साक्षात्कारः राकेश टिकैत ने कहा- तोमर खुद दबाव में हैं वह क्या हल निकालेंगे

rakesh tikait
डॉ. रमेश ठाकुर । Jan 25 2021 12:16PM

''2024 तक हम हटने वाले नहीं? नए कृषि कानून तो लागू होने नहीं देंगे, इसके अलावा केंद्र की सरकार की विदाई करके ही जाएंगे दिल्ली से। हम संकल्पित हैं, जब तक क़ानूनों की वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं? हमें चुपके से मारना है तो मार दो।''

11वें दौर की सरकार-किसानों के बीच बे-नतीजा वार्ता के साथ ही तय हो गया है कि आंदोलन आगे और उग्र होगा। किसानों ने आंदोलन को और तेज करने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालेंगे, जिसके लिए वह पूरी तरह से संकल्पित हैं। वहीं, केंद्र सरकार ने आंदोलित किसानों से तकरीबन-तकरीबन साफ कह दिया है कि वह क़ानूनों को निरस्त नहीं करेगी। पर, हां डेढ़ वर्ष के लिए रोक लगा सकती है, उसमें अगर किसान राजी होते हैं, तो ठीक है। वरना उनकी मर्जी बैठे रहें, या घर चले जाएं। सरकार की इस उदासीनता के बाद किसान नेता और आग बबूला हो गए हैं। आगे की रणनीति क्या होगी, इसको लेकर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत से डॉ. रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।

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प्रश्न- तो क्या 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली जरूर निकलेगी?  

उत्तर- आपको शक है क्या? निकलेगी जरूर निकलेगी रैली, कोई बदलाव नहीं! चाहे केंद्र सरकार कितना भी जोर क्यों न लगा ले। हिंदुस्तान लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलता है जिसमें अहिंसा की कद्र होती है। झंडा फैराने का अधिकार सभी को है। 26 जनवरी पर अगर प्रधानमंत्री को झंड़ा फैराने का हक है तो किसानों को भी है। हम शांतिपूर्ण ढंग से ट्रैक्टर रैली निकालेंगे। केंद्र सरकार पुलिस के बल पर हमें रोकने की कोशिश न करे तो अच्छा होगा। अगर फिर भी रोकने की कोशिशें होती हैं और कोई अप्रिय घटना घटती है, उसकी जिम्मेदार मोदी सरकार होगी, हमारे किसान की नहीं? 

प्रश्न- अब तो सरकार ने भी वार्ता करने से हाथ पीछे खींच लिए है?

उत्तर- वार्ता हो कब रही थी, नाटक हो रहा था। पहली बैठक से लेकर 11वीं बैठक तक हमारे सभी 40 संगठनों की एक ही मांग रही। एमएसपी पर गारंटी कानून बने और नए तीनों क़ानूनों को निरस्त किया जाए। सरकार के भेजे तीनों मंत्रियों को हम यही कहते आए। लेकिन उन्हें पीछे से तोते की तरह रटा कर भेजा जाता था। जो हम कहें वही बैठक में बोलना? बैठक में हम कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के चेहरे पर दबाव के भावों को महसूस करते थे। वह दुखी दिखते थे। सरकार उनको आगे करके जो खेल किसानों के साथ खिलवा रही है शायद उनकी अंतर आत्मा गवाही नहीं देती होगी। उनका दिल भी किसानों के लिए धड़कता है, लेकिन दिल पर बड़ा पत्थर रख दिया है सरकार ने।

प्रश्न- तो क्या कृषि मंत्री से मसले का हल नहीं निकलने वाला?

उत्तर- ना, ना बिल्कुल नहीं? उन्हें मात्र डाकिया बनाकर विज्ञान भवन में भेजा जाता है। जब तक प्रधानमंत्री खुद सामने नहीं आएँगे, हल नहीं निकलने वाला। क्रिकेट टीम मैच जीतती है तो उन्हें बधाई देने का उनके पास समय है। या फिर और भी कोई छोटी-बड़ी घटना हो, उस पर बोलने के लिए टीवी पर अवतरित हो जाते हैं। लेकिन किसानों को सड़कों पर बैठे दो महीने हो गए, उनकी जरा भी परवाह नहीं? पीएमओ में बैठकर सिर्फ तमाशा देख रहे हैं। मरने वाले किसानों की लाशें गिन रहे हैं। मैं बस इतना कहना चाहूँगा, हमारा कल्चर एग्रीकल्चर से है मोदी जी, इतना जरूर समझ लें आप। 

प्रश्न- कुछ आशंकाएं हैं, जैसे किसानों को तितर-बितर करने के लिए कुछ हरकतें हो सकती हैं?

उत्तर- चार किसान नेताओं को मारने की प्लानिंग हुई है जिसमें मैं भी शामिल हूं। शुक्रवार को हमने एक शूटर को पकड़ा था। उसने बताया है कि हरियाणा के राई थाने के एसएचओ के साथ मिलकर आंदोलन के भीतर घुस कर हमें मारने की योजना थी। शूटर को फिलहाल पुलिस को सौंप दिया है। केंद्र सरकार आंदोलन को खत्म करने के लिए हर तरह की कोशिशों में है। लेकिन सरकार डाल-डाल, तो हम पात-पात हैं। हमारे पास पुख्ता सूचनाएं हैं कि सरकार ने अपनी एजेंसियों के लोगों को सिविल में आंदोलन स्थल पर लगाया हुआ है। हमने भी उन पर नजर बनाने के लिए हमारे लोगों को लगा रखा है।

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प्रश्न- करीब 70 किसानों की मौतें और दो महीने हो गए आप लोगों को डेरा डाले, कब तक चलेगा ये सब?

उत्तर- 2024 तक हम हटने वाले नहीं? नए कृषि कानून तो लागू होने नहीं देंगे, इसके अलावा केंद्र की सरकार की विदाई करके ही जाएंगे दिल्ली से। हम संकल्पित हैं, जब तक क़ानूनों की वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं? हमें चुपके से मारना है तो मार दो। बदनाम करना है वह सरकार कर ही रही है। हमें खालिस्तान, पाकिस्तानी, चीनी, चोर, असली-नकली किसान न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है। कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आंदोलन नहीं, क्रांति है एक जुल्म के खिलाफ चलता रहेगा।

प्रश्न- सुप्रीम कोर्ट से गठित समिति से भी कुछ हल नहीं निकला?

उत्तर- कहां हैं... कमेटी के सदस्य, हमें नहीं दिखते। वो किसान हैं क्या। देखिए, ये मसला देश के अन्नदाताओं का है, इसे समझने के लिए किसान का होना जरूरत है। वातानुकूलित कमरों में बैठने वाला किसानों का दर्द नहीं समझ सकता। मोदी, शाह, अदानी-अडानी ही क्या सबसे समझदार हैं। इन चारों ने ही मिलकर क़ानूनों को बनाया है। सरकार शाहीन बाग से जोड़कर इस आंदोलन को देखने की भूल न करे। हमें पता है अगर इस आंदोलन से हमने अपनी मांगें नहीं मनवाई तो भविष्य में मोदी के खिलाफ खड़ा होने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सकेगा। उनकी तानाशाही का पैरामीटर और बढ़ जाएगा।

-डॉ. रमेश ठाकुर

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