वर्ग का तालिबानीकरण, जिहादी आतंक की तपिश, ट्रिपल तलाक के नाम पर बच्चियों का शोषण, कई दंगे जिनमें हजारों लाशें और इसके अलावा भी न जाने किस-किस रूप में इस नीति के विषैले फल हमने चखे।

तुष्टीकरण बीज है तो सांप्रदायिकता फसल, दोनों परस्पर यूं जुड़ी हैं जैसे एक कोख जाई बहनें। क्या तब ऐसे लोग नहीं रहे होंगे, जिन्होंने उस तुष्टीकरण पर सवाल किया हो? निश्चित ही किया होगा, पर उन्हें ‘इस्लामोफोबिक’ कह नकारा गया होगा या उन पर सांप्रदायिकता का ठप्पा लगा दिया होगा। जिस तुष्टीकरण के चलते देश का विभाजन हुआ वही नीति न तो बंटवारे के बाद बंद हुई और राजनीतिक दलों की कुर्सी की भूख बताती है कि न ही निकट में इस पर विराम लगने की कोई संभावना दिखाई दे रही, चाहे इसके लिए कितना भी गम्भीर परिणाम भुगतना पड़ जाए।

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने परम्परा अनुसार खुल कर तुष्टिकरण की चौसर खेली। राज्य की पूर्व भाजपा सरकार ने मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे से दिए जा रहे चार प्रतिशत आरक्षण की सुविधा वापिस ले ली। देश की छद्मधर्मनिरपेक्ष जाति ने न केवल इस पर हल्ला मचाया बल्कि मामला सर्वोच्च न्यायालय तक ले गए। संवैधानिक व्यवस्था के तहत धर्म के आधार पर आरक्षण की सुविधा नहीं दी जा सकती। भाजपा सरकार ने इस मुद्दे पर संवैधानिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया परन्तु कांग्रेस सहित तमाम छद्म धर्मनिरपेक्ष योद्धाओं ने इसे मुस्लिम विरोधी बता कर तुष्टिकरण का पुराना खेल खेलना शुरू कर दिया। 

इतना ही नहीं, कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में बजरंग दल व पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध लगाने का भी वायदा किया। सभी जानते हैं कि पीएफआई एक आतंकी संगठन है जिसकी किसी भी तरह से बजरंग दल जैसे उस संगठन से तुलना नहीं की जा सकती जो देश की संवैधानिक मर्यादा के अनुकूल अपनी गतिविधियां संचालित करता है। सभी जानते हैं कि राष्ट्रवादी संगठन शुरू से ही कांग्रेस की आंखों की किरकिरी रहे हैं और पार्टी अपने घोषणापत्र में बजरंग दल पर प्रतिबन्ध की बात कर केवल मुस्लिम तुष्टीकरण का कार्ड खेल रही है। 

कुछ ऐसा ही लव जिहाद व जबरन धर्मांतरण विषयों को लेकर बनाई गई ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर देखने को मिला। ‘द केरल स्टोरी’ सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल शाह द्वारा निर्मित फिल्म है। यह केरल की महिलाओं के एक समूह की कहानी है जो धर्मान्तरित होकर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड सीरिया में शामिल हो जाती हैं। फिल्म ने खुद को एक सच्ची कहानी के स्पष्ट चित्रण के रूप में प्रस्तुत किया है और यह बताया है दुनिया की हजारों महिलाओं को इस्लाम में जबरदस्ती परिवर्तित किया जा रहा है और आईएसआईएस में भर्ती किया जा रहा है। सिनेमघरों में उमड़ रही भीड़ बताती है कि देशवासियों को यह फिल्म खूब पसन्द आई है परन्तु तुष्टीकरण की पीठ पर सवार दलों ने इसका भी यह कहते हुए विरोध करना शुरू कर दिया कि फिल्म की कहानी मुसलमानों को बदनाम करने का काम कर रही है। विरोध करने वाले यह बताने में असमर्थ हैं कि आतंकी संगठन आईएसआईएस का पर्दाफाश करने वाली फिल्म इस्लाम के खिलाफ कैसे मानी जा सकती है? आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होने का ग्रामोफोन चलाते आ रहे हमारे धर्मनिरपेक्षतावादी क्या इस फिल्म का विरोध कर खुद ही आतंकवाद का इस्लाम से नाता तो नहीं जोड़ रहे?

कर्नाटक में तुष्टीकरण के गरलमंथन से कांग्रेस पार्टी ने सत्ता तो हासिल कर ली, क्योंकि चुनावी विश्लेषण बताते हैं कि इन चुनावों में मुसलमानों के थोक वोट कांग्रेस को मिले, जिससे जनता दल (एस) का पांच प्रतिशत मत खिसक कर कांग्रेस में मिल गया और वह चुनाव जीत गई, परंतु क्या ऐसा करके कांग्रेस ने साम्प्रदायिकता की नई पृष्ठभूमि तो नहीं तैयार कर दी? राजनीतिक दल सचेत रहें, तुष्टीकरण की नीति कुछ विधायक व सांसद तो बनवा देती है परन्तु इसके परिणाम पूरे देश को साम्प्रदायिकता व आतंकवाद के रूप में भुगतने पड़ते हैं। तुष्टीकरण की नीति कट्टरपन्थियों को एकजुट करती है जो पूरे समाज के साथ-साथ खुद उस धर्म के मानने वालों के लिए भी घातक साबित होती है। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने तुष्टीकरण की नीति से साम्प्रदायिकता की नई फसल का बीजारोपण कर दिया है और अब देशवासियों को ही सावधान रहना होगा।

-राकेश सैन

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