क्या वाकई राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ रहा है पश्चिम बंगाल ?

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संतोष पाठक । Jun 12 2019 12:16PM

जैसे-जैसे बीजेपी राज्य में मजबूत होती जा रही है वैसे-वैसे घबराहट में राज्य की टीएमसी सरकार बीजेपी कार्यकर्ताओं को डराने के लिए हिंसा का सहारा ले रही है। लेकिन बीजेपी यह साफ कर चुकी है कि वो इस माहौल को अब झेलने को तैयार नहीं है।

पश्चिम बंगाल देश का इकलौता ऐसा राज्य रहा है जहां 2019 के लोकसभा चुनाव के हर चरण में जमकर हिंसा हुई है। लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान टीएमसी-बीजेपी के कार्यकर्ता लगातार आमने-सामने नजर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और बंगाल बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय समेत बीजेपी के तमाम दिग्गज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में बीजेपी कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या का आरोप लगाते रहे हैं। बीजेपी आरोप लगा रही है कि जैसे-जैसे बीजेपी राज्य में मजबूत होती जा रही है वैसे-वैसे घबराहट में राज्य की टीएमसी सरकार बीजेपी कार्यकर्ताओं को डराने के लिए हिंसा का सहारा ले रही है। लेकिन बीजेपी यह साफ कर चुकी है कि वो इस माहौल को अब झेलने को तैयार नहीं है।

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गृह मंत्री अमित शाह के सख्त तेवर

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह पिछले पांच सालों से लगातार ममता बनर्जी सरकार पर राजनीतिक हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाते रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान खुद उनके रोड शो में हुई हिंसा के बाद अमित शाह यहां तक आरोप लगा चुके हैं कि अगर केंद्रीय अर्धसैनिक बल के जवान मौजूद न होते तो वो जिंदा नहीं बच पाते। जाहिर है कि खुद इस तरह की हिंसा का शिकार हो चुके अमित शाह अब राज्य के इस तरह के हालात को बहुत ज्यादा देर तक झेलने को तैयार नहीं हैं। खासतौर से तब, जब वो स्वयं गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं और बतौर केन्द्रीय गृह मंत्री यह देखना उनका दायित्व है कि तमाम राज्यों में कानून-व्यवस्था की स्थिति बनी रहे। 

सक्रिय हुआ केंद्रीय गृह मंत्रालय

अमित शाह के सख्त तेवरों को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय भी सख्त होता दिखाई दे रहा है। पश्चिम बंगाल में लगातार जारी हिंसा को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रविवार को प्रदेश सरकार को सख्त एडवाइजरी जारी करते हुए कहा था कि प्रदेश की ममता सरकार नागरिकों में विश्वास बनाए रखने को लेकर विफल हो गई है। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी से राज्य के ताजा हालात को लेकर रिपोर्ट भी मांगी गई है। सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आंतरिक सुरक्षा और पश्चिम बंगाल में फैली हिंसा को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक भी की। बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे। वहीं प्रदेश के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने गृह मंत्री के बाद प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की।

ममता बनर्जी ने किया पलटवार

केंद्रीय गृह मंत्री की सक्रियता के बीच राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पलटवार करते हुए बीजेपी पर तीखा हमला बोला है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एडवाइजरी का जवाब देते हुए राज्य सरकार ने दावा किया कि राज्य में हालात नियंत्रण में हैं। ममता सरकार के मुताबकि, चुनाव के बाद कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा की गई थी। इस प्रकार के मामलों को रोकने के लिए अधिकारियों द्वारा बिना किसी देरी के कार्रवाई की गई। साफ लग रहा है कि चुनाव खत्म होने के बावजूद प्रदेश में हालात सामान्य होते फिलहाल तो नजर नहीं आ रहे हैं। प्रदेश में टीएमसी और बीजेपी के कार्यकर्ता तो पहले से ही आमने सामने खड़े हैं और अब केंद्र और राज्य सरकार भी आमने सामने खड़ी दिखाई दे रही हैं।

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बंगाल में राष्ट्रपति शासन का मजबूत आधार ?

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि राज्य में अगर इसी तरह से हिंसा के हालात जारी रहे तो निश्चित तौर पर केंद्र को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति शासन को लेकर तेजी से अटकलें लगाई जा रही हैं। आपको बता दें कि किसी राज्य में अगर कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो जाती है तो प्रदेश के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार अनुच्छेद– 356 का प्रयोग कर उस प्रदेश की सरकार को हटा कर राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।

बंगाल में राष्ट्रपति शासन से किसे होगा फायदा ?

हालांकि अनुच्छेद 356 के इस्तेमाल को हमेशा से ही दोधारी तलवार माना जाता है। इस बार भी बीजेपी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर सशंय की स्थिति में है। दरअसल, पहले पंचायत चुनाव और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों से यह तो साबित हो ही गया है कि प्रदेश में बीजेपी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। प्रदेश में 18 लोकसभा सीटों पर मिली जीत से भी यह साबित हो रहा कि बीजेपी की लोकप्रियता अपने चरम पर है। ऐसे में बीजेपी के एक खेमे को यह लग रहा है कि राष्ट्रपति शासन लगाकर जल्दी विधानसभा चुनाव करवाने से बीजेपी को फायदा मिल सकता है। वहीं एक खेमे का यह भी मानना है कि जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वहां 2021 में तो चुनाव होना ही है। बीजेपी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है, ममता बनर्जी की पार्टी में भगदड़ मची हुई है और उसके नेता लगातार ममता दीदी का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगाने से ममता बनर्जी को सहानुभूति लहर का लाभ मिल सकता है। सीपीएम पहले ही राष्ट्रपति शासन लगाने का विरोध कर चुकी है। ममता बनर्जी खुद को पीड़ित साबित करके प्रदेश की जनता को लुभाने की कोशिश कर सकती हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी तमाम विरोधी दल इस मसले पर ममता के साथ खड़े नजर आएंगे।

मोदी सरकार और राष्ट्रपति शासन

आजादी के बाद से कांग्रेस की सरकार ने सबसे ज्यादा बार 356 का प्रयोग कर सरकारों को बर्खास्त किया है। मोदी सरकार की बात करें तो नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में दो बार उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया था, हालांकि दोनो ही बार न्यायपालिका ने मोदी सरकार को झटका देते हुए केंद्र द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को खारिज कर दिया था। इसे बीजेपी के लिए झटका माना गया था। इसलिए बीजेपी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के मुद्दे पर राजनीतकि, कानूनी और संवैधानिक तौर पर फूंक-फूंक कर ही कदम बढ़ाना चाहती है।

-संतोष पाठक

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