बिहार के सियासी रण में आपस में ही लड़ेंगे कृष्ण और अर्जुन?

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अभिनय आकाश । Apr 2 2019 2:01PM

कभी अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव को अपना अर्जुन बताने वाले तेजप्रताप उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने का जिम्मा अपने कंधे पर लेने की बात करते हुए खुद को उसका कृष्ण बताते थे। लेकिन अचानक तेजप्रताप अपने अर्जुन के ही खिलाफ क्यों हो गए?

राजनीति बहते पानी की तरह है खुद अपनी दिशा तय करती है। भारत का लोकतंत्र दुनिया भर में चर्चित है और उतना ही पेंचीदा भी है। मगर हमारी राजनीति हमारे लोकतंत्र से भी पेंचीदगी से भरी है और इसमें कब क्या होगा इसका आंकलन कर पाना हर किसी के लिए मुश्किल है। ताजा उदाहरण बिहार का नया राजनीतिक घमासान है। राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अलग राजनीतिक मोर्चा बनाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा है कि वे नया राजनीतिक मोर्चा खड़ा करेंगे और इसका नाम "लालू-राबड़ी मोर्चा" होगा। इतना ही नहीं लालू के लाल ने प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी पार्टी के सामने कुछ शर्तें रख दी हैं और ऐसा न होने की सूरत में अपने मोर्चे के बैनर तले बिहार की 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की धमकी भी दे दी। तेजप्रताप ने जहानाबाद और शिवहर से अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी। उन्होंने ये भी बताया कि शिवहर से अंगेश कुमार और जहानाबाद से चंद्र प्रकाश उनके मोर्चे के उम्मीदवार हैं। तेजप्रताप यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने सारण की सीट अपने ससुर चंद्रिका राय को दिए जाने पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह उनके पिता की पारंपरिक सीट रही है और वे अपनी माता राबड़ी देवी से अनुरोध कर रहे हैं कि वे वहां से चुनाव लड़ें, ऐसा नहीं होने पर तेजप्रताप सारण से खुद चुनाव मैदान में उतरकर जीत हासिल करेंगे। 

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क्यों पड़ी कृष्ण-अर्जुन में फूट

कभी अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव को अपना अर्जुन बताने वाले तेजप्रताप उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने का जिम्मा अपने कंधे पर लेने की बात करते हुए खुद को उसका कृष्ण बताते थे। लेकिन अचानक तेजप्रताप अपने अर्जुन के ही खिलाफ क्यों हो गए? जानकारों की माने तो इसके पीछे कई कारण हैं। बीते दिनों बिहार की जहानाबाद और शिवहर की लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारी के लिए तेजप्रताप अपने दो समर्थक नेताओं के नाम बताएं थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने जहानाबाद से उम्मीदवार का एलान कर दिया। इसके साथ ही लालू की परंपरागत सीट सारण से चंद्रिका राय को टिकट दे दिया गया। पत्नी ऐश्वर्या से चल रहे तलाक के बीच तेज प्रताप को ये कतई बर्दाश्त नहीं हुआ कि पार्टी चंद्रिका राय को लोकसभा का टिकट दे। जिसके बाद उन्होंने छात्र राजद के संरक्षक पद से भी इस्तीफा दे दिया था। फिर पत्रकार वार्ता के बाद तेज प्रताप के नए मोर्चे की बात सामने आई। 

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कौन हैं तेजप्रताप के दो उम्मीदवार

तेजप्रताप ने बिहार की जहानाबाद और शिवहर से अपने पसंद के दो उम्मीवारों के नाम सार्वजनिक किए थे। जहानाबाद से चंद्र प्रकाश उनके मोर्चे के उम्मीदवार हैं। जबकि तेजस्वी ने जहानाबाद से पूर्व सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव के नाम का एलान कर दिया। चंद्र प्रकाश तेजप्रताप के बहुत अच्छे दोस्त बताए जाते हैं और जाति से भी वो यादव हैं। अगर चंद्र प्रकाश चुनाव में डटे रहे तो राजद को इस सीट पर नुकसान हो सकता है। चंद्र प्रकाश जहानाबाद में सियासी लड़ाई को स्थानीय बनाम बाहरी बता रहे हैं। इसी तरह तेजप्रताप शिवहर से अंगेश सिंह को उम्मीदवार बनाने पर अड़े हैं। शिवहर से उम्मीदवार का एलान अभी बाकी है लेकिन तेजप्रताप ने अंगेश सिंह को अपने मोर्चे का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। सूत्रों के अनुसार शिवहर सीट से राजद विधायक अबु दोजाना चुनाव लड़ना चाहते हैं। बता दें कि तेज प्रताप जब बिहार के कई इलाकों में बदलाव यात्रा पर निकले थे तो अंगेश और चंद्र प्रकाश ने उनका सपोर्ट किया था और उनकी यात्रा को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। 

कठिन दौर से गुजर रहा राजद

लालू प्रसाद यादव का मर्सिया राजनीति में न जाने कितनी बार लिखा गया होगा लेकिन हर बार उन्होंने दोगुने दम-खम से कमबैक किया। बिहार की सियासत के बाजीगर कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद और उनका परिवार आज सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। बीमार लालू रांची में चारा घोटाले के केस में सजा काट रहे हैं। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव के लिए जारी सियासी घमासान में उनके दोनों बेटे ही आमने-सामने हो गए हैं। साल 2013 जब पटना की परिवर्तन रैली में लालू ने अपने दोनों लाल को लांच किया था। तेजस्वी और तेजप्रताप में महज एक वर्ष का अंतर है। अर्थात न दोनों की उम्र ज़्यादा है और न ही राजनीति अनुभव। लेकिन पिछले कुछ घटनाक्रम पर नजर डालें तो तेजस्वी के प्रति लालू का भरोसा तेजप्रताप की तुलना में हमेशा से ज़्यादा रहा है। वहीं मां राबड़ी देवी ने इस बात को हमेशा सुनिश्चित करने की कवायद में रहीं की तेज प्रताप को ऐसा महसूस ना हो कि उसकी उपेक्षा हो रही है। जब 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश को ताज और लालू राज की वापसी बिहार में हुई थी तो तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था जबकि तेजप्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने थे। लेकिन लालू के चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने के बाद तेजस्वी ने जिस तरह से राजद की कमान संभाली है उससे बिहार की राजनीति में तेजप्रताप के लिए स्थान बेहद कम रह गया है। जिससे बार-बार तेजप्रताप पार्टी में अपने हैसियत को दर्शाने की कोशिश में उटपटांग हरकते करते रहते हैं। आज जब लालू परिवार अपने बुरे वक्त से गुजर रहा है तो लालू प्रसाद इस पूरे सियासी परिदृश्य से गौण हैं। परिवार में तनाव अपने चरम पर है और पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारी से गुजर रही है। ऐसे में खुद को माई (मु्स्लिम+यादव) का लाल कहने वाले लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी में उनके लाल तेजस्वी पर पार्टी के समर्थकों की निगाहें टिकी हैं कि वो अपने पिता की तरह जैसी सूझबूझ दिखाते हुए परिपक्वता के साथ इस विवाद को समाप्त करने में सफल हो पाते हैं या नहीं?

- अभिनय आकाश

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