बैंकों के विलय का पुराना रिकॉर्ड ठीक नहीं, देखते हैं इस बार क्या परिणाम रहते हैं

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दीपक गिरकर । Apr 1 2020 3:48PM

सरकार का कहना है कि बैंकों के विलय के पश्चात सरकारी बैंक मजबूत होंगे और वे अधिक राशि के ऋण देने के लिए सक्षम हो जायेंगे, जिससे सुस्त होती अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिलेगी और 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल हो जाएगा।

सरकार के मतानुसार बैंकों के अच्छे नियमन और नियंत्रण के लिए बैंकों का विलय ज़रूरी है। वित्त मंत्रालय के अनुसार बैंकों के विलय से बैंकों की दक्षता और संचालन में सुधार होगा। यह बात सही है कि उदारीकरण के दौर से ही सरकारी बैंकों के विलय की प्रक्रिया चल रही है। मोदी सरकार के पहले न्यू बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय हो चुका था। निजी बैंक रत्नाकर बैंक और श्री कृष्णा बैंक का केनरा बैंक में विलय हुआ था। आईएनजी वैश्य बैंक का कोटक महिंद्रा बैंक में विलय हुआ था। हमारे देश में बैंकों के विलय का पुराना रिकॉर्ड ठीक नहीं रहा हैं। न्यू बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक का विलय, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का विलय, भारतीय स्टेट बैंक के सहयोगी बैंकों का विलय हमारे सामने उदाहरण है।

भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा आईडीबीआई बैंक का अधिग्रहण किया गया है। सरकार ने 1 अप्रैल, 2019 को विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय कर दिया है। विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय होने पर सरकार इस बैंक में 5042 करोड़ रूपये डाल चुकी है। इन बैंकों में फंसे हुए कर्ज़ की समस्या अन्य बैंकों के समान और अधिक बढ़ती गई। अब सरकार मेगा कंसॉलिडेशन प्लान के तहत आज 1 अप्रैल, 2020 को सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों का विलय करके चार बड़े बैंक बना रही है। इस मेगा प्लान के तहत सरकार पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का आपस में विलय, केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक का विलय, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक तथा कॉर्पोरेशन बैंक का विलय और इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय कर रही है। पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के आपस में विलय से 17.95 लाख करोड़ रूपये के कारोबार के साथ यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा।

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केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक के विलय से 15.20 लाख करोड़ रूपये के कारोबार के साथ यह देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक तथा कॉर्पोरेशन बैंक के विलय से 14.60 लाख करोड़ रूपये के कारोबार के साथ यह देश का पांचवां सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा। इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक के विलय से 8.08 लाख करोड़ रूपये के कारोबार के साथ यह देश का सातवां सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा। इस बड़े मर्जर प्लान के क्रियान्वयन के पश्चात देश में 27 की जगह सिर्फ 12 सार्वजनिक बैंक रह जायेंगे।

सरकार का कहना है कि बैंकों के विलय के पश्चात सरकारी बैंक मजबूत होंगे और वे अधिक राशि के ऋण देने के लिए सक्षम हो जायेंगे, जिससे सुस्त होती अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिलेगी और 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। बैंकों के विलय होने से उनकी कर्ज देने की क्षमता बढ़ जायेगी जिससे बैंकों का जोखिम बढ़ जाएगा। 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तो हासिल हो जाएगा, लेकिन भविष्य में बैंकों के एनपीए इतने बढ़ जायेंगे कि बैंकों को इस एनपीए नामक बीमारी से निजात पाना मुश्किल हो जाएगा। अभी तक बैंकों के जितने भी विलय हुए हैं उनसे समावेशी विकास नहीं हुआ है सिर्फ कुछ बड़े कारोबारियों को फ़ायदा हुआ है। बैंकों का विलय एक पेचीदा मुद्दा है। बैंकों का विलय करने से फंसे कर्ज की वसूली नहीं हो पायेगी और बैंक प्रबंधन का पूरा ध्यान विलय के मुद्दे पर चला जाएगा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 5 सहयोगी बैंकों के विलय से कोई चमत्कार नहीं हुआ बल्कि 200 साल में पहली बार स्टेट बैंक को घाटा हुआ था। सरकार को इसमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। विलय की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए। यदि बड़ा बैंक, छोटे बैंकों का अधिग्रहण करता है तो बड़े बैंक को छोटे बैंकों पर हावी नहीं होना चाहिए।

बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय 1 अप्रैल, 2019 से हो गया है लेकिन इन तीनों बैंकों के सॉफ्टवेयर अलग-अलग होने से विलय की प्रक्रिया नहीं हो पाई है। इन तीनों बैंकों की कार्य संस्कृति भी अलग है। सरकार ने विलय के पूर्व तीनों बैंकों के सॉफ्टवेयर तो एक जैसे करने थे। बैंकों के विलय में सबसे बड़ी चुनौती तकनीकी और मानव संसाधन के एकीकरण की है। बैंकों को कोर टेक्नोलॉजी, फाइनेंसियल प्रोडक्ट्स और एप्लीकेशन के एकीकरण में ही तीन साल से अधिक का समय लग जाता है। इस एकीकरण की समयावधि में बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों पर कार्य का अतिरिक्त बोझ और तनाव आ जाता है, जिससे बैंकर्स अवसाद ग्रसित हो जाते हैं। बैंकों के विलय के बावजूद कॉर्पोरेट गवर्नेंस के समक्ष एनपीए और अकुशल गवर्नेंस की चुनौतियाँ बनी रहती हैं क्योंकि बैंकों का पूरा प्रबंधन विलय की प्रक्रिया में लग जाता है। क्षेत्रीय बैंकों और ग्राहकों में अपनापन रहता है।

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अधिकाँश बैंक क्षेत्रीय ग्राहकों को सेवाएँ देते हैं जबकि बैंकों के विलय से वित्तीय समावेशन और विकेन्द्रीयकरण को झटका लगता है। ग्राहक और बैंक कर्मचारी-अधिकारी भावनात्मक रूप से बैंक से जुड़े रहते है, विलय होने से इनकी भावनात्मक अनिश्चितता बढ़ जाती है। विभिन्न बैंकों की कार्य संस्कृति में भिन्नता रहती है, ऐसी बैंकों के विलय के पश्चात बैंक कर्मियों, ग्राहकों और शेयरधारकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक आकलन के अनुसार विलय से बैंक अधिकारीयों की कार्यक्षमता कम हो जाती है, उनका उत्साह कम हो जाता है। बैंकों के विलय से ग्राहक सेवा का स्तर भी गिरेगा। विलय के पश्चात बड़े बैंक देश की वित्तीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए गंभीर जोखिम के स्त्रोत बन जाएंगे। बैंकों के विलय के कार्य को प्राथमिकता देने से बैंकों की माली हालत सुधारने के लिए उठाए जाने वाले कदम जैसे सार्वजनिक बैंकों पर रिजर्व बैंक के विनियमन को मजबूत करना, बैंक प्रबंधन में सरकारी हस्क्षेप को कम करना और सार्वजनिक बैंकों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस संबंधी मानदंडों को बढ़ावा देने इत्यादि सुधारात्मक कदम लंबित ही रहेंगे। सरकार द्वारा सार्वजनिक बैंकों के विलय के पूर्व ये बैंक जिन गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, उन बीमारियों का इलाज पहले करना चाहिए। बैंकों का एनपीए बहुत अधिक है। बैंकों की सेहत खराब है। कोरोना वायरस की वजह से देश में हर क्षेत्र में आपात स्थिति है। इसलिए अभी बैंकों के विलय का उचित समय नहीं है। सरकारी बैंकों की समस्या प्रशासन और नियामक ढाँचे में व्याप्त विसंगतियों के कारण है। सार्वजनिक बैंकों के मर्जर के बजाए दीर्घकालीन ढांचागत सुधार किये जाने की जरूरत है। स्पष्ट है कि सार्वजनिक बैंकों का ऐसा विलय मौजूदा वित्तीय संकट की वास्तविक वजह का निराकरण नहीं करता है। विलय के पूर्व बैंकों की सेहत सुधारना आवश्यक है।

-दीपक गिरकर

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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